मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया आईना, पेगासस जासूसी कांड की होगी जांच

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा- राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को हर बार छूट नहीं मिल सकती, जांच के लिये बनाई एक्सपर्ट कमेटी

नई दिल्ली। बहुचर्चित पेगासस जासूसी मामले की जांच करवाने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज बुधवार को फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की उस अर्जी को खारिज कर दिया है, जिसमें सरकार ने अपना एक्सपर्ट पैनल बनाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा है कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की सिर्फ बात करने से अदालत मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती। राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाने पर सरकार को हर बार छूट नहीं दी जा सकती। अदालत ने यह कमेंट इसलिए किया, क्योंकि मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर एफिडेविट में ज्यादा डिटेल देने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया है जो सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में काम करेगी। इस कमेटी से कहा गया है कि पेगासस से जुड़े आरोपों की तेजी से जांच कर रिपोर्ट सौंपे। अब 8 हफ्ते बाद फिर इस मामले में सुनवाई की जाएगी। अदालत ने ये भी कहा है कि देश के हर नागरिक की निजता की रक्षा होनी चाहिए। इस मामले में केंद्र ने जो सीमित एफिडेविट दिया है, वह साफ नहीं है और पर्याप्त नहीं हो सकता। हमने सरकार को डिटेल देने का पर्याप्त मौका दिया, लेकिन बार-बार कहने के बावजूद उन्होंने एफिडेविट में स्थिति साफ नहीं कि अब तक क्या-क्या कार्रवाई की गई है। अगर वे स्पष्ट कर देते तो हमारा बोझ कम हो जाता।
पेगासस मामले की 3 सदस्यीय जांच कमेटी में पूर्व आईपीएस अफसर आलोक जोशी और इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ स्टैंडर्डाइजेशन सब-कमेटी के चेयरमैन डॉ. संदीप ओबेरॉय भी शामिल किए गए हैं। इसके साथ ही तीन सदस्यीय टेक्निकल कमेटी भी बनाई गई है। इसमें साइबर सिक्योरिटी और डिजिटल फोरेंसिक के प्रो. नवीन कुमार चौधरी, इंजीनियरिंग के प्रो. प्रभाकरन पी और कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रो. अश्विन अनिल गुमस्ते के नाम हैं।
गौरतलब है कि पेगासस मामले में कई पत्रकारों और एक्टिविस्ट ने अर्जियां दायर की थीं। इनकी मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच करवाई जाए। पिटीशनर्स ने ये भी कहा था कि मिलिट्री ग्रेड के स्पाइवेयर से जासूसी करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। पत्रकारों, डॉक्टर, वकील, एक्टिविस्ट, मंत्रियों और विपक्षी दलों के नेताओं के फोन हैक करना बोलने की आजादी के अधिकार से समझौता करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने कीं ये अहम टिप्पणियां

इस मामले में कमेटी बनाने का काम पहाड़ जैसा था। हमने यह रिटायर्ड जज के विवेक पर छोड़ दिया था कि ऐसे एक्सपर्ट की मदद लें जो साइबर प्राइवेसी के विशेषज्ञ हों।
निजता के अधिकार और बोलने की आजादी प्रभावित हो रही है, इसकी जांच होनी चाहिए। ऐसे आरोपों से सभी नागरिक प्रभावित होते हैं।
प्राइवेसी सिर्फ पत्रकारों और पॉलिटिशियंस का मुद्दा नहीं बल्कि हर व्यक्ति के अधिकार की बात है। सभी फैसले संविधान के मुताबिक होने चाहिए।
दूसरे देशों द्वारा लगाए गए आरोपों और विदेशी पार्टियों के शामिल होने को गंभीरता से लिया गया है।
हो सकता है कि कोई विदेशी अथॉरिटी, एजेंसी या प्राइवेट संस्था देश के नागरिकों को सर्विलांस पर डालने में शामिल रही हो।
आरोप है कि केंद्र या राज्य सरकारें नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करना चाहती हैं।
यह है पेगासस विवाद : खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय ग्रुप का दावा है कि इजराइली कंपनी एनएसओ के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से 10 देशों में 50 हजार लोगों की जासूसी हुई। भारत में भी 300 नाम सामने आए हैं, जिनके फोन की निगरानी की गई। इनमें सरकार में शामिल मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, वकील, जज, कारोबारी, अफसर, वैज्ञानिक और एक्टिविस्ट शामिल हैं। साइबर सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप सिटीजन लैब के मुताबिक किसी डिवाइस में पेगासस को इंस्टॉल करने के लिए हैकर अलग-अलग तरीके अपनाते हैं।
एक तरीका ये है कि टारगेट डिवाइस पर मैसेज के जरिए एक एक्सप्लॉइट लिंक भेजी जाती है। जैसे ही यूजर इस लिंक पर क्लिक करता है, पेगासस अपने आप फोन में इंस्टॉल हो जाता है। वर्ष 2019 में जब वॉट्सऐप के जरिए डिवाइसेस में पेगासस इंस्टॉल किया गया था, तब हैकर्स ने अलग तरीका अपनाया था। उस समय हैकर्स ने वॉट्सऐप के वीडियो कॉल फीचर में एक कमी (बग) का फायदा उठाया था। हैकर्स ने फर्जी वॉट्सऐप अकाउंट के जरिए टारगेट फोन पर वीडियो कॉल किए थे। इसी दौरान एक कोड के जरिये पेगासस को फोन में इंस्टॉल कर दिया गया था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here