त्रिवेंद्र की ‘स्थापना’ को उत्तराखंड के स्थापना दिवस ने दी और मजबूती

सियासत के बदले अर्थ

  • उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस के कार्यक्रमों की भव्यता में भागीदारों ने लगाये चार चांद
  • देश और भाजपा की नामचीन हस्तियों के जमावड़े को देखकर उनके धुर विरोधी भी हैरत में
  • त्रिवेंद्र की सियासी पारी पर लगी केंद्र सरकार के साथ भाजपा संगठन की भी मुहर  

देहरादून। उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस के कार्यक्रमों की भव्यता और उनमें शिरकत करने वाली देश और भाजपा की नामचीन हस्तियों के जमावड़े को देखकर उनके धुर विरोधी हैरत में हैं। एक तरह से उनकी बोलती ही बंद हो गई है कि जिस तरह दिग्गज केंद्रीय मंत्रियों के साथ ही यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी और सेना प्रमुख ने त्रिवेंद्र के बुलावे पर वक्त निकाला और स्थापना दिवस के कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाई, उसकी तो ऐसे चंद विघ्न संतोषियों ने तो सपने में भी उम्मीद नहीं की थी। इस घटनाक्रम ने उत्तराखंड के कथित स्वयंभू सियासतदानों को यह संदेश साफ तौर पर दे दिया है कि त्रिवेन्द्र के विकल्प की बात करने वाले या तो भ्रम पाले हुए हैं या गलतफहमी के शिकार हैं।
राज्य स्थापना दिवस समारोह के भव्य आयोजन के जरिये त्रिवेन्द्र ने जिस शालीनता और उत्तराखंडी संस्कृति की समृद्धता के साथ जो संदेश परोसा, उससे लगता है कि वह उत्तराखंड के इतिहास में वो पटकथा लिखने जा रहे हैं जिसको अब तक उत्तराखंड में कोई भी मुख्यमंत्री नहीं लिख पाया है। पार्टी संगठन और नौकरशाही के लोग इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि भाजपा हाईकमान के साथ त्रिवेंद्र रावत के कितने प्रगाढ़ रिश्ते है, चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या फिर गृह मंत्री अमित शाह, त्रिवेंद्र रावत से उनकी फोन पर सीधी बात होती है और वो भी बेलाग और बेहिचक तरीके से।
उत्तराखंड बनने के बाद से त्रिवेन्द्र भाजपा के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जो इतनी साफ़ सुथरी और लंबी पारी खेल पाए। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को लेकर आम राय यह है कि वह मोदी-शाह के साथ ही संघ परिवार के भी लाडले हैं और वह उन मुख्यमंत्रियों में शुमार हैं जिनके फैसलों और सुझावों का आला कमान पूरी तरह से सम्मान करता है। कुछ विघ्न संतोषी ‘जीव’ गाहे बगाहे ऐसी अफवाहें उड़ाने में मशगूल रहते हैं कि त्रिवेंद्र अब गये, तब गये। पिछले तीन साल के कार्यकाल में प्रदेश की जनता ऐसे नाटक देखने की अब अभ्यस्त हो चुकी है और ऐसी अफवाहें फैलाने वालों की असलियत भी जान चुकी है। राज्य स्थापना दिवस के कार्यक्रमों की अपार सफलता के झंडे गड़ने के बाद इस हकीकत से वे भी पूरी तरह वाकिफ हो गये हैं कि पांच साल के इस कार्यकाल में तो वे त्रिवेंद्र का बाल भी बांका नहीं कर सकते।
दूसरी ओर जिस तरह से त्रिवेंद्र प्रदेश की सम्पूर्ण जनता के लिये अटल आयुष्मान स्वास्थ्य योजना जैसी अनोखी कल्याणकारी योजनाओं को मूर्त रूप दे रहे हैं और राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में भी पलायन रोकने, रोजगार के अवसर पैदा करने और इन्फ्रास्टक्चर के विकास के लिये निवेशकों को आने के लिये तैयार कर रहे है, उसके परिणाम धरातल पर दिखने लगे हैं। इससे जो पृष्ठभूमि तैयार हो रही है, उससे तो लगता है कि आगामी चुनाव में तो वह और मजबूत बनकर सामने आएंगे।
ऐसे माहौल में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री जनरल वी के सिंह सहित कई नामचीन व्यक्ति अपने व्यस्त कार्यकर्मों से कीमती वक्त निकाल कर राज्य स्थापना दिवस के समारोहों में शामिल होने आए। इन सभी को त्रिवेन्द्र ने खुद निमंत्रण दिया और किसी ने भी उनको निराश नहीं किया। समारोहों की भव्यता और सफलता को पैमाना बनाया जाए तो सियासदानों के मुताबिक त्रिवेन्द्र ने अपने कंधों पर सजे सितारों में इजाफा कर लिया है। भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं में शुमार और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, स्मृति ईरानी भी स्थापना दिवस समारोह के दौरान त्रिवेन्द्र की एक फोन कॉल पर पूरे उत्साह के साथ उत्तराखंड आए और त्रिवेंद्र सरकार की तारीफ़ में कसीदे गढ़ गए।
टिहरी झील के किनारे स्थापना दिवस समारोह के शुभारम्भ पर दिनभर हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट ही गूँजती रही। रक्षा मंत्री, सेना प्रमुख और दो-दो मुख्यमंत्री इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे, हफ्ते भर आयोजित समारोह के जरिये त्रिवेन्द्र ने केंद्रीय कमान पर अपनी पकड़ का खुलकर इजहार किया। इस बार स्थापना दिवस समारोह देहरादून में ही सीमित न रहकर टिहरी, पौड़ी और अल्मोड़ा में भी मनाया गया । समारोह की एक खास बात यह भी रही कि हर कार्यक्रम का आयोजन समाज के किसी विशेष वर्ग को समर्पित करते हुए किया गया था। मातृशक्ति हो या फिर सैन्य शक्ति, युवा हो या फिर यहाँ के प्रवासी लोग सभी के लिए कुछ न कुछ था। सियासी विश्लेषक मानते हैं कि इससे उनकी लंबी पारी के दीये में और घी पड़ गया है। त्रिवेन्द्र भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों से इसलिए भी अलग है क्यूंकि हाईकमान के साथ – साथ इनके साथ संघ परिवार का भी सदा साथ रहा है।
स्थापना दिवस समारोह में केन्द्रीय मंत्रियों और अन्य दिग्गजों की आवाजाही से ये तो साफ हो गया है कि त्रिवेन्द्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पूरा विश्वास है। यही वजह है कि केन्द्रीय मंत्रियों ने उनके निमंत्रण को खास तवज्जो तो दी ही, साथ ही उनके कुछ विरोधियों को साफ संदेश भी दे दिया कि अब वे अपनी हरकतों से बाज आ जाएं वरना उन्हें नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है। हफ्ते भर आयोजित इन समारोहों के जरिये त्रिवेन्द्र ने केंद्रीय कमान पर अपनी पकड़ का खुलकर इजहार किया और सभी को अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति के शुरूआती परिणामों की झलकियां भी दिखा दी। सियासी विश्लेषक भी मानते हैं कि इससे उनकी लंबी पारी का मार्ग और प्रशस्त हो गया है। 

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