अफगानिस्तान : तालिबान के ये 5 खूंखार चलाएंगे सरकार!

  • इनमें से कोई आत्मघाती हमलों का मास्टरमाइंड तो कोई महिलाओं के हकों का दुश्मन

काबुल। सत्ता पलट के बाद अफगानिस्तान अब इस्लामिक अमीरात बन चुका है। मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा इसका अमीर अल मोमिनीन घोषित हुआ है। तालिबान ने राष्ट्रपति भवन और संसद समेत सभी सरकारी इमारतों पर कब्जा जमा लिया है। पूरे देश में अफरा-तफरी के बीच उन लोगों के नाम सामने आए हैं, जिनके हाथ में तालिबान सरकार की कमान हो सकती है। हिब्तुल्लाह अखुंदजादा के अलावा मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, मुल्ला मोहम्मद याकूब, सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला अब्दुल हकीम को अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसमें से कुछ 1996 से 2001 तक चली तालिबान सरकार में शामिल थे तो कुछ ने अमेरिका के खिलाफ 20 साल चली जंग में भूमिका निभाई। इनसे मिलिये…
1. मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा : अरबी में हिबतुल्लाह का मतलब होता है ईश्वर का तोहफा। अपने नाम के उलट हिबतुल्लाह अखुंदजादा ऐसा क्रूर कमांडर है जिसने कातिलों और अवैध संबंध रखने वालों की हत्या करवा दी और चोरी करने वालों के हाथ काटने की सजा दी। हिबतुल्लाह अखुंदजादा 1961 के आस-पास अफगानिस्तान के कंधार प्रांत के पंजवई जिले में पैदा हुआ। वह नूरजई कबीले से ताल्लुक रखता है। उसके पिता मुल्ला मोहम्मद अखुंद एक धार्मिक स्कॉलर थे। वो गांव की मस्जिद के इमाम थे।
वर्ष 1996 में जब तालिबान में काबुल पर कब्जा जमाया उस वक्त अखुंदजादा को फराह प्रांत के धार्मिक विभाग की जिम्मेदारी मिली। बाद में वो कंधार चला गया और एक मदरसे का मौलवी बन गया। ये मदरसा तालिबान फाउंडर मुल्ला उमर चलाता था जिसमें 1 लाख से ज्यादा स्टूडेंट पढ़ते थे। अखुंदजादा इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान में शरिया अदालत का चीफ जस्टिस भी रहा। मुल्ला मंसूर की मौत के बाद 25 मई 2016 को हिबतुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान की कमान सौंपी गई। तब से वही इस समूह की टॉप अथॉरिटी है।
2. मुल्ला अब्दुल गनी बरादर : मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उन चार लोगों में से एक है जिन्होंने तालिबान का गठन किया था। वो तालिबान के फाउंडर मुल्ला उमर का डिप्टी था। 2001 में अमेरिकी हमले के वक्त वो देश का रक्षामंत्री था। वर्ष 2010 में अमेरिका और पाकिस्तान ने एक ऑपरेशन में बरादर को गिरफ्तार कर लिया। उस वक्त शांति वार्ता के लिए अफगानिस्तान सरकार बरादर की रिहाई की मांग करती थी। सितंबर 2013 में उसे रिहा कर दिया गया। वर्ष 2018 में जब तालिबान ने कतर के दोहा में अपना राजनीतिक दफ्तर खोला। वहां अमेरिका से शांति वार्ता के लिए जाने वाले लोगों में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर प्रमुख था। उसने हमेशा अमेरिका के साथ बातचीत का समर्थन किया है।
इंटरपोल के मुताबिक मुल्ला बरादर का जन्म उरूज गान प्रांत के देहरावुड जिले के वीटमाक गांव में 1968 में हुआ था। माना जाता है कि उनका संबंध दुर्रानी कबीले से है। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई भी दुर्रानी ही हैं।

3. मुल्ला मोहम्मद याकूब : तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की पाकिस्तान में टीबी की वजह से मौत हो गई। इसके बाद माना जाने लगा कि तालिबान में मुल्ला उमर के परिवार का दखल खत्म हो जाएगा। 2016 में मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला मोहम्मद याकूब सामने आया। उसने अखुंदजादा को तालिबान चीफ बनाए जाने का समर्थन किया और फिर गायब हो गया।इस साल 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान के समझौते के 3 महीने बाद मोहम्मद याकूब का नाम चर्चा में आया। तालिबान की रहबरी शूरा ने मोहम्मद याकूब को मिलिट्री विंग का कमांडर नियुक्त किया था। मोहम्मद याकूब अब कमांडर मुल्ला याकूब बन चुका है।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि तालिबान की मौजूदा लीडरशिप में मुल्ला याकूब सबसे नरमपंथी रवैये वाला नेता है। अलकायदा की तरह वह अमेरिका और दूसरे पश्चिम देशों का दुश्मन नहीं है।
4. सिराजुद्दीन हक्कानी : सिराजुद्दीन हक्कानी मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है। वो अपने पिता के बनाए हक्कानी नेटवर्क को चलाता है। ये नेटवर्क पाकिस्तान सीमा पर तालिबान के फाइनेंशियल और मिलिट्री प्रॉपर्टी की देखरेख करता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हक्कानी ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था। इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क ने भारतीय दूतावास पर भी आत्मघाती हमला किया था।
5. मुल्ला अब्दुल हकीम : अब्दुल हकीम हक्कानी तालिबान के शांति वार्ता टीम का एक सदस्य है। तालिबान के शासन के दौरान मुख्य न्यायाधीश रहा धार्मिक स्कॉलर्स की पावरफुल परिषद का प्रमुख है। ऐसा माना जाता है कि तालिबान सरगना हिबतुल्लाह अखुंदजादा अब्दुल हकीम हक्कानी पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है। अब देखना यह है कि अफगानिस्तान का क्या होगा।

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