कोरोना : तो मैं पत्थरबाजों से नहीं बच पाती…

पत्थरबाजों के हमले में बचे कोरोनावीरों की आपबीती

  • देश में कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बने इंदौर में डॉक्टरों की टीम पर हमला
  • समुदाय विशेष के लोगों ने मरीजों की जांच करने गई टीम पर अचानक बरसा दिये पत्थर
  • इस हमले में किसी तरह जान बचाकर भागीं एक महिला डॉक्टर ने बताई आपबीती

इंदौर/पटना/बेंगलुरू। आज देश जब कोरोना के खिलाफ निर्णायक जंग लड़ रहा है, ऐसे में कई जगह कोरोनावीरों पर हुए हमले चिंता पैदा कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर में स्वास्थ्यकर्मियों पर पत्थरबाजी की गई। बिहार के मधुबनी में भी ऐसा ही देखा गया। इंदौर में भीड़ से जान बचाकर भागी महिला डॉक्टर ने जो आपबीती बताई है, वह डराने वाली है।

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उन्होंने बताया कि अगर पुलिस साथ न होती तो उनका बचना भी नामुमकिन था। भीड़ के हमले में बाल-बाल बचीं डॉक्टर अभी तक खौफ में हैं। बंद शहर में घर से निकल सफाई में जुटे इंदौर का एक सफाई कर्मी भी भीड़ के इस रुख से हैरान है। उसका सवाल था- आखिर हमारा कसूर क्या है? कुछ इसी तरह की रूह कंपा देने वाली घटना बेंगलुरु की उस आशा वर्कर ने भी बताई जो, भीड़ के हमले में बाल-बाल बचीं।
इंदौर में कोरोना संदिग्धों की जांच करने गईं स्वास्थ्य विभाग की टीम पर एक समुदाय विशेष ने हमला कर दिया था। टीम में शामिल महिला डॉक्टर ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि कैसे उन्होंने और उनके साथ शामिल महिला डॉक्टर, एनएनएम और आशा कार्यकर्ता में भागकर अपनी जान बचाई।
इंदौर शहर में बीते बुधवार को बेहद शर्मनाक वाकया हुआ। टाटपट्टी बाखल इलाके में एक कोरोना संदिग्ध की जांच करने पहुंचे स्वास्थ्य कर्मियों पर लोगों ने हमला कर दिया। उन्होंने बताया, ‘हमें पॉजिटिव कॉन्टेक्ट की हिस्ट्री मिली थी, इसलिए हम वहां गए थे। हम लोगों ने जैसे ही पूछताछ शुरू की, उन लोगों ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। मेरे साथ डॉ. जाकिया भी थीं। हमारे साथ एएनएम और आशा कार्यकर्ता भी थीं। साथ में तहसीलदार भी थे।’ उन्होंने कहा कि यह तो अच्छा था कि हमारे साथ में पुलिस फोर्स थी। हम बचकर आ गए, वरना बच नहीं सकते थे।
दरअसल, इंदौर कोरोना महामारी के हॉटस्पॉट के रूप में उभरा है, इसलिए यहां सरकार और स्थानीय प्रशासन भी ज्यादा सक्रिय है।
डॉक्टर बताती है कि लोगों को अचानक भड़काया गया। उन्होंने बताया, ‘शुरू में सभी लोग शांति के साथ स्क्रीनिंग करवा रहे थे। फिर अचानक न जाने क्या हुआ।’ वह बताती हैं, ‘इस अचानक हुए हमले से हम बहुत डर गए थे। हमारे पैरों पर जोर-जोर से पत्थर पड़ने लगे थे। सर किसी तरह से कार में बिठाकर मौके से बचाकर ले गए।’
सफाई कर्मचारी कुलदीप ने बताया, ‘रविदासपुरा के कोने पर पूरा पानी भर दिया था। हम वहां काम कर रहे थे, पानी खिंचवा रहे थे। नाली का पानी पूरी सड़क पर आ गई थी। पूरा पानी खिंचवाकर आगे का काम कर ही रहे थे और लोगों ने हमें मारकर भगा दिया।’ उन्होंने कहा कि पत्थरबाजी भी हुई। उनके साथी ने भी कहा कि पत्थरबाजी हुई और जब हुई तो हम वहां से निकल गए। हमारी गाड़ी अभी वहीं खड़ी है
उधर कर्नाटक के बेंगलुरु में आशा वर्कर्स लोगों में कोरोना वायरस की जागरूकता फैलाने और सर्वे करने निकली थीं। वहां उनके ऊपर हमला कर दिया गया। आशा वर्कर कृष्णावेनी उस खौफनाक वाकये को याद कर बताती हैं, ‘मैं पांच सालों से आशा वर्कर हूं। कोरोना वायरस के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए हम पिछले 10 दिनों से घर-घर जा रहे हैं। हम परिवारों के ब्योरे एकत्र करते हैं। सादिक इलाके में सर्वे के दौरान एक व्यक्ति ने डीटेल देने से इनकार कर दिया। हमने उन्हें कोविड-19 के बारे में बताया। इसके बाद मस्जिद से घोषणा हुई। फिर लोग अपने घरों से बाहर निकले और हमारे साथ बदसलूकी की।’
उन्होंने बताया कि कर्नाटक के सादिक इलाके में हर घर में जाकर यह पता करने का निर्देश था कि किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के लक्षण तो नहीं दिख रहे हैं। आशा कर्मियों को ऐसे व्यक्तियों के बारे में डाटा एकत्र करने की जिम्मेदारी भी दी गई है। ये सब घटनायें हैरान करने वाली हैं।

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