अब्दुल हमीद ने उड़ाए थे पाकिस्तान के आठ ‘अपराजेय’ टैंक!

शहादत दिवस पर परमवीर विजेता को सलाम
  • आज के ही दिन शहीद हुए थे 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के हौसले पस्त करने वाले वीर अब्दुल हमीद
  • 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी के आठ वे अमेरिका निर्मित पैटन टैंक उड़ाए थे जिन्हें तब अपराजेय कहा जाता था

नई दिल्ली। पाकिस्तान ने 1965 में युद्ध छेड़ा तो भारत की ओर से उसे मुंहतोड़ जवाब मिला। जिसकी उसे उम्मीद नहीं थी।इस युद्ध में वीर अब्दुल हमीद ऐसे हीरो के रूप में इतिहास रच गये जिसने जीप पर लगी गन से पाकिस्तान के वो आठ अमेरिका निर्मित पैटन टैंक ध्वस्त कर दिए जिन्हें उस वक्त अपराजेय माना जाता था। हमीद ने जंग के मैदान में ही 10 सितंबर 1965 को वीरगति प्राप्त की थी। आज उनका शहादत दिवस है।
अब्दुल हमीद उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में एक जुलाई, 1933 को पैदा हुए थे। उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था। उनकी रुचि लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, नदी पार करना, गुलेल से निशाना लगाना जैसे कामों में थी। वह लोगों की मदद के लिए भी हमेशा आगे रहते थे।
उन्होंने बाढ़ के पानी में डूबती दो लड़कियों की जान बचाई थी। इसके बाद 20 साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में आर्मी जॉइन की। उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। 1965 में जब युद्ध के आसार बन रहे थे तब वह छुट्टी पर अपने घर गए थे, लेकिन हालत गंभीर होने पर उन्हें वापस आने का आदेश मिला। बताते हैं कि बिस्तरबंद बांधते वक्त इसकी रस्सी टूट गई तो उनकी पत्नी रसूलन बीबी इसे अपशकुन मानकर उन्हें उस दिन जाने नहीं देना चाहती थीं, लेकिन हमीद थे कि फर्ज के आगे रुके नहीं। जब रसूलन बीबी ने कहा कि उसे डर लग रहा है तो हमीद ने मुस्कुराकर उसके गाल थपथपाते हुए कहा था, पगली, अब्दुल ऐसे ही नहीं मरने वाला। वह शहीद होगा तो छाती पर गोली खाने के बाद, उसकी पीठ पर गोली का निशान नहीं मिलेगा और जब अब्दुल मरेगा तो सारी दुनिया को दहलाकर ही मरेगा। इतिहास गवाह है कि भारतमाता के इस लाल ने जब पहले दिन ही चार पैटन टैंकों को उड़ा दिया था तो पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक के होश उड़ गये थे।  
वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में पोस्टेड थे। पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। उस वक्त ये टैंकर्स अपराजेय माने जाते थे। अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह नौ बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वह जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंकर आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गए। वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया।
अब्दुल हमीद के साथी बताते हैं कि उन्होंने एक बार में चार पैटन टैंक उड़ा दिए थे। उनके चार टैंक उड़ाने की खबर नौ सितंबर को आर्मी हेडक्वार्टर में पहुंच गई थी। इसके साथ ही उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश भेज दी गई। इसके बाद कुछ अफसरों ने बताया कि 10 सितंबर को उन्होंने तीन और पैटन टैंक नष्ट कर दिए थे। पैटन टैंक उड़ाये जाने की खबर से अमेरिका और पाकिस्तान में हड़कंप मच गया था। जब उन्होंने एक और टैंक को निशाना बनाया तो एक पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गई। दोनों तरफ से फायर हुए। पाकिस्तानी टैंक तो नष्ट हो गया, लेकिन इसी बीच अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए।
हालांकि जानकारी देर से मिलने की वजह से ऑफिशयल साइटेशन में सुधार नहीं हो सका। अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में तीन रुपये का एक डाक टिकट जारी किया। इस डाक टिकट पर रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद की तस्वीर बनी हुई है। आज उनके शहादत दिवस पर पूरा देश उन्हें सलाम करता है।

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