फिर बोतल से बाहर निकला राफेल का ‘जिन्न’!

सब गोलमाल हैं

  • राफेल की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप पर अर्जेंट सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट
  • सौदे में भ्रष्टाचार को लेकर फ्रांस की वेबसाइट मीडिया पार्ट के खुलासे के बाद नई पीआईएल दायर

नई दिल्ली। फ्रांस से हुई राफेल फाइटर जेट की डील एक बार फिर विवादों में है। सौदे में भ्रष्टाचार को लेकर फ्रांस की वेबसाइट मीडिया पार्ट के खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट में नई पीआईएल दायर की गई है। वकील एमएल शर्मा ने नई याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से स्वतंत्र जांच की मांग की है। जिस पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि अदालत इस मामले पर अर्जेंट सुनवाई करेगी, हालांकि उन्होंने इसके लिए किसी तारीख का जिक्र नहीं किया।
गौरतलब है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले कोर्ट की निगरानी में राफेल डील की जांच की मांग से जुड़ी सभी याचिकाएं खारिज कर दी थीं। 14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे की प्रॉसेस और पार्टनर चुनाव में किसी तरह के फेवर के आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
फ्रेंच भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी की जांच रिपोर्ट के हवाले से प्रकाशित खबर के मुताबिक दैसो एविएशन ने कुछ बोगस नजर आने वाले भुगतान किए हैं। कंपनी के 2017 के खातों के ऑडिट में 5,08,925 यूरो (4.39 करोड़ रुपए) क्लाइंट गिफ्ट के नाम पर खर्च दर्शाए गए। इतनी बड़ी रकम का कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया। मॉडल बनाने वाली कंपनी का मार्च 2017 का एक बिल ही दिखाया गया है।
फ्रेंच भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी  के पूछने पर दैसो एविएशन ने बताया कि उसने राफेल विमान के 50 मॉडल एक भारतीय कंपनी से बनवाए। इन मॉडल के लिए 20 हजार यूरो (17 लाख रुपए) प्रति नग के हिसाब से भुगतान किया गया। हालांकि ये मॉडल कहां और कैसे इस्तेमाल किए गए, इसका कोई सबूत नहीं दिया गया।
इस मामल में मोदी सरकार को घेरते हुए कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि इस पूरे लेन-देन को गिफ्ट टू क्लाइंट की संज्ञा दी गई। अगर ये मॉडल बनाने के पैसे थे, तो इसे गिफ्ट क्यों कहा गया? क्या ये छिपे हुए ट्रांजेक्शन का हिस्सा था। सच्चाई सबके सामने आ गई। ये हम नहीं, फ्रांस की एक एजेंसी कह रही है। उन्होंने सरकार से 5 सवाल भी किए थे…
करीब 1.1 मिलियन यूरो के जो ‘क्लाइंट गिफ्ट’ दैसो के ऑडिट में दिखा रहा है, क्या वो राफेल डील के लिए बिचौलिये को कमीशन के तौर पर दिए गए थे ?
जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है ?
क्या इस सबसे राफेल डील पर सवाल नहीं खड़े हो गए हैं ?
क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि डील के लिए किसको और कितने रुपए दिए गए ?
क्या प्रधानमंत्री इस पर जवाब देंगे ?

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