आरक्षण के रोस्टर पर रार
- मंत्रिमंडलीय उप समिति की रिपोर्ट पर लिया था फैसला
- सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार हुआ है फेरबदल
- केंद्र सरकार व हिमाचल ने पहले ही बदल दिया है रोस्टर
- पिछले रोस्टर से आरक्षण में आ रही थी विसंगतियां
- कैबिनेट बैठक के दो दिन बाद ही यशपाल आर्य मुकरे कहा, कार्मिक विभाग ने ठीक से नहीं किया प्रजेंटेशनमुख्यमंत्री से की मांग, इस फैसले पर हो पुनर्विचार
- मंत्रियों के दर पर दस्तक देंगे जनरल व ओबीसी कर्मी
देहरादून। सरकारी सेवाओं में सीधी भर्ती का आरक्षण रोस्टर तय करने में मंत्रिमंडलीय उपसमिति की भूमिका महत्वपूर्ण रही। यशपाल आर्य की अध्यक्षता वाली इस समिति में मंत्री अरविंद पांडेय व सुबोध उनियाल भी सदस्य थे। अपर मुख्य सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी समिति की सदस्य सचिव थीं। उप समिति की संस्तुति के आधार पर मंत्रिमंडल ने आरक्षण के रोस्टर में परिवर्तन किया, जिसके अनुसार सौ पदों की भर्ती होने पर आरक्षण कुछ इस तरह होगा। पहला पद अनारक्षित, छठा पद अनुसूचित जाति के लिए, आठवां पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए, 10वां पद आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए रहेगा। इसके बाद 21वें पद पर फिर से अनुसूजित जाति का अभ्यर्थी आ जाएगा। इसी तरह आगणित पदों के सापेक्ष क्षैतिज आरक्षण में चौथा पद महिला, 21वां पद भूतपूर्व सैनिक, 25वां पद दिव्यांगजन व 51वां पद स्वाधीनता सेनानी के आश्रितों के लिए होगा।
इस फैसले के बारे में उत्तराखंड जनरल ओबीसी इम्पलाइज फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा है कि मंत्रिमंडल ने बहुत सही फैसला लिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि आरक्षण किसी भी संवर्ग को तय संख्या से अधिक नहीं मिलना चाहिए। इससे कोई छेड़छाड़ अब बर्दाश्त नहीं होगी। उन्होंने कहा है कि ऐसे में रोस्टर के क्रमांक में अनुसूचित जाति
का क्रमांक एक होने से आरक्षण की मूल भावना का उल्लंघन हो रहा था।
उन्होंने कहा है कि मंत्रिमंडल ने उप समिति की संस्तुति के बाद राज्याधीन सेवाओं, निगमों, सार्वजनिक उद्यमों व शिक्षण संस्थाओं में सीधी भर्ती के लिए जो रोस्टर तय किया गया है वह केंद्र सरकार ने भी लागू कर दिया है।
हिमाचल प्रदेश में यही रोस्टर है जो मंत्रिमंडल ने बुधवार को स्वीकार किया। जोशी ने कहा कि परिवहन मंत्री यशपाल आर्य द्वारा इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग गलत है। फेडरेशन इसका पुरजोर विरोध करता है। फेडरेशन ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि यदि इस निर्णय पर मंत्रिमंडल किसी प्रकार का संशोधन आदि करने का विनिश्चिय करता है तो सामान्य व ओबीसी श्रेणी के कार्मिक बिना नोटिस के राज्यस्तरीय आंदोलन शुरू कर देंगे।
उधर मंत्रिमंडल द्वारा दो दिन पहले आरक्षण के रोस्टर में परिवर्तन करने से सरकार में ही तानातानी शुरू हो गयी है। समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य ने इस मामले में खुद को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री से मांग की है कि कैबिनेट के इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए। उधर केंद्र सरकार व हिमाचल सरकार की तर्ज पर रोस्टर बदले गये आरक्षण के रोस्टर को जनरल-ओबीसी इम्पलाइज फेडरेशन ने सही करार दिया है और इससे अब छेड़छाड़ करने पर बिना नोटिस के राज्यस्तरीय आंदोलन का ऐलान किया है। कैबिनेट ने बुधवार को आरक्षण के रोस्टर में परिवर्तन करते हुए सीधी भर्ती के लिए अनुसूचित जाति के आरक्षण रोस्टर के क्रमांक एक से हटाकर क्रमांक छह पर कर दिया है।
यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट की पूर्व में जारी गाइड लाइन (एसके सबरवाल केस) के आधार पर की गयी है। जिसमें कोर्ट ने तय आरक्षण से अधिक आरक्षण नहीं दिये जाने की बात कही थी। सीधी भर्ती के लिए वर्तमान पिछली रोस्टर पण्राली से कई तरह की विसंगतियां आ रही थी। उदाहरण के लिए दो पदों की रिक्तियां होने पर पहला पद अनुसूचित जाति के खाते में जा रहा था। ऐसी स्थिति में अनुसूचित जाति को यह आरक्षण का सीधे-सीधे 50 फीसद लाभ हो रहा था। बताया जा रहा है कि कार्मिक विभाग ने रोस्टर बदलने से पहले विधि विभाग के साथ व्यापक परामर्श कर लिया था।
सीधी भर्तियों में अनुसूचित जाति को 19 फीसद, जनजाति को 4 फीसद व ओबीसीको 14 फीसद आरक्षण की व्यवस्था है। परसेंटेज के हिसाब से देखें तो अब 19 फीसद में एससी प्रत्येक छठा पद मिलेगा, जबकि अब तक पहला ही पद एससी को मिलता था। इसको लेकर जनरल व ओबीसी के भीतर लंबे समय से विरोध भी चल रहा था।
समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य ने इस मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखकर इस पर पुनर्विचार की मांग की है। मंत्रिमंडलीय उप समिति के अध्यक्ष रहे आर्य का कहना है कि इस मामले में कार्मिक विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश में प्रचलित रोस्टर प्रणाली को ग्रहण करने से संबंधित आंकड़ों का ठीक से प्रस्तुतिकरण नहीं किया, जिससे उन्हें इसको समझने में भ्रांति हुई। दिलचस्प बात है कि आर्य ने उत्तराखंड एससी-एसटी इम्पलाइज फेडरेशन द्वारा इस मामले का संज्ञान दिलाने के बाद पुनर्विचार के लिए कहा है। मंत्रिमंडलीय उप समिति में विचार के साथ ही मंत्रिमंडल की बैठक में भी इस पर बात होने के बाद आर्य ने पहले इस पर सहमति दे दी और अब इसे गलत बता रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी भी फैसला ले चुके थे, लेकिन तब प्रमुख सचिव कार्मिक एनएस नपल्चयाल ने शासनादेश करने में विलंब कर दिया और उसके बाद यह नहीं हो सका। अनुसूचित जाति का पद रोस्टर में छठे स्थान पर कर देने से इस संवर्ग को नुकसान होगा। इस बारे में एससी-एसटी इम्पलाइज फेडरेशन के करम राम का कहना है कि
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति का क्रमांक एक नंबर पर है। यहां विभागीय ढांचे में सीमित पद होते हैं, इसलिए रोस्टर बदले जाने से अनुसूचित जाति व जनजाति के पद कम हो जाएंगे। रोस्टर में यह संशोधन न्यायोचित नहीं है। अब इस मामले में नया मोड़ आ गया है। सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के सरकारी कर्मचारी अब प्रदेश सरकार के मंत्रियों के दरवाजे पर दस्तक देंगे। वे उनसे अपील करेंगे कि सीधी भर्ती के पदों को लेकर कैबिनेट ने जो आरक्षण रोस्टर निर्धारित किया है, उस पर किसी भी सूरत में पुनर्विचार न किया जाए।