बेटे ही नहीं, बहू-दामाद को भी करनी होगी देखभाल!

केंद्र सरकार की सराहनीय पहल

  • मेंटिनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 में बदलाव का प्रस्ताव
  • अगले हफ्ते इस बिल को पास कराने के लिए सदन के पटल पर भी रखा जा सकता है
  • सरकार का कहना है, नए प्रावधानों के बाद अकेले रह रहे बुजुर्गों का सम्मान भी होगा सुनिश्चित

नई दिल्ली। घर के बुजुर्गों की देखभाल जिम्मेदारी सिर्फ बेटे ही नहीं, बल्कि बहू-दामाद और सौतेले बच्चों की भी होगी। सरकार ने बुजुर्गों की देखभाल की परिभाषा तय करने वाले मेंटिनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरंट्स एंड सीनियर सिटिजन ऐक्ट 2007 में कुछ और चीजें शामिल की हैं। मोदी कैबिनेट ने बुधवार को एक्ट में यह संशोधन पास किया।
नए नियम में माता-पिता और सास-ससुर को भी शामिल किया गया है, चाहे वे सीनियर सिटिजन हों या नहीं। उम्मीद की जा रही है कि अगले हफ्ते इस बिल को सदन में पेश किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि इसमें अधिकतम 10 हजार रुपये मेंटिनेंस देने की सीमा को भी खत्म किया जा सकता है। देखभाल करने वाले ऐसा करने में विफल होते हैं, शिकायत करने पर उन्हें छह महीने कैद की सजा हो सकती है, जो अभी तीन महीने है।
देखभाल की परिभाषा में भी बदलाव कर इसमें घर और सुरक्षा भी शामिल किया गया है। देखभाल के लिए तय की गई राशि का आधार बुजुर्गों, पैरंट्स, बच्चों और रिश्तेदारों के रहन-सहन के आधार पर किया जाएगा। प्रस्ताव पास होने की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि बिल लाने का मकसद बुजुर्गों का सम्मान सुनिश्चित करना है। प्रस्तावित बदलावों में देखभाल करने वालों में गोद लिए गए बच्चे, सौतेले बेटे और बेटियों को भी शामिल किया गया है।
संशोधन में ‘सीनियर सिटीजन केयर होम्स’ के पंजीकरण का प्रावधान है और केंद्र सरकार स्थापना, संचालन और रखरखाव के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करेगी। विधेयक के मसौदे में ‘होम केयर सर्विसेज’ प्रदान करने वाली एजेंसियों को पंजीकृत करने का प्रस्ताव है। बुजुर्गों तक पहुंच बनाने के लिए पुलिस ऑफिसर को एक नोडल ऑफिसर नियुक्त करना होगा।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि इस विधेयक से बुजुर्गों के शारीरिक और मानसिक कष्ट में कमी आएगी। इसके अलावा इस नए बिल से देखभाल करने वाले भी बुजुर्गों के प्रति ज्यादा संवेदनशील और जिम्मेदार बनेंगे।

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