….उत्तराखंड में तो पूरी दाल ही काली है जनाब!

ई वे बिल फर्जीवाड़ा

  • बेहद व्यस्त अफसरों को फुर्सत भी नहीं मिली कि मौके पर जाकर किसी पंजीकृत कंपनी या फर्म का आफिस या साइनबोर्ड तक देखने की जहमत उठा लें
  • फर्जीवाड़ा करने में जुटी फर्मों के दफ्तरों की तस्दीक की गई तो सब कुछ हवा हवाई मिलने पर बगलें झांकते दिखे जिम्मेदार
  • तह तक पहुंचने पर और भी बड़ा मामला आएगा सामने, आईटीसी और रिफंड के मामलों की जांच में जुटा राज्य कर विभाग
  • अन्य राज्यों तक फैला हुआ है इस फर्जीवाड़े का मामला, 28 फर्मों की ओर से रिफंड दाखिल करने की भी है सूचना

देहरादून। देवभूमि में मात्र कागजों पर बरसों से चल रही फर्मों ने हजारों करोड़ इधर से उधर कर दिये, लेकिन उत्तराखंड के होनहार, जिम्मेदार, काबिल, कर्तव्यपरायण और तमाम खास कार्यों में बेहद व्यस्त अफसरों को सालभर में चंद घंटों की फुर्सत भी नहीं मिली कि मौके पर जाकर एक बार किसी पंजीकृत कंपनी या फर्म का आफिस या साइनबोर्ड तक देखने की जहमत उठा लें। इतना बड़ा मामला सामने आने पर जब फर्जीवाड़ा करने में जुटी फर्मों के दफ्तरों की तस्दीक की गई तो मौके पर तीतर बटेर तक नहीं मिले। उस समय उन काबिल अफसरों के मुंह देखने वाले थे। टोपी ट्रांसफर करने में एक्सपर्ट अफसर भी बगलें झांकते दिखे।
राज्य कर अधिकारियों के मुताबिक ई वे बिल मामले की तह तक पहुंचने पर और भी बड़ा मामला सामने आ सकता है। अभी जांच की जा रही है और यह देखा जा रहा है कि इस फर्जी कारोबार के लाभार्थी कौन-कौन हैं। इन फर्जी फर्मों के बैंक अकाउंट सीज कर दिए गए हैं और केवाईसी को खंगाला जा रहा है। यह भी देखा जा रहा है कि इन फर्जी फर्मों के जरिए आईटीसी कहां-कहां लिया गया और रिफंड का क्लेम किया गया या नहीं।
राज्य कर आयुक्त सौजन्या के मुताबिक यह सारा कारोबार सिर्फ कागजों में ही पाया गया। 70 में से 34 फर्म दिल्ली से मशीनरी और कंपाउंड दाना की खरीद के फर्जी ई वे बिल बना रही थीं। इसके बाद इन फर्मों की आपस में ही खरीद बिक्री दिखाई जा रही थी। 26 फर्मों के जरिए चप्पलों की उत्तराखंड से बाहर बिक्री दिखाई जा रही थी। इस तरह से फर्जीवाड़ा दिल्ली, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों तक भी फैला हुआ है। उन्होंने बताया कि यह भी जांच की जा रही है कि क्या कहीं इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने की कोशिश की गई है। इनमें से 28 फर्मोँ ने रिटर्न भी दिल्ली में दाखिल किया। इसकी भी जांच हो रही है। यह जांच पूरी होने पर यह मामला और भी बड़ा साबित हो सकता है। जांच पूरी होते ही इन राज्यों को भी रिपोर्ट प्रेषित की जाएगी। ई वे बिल में दर्शाए गए वाहनों की जांच के लिए अब राज्य कर विभाग परिवहन विभाग से भी संपर्क करेगा। राज्य कर आयुक्त के मुताबिक प्रयोग किए गए ज्यादातर वाहन पूर्वोत्तर राज्यों में पंजीकृत पाए गए हैं। उधर राज्य कर अधिकारियों ने ई वे बिल की जांच का अधिकार प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों को देने की भी मांग की। अधिकारियों ने कहा कि वर्तमान में किसी ई वे बिल में गड़बड़ी पाए जाने पर केंद्र से अनुमति लेनी होती है। पकड़े गए ई वे बिल के साथ भी यही हो रहा है। इस प्रक्रिया में समय लगता है। होना यह चाहिए कि संबंधित अधिकारियों को तुरंत ई वे बिल का सीज करने का अधिकार मिलना चाहिए।
माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में लागू होने के बाद माल को परिवहन करने के लिए ई-वे बिल जनरेट करना अनिवार्य है। जीएसटी में पंजीकृत व्यापारी व फर्म को माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन ई-वे बिल बनना पड़ता है। यह प्रक्रिया बड़ी आसान है। लेकिन माल गंतव्य स्थान तक पहुंचा या नहीं, इस पर कोई निगरानी नहीं है। जिस वजह से ई-वे बिल की प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं।
ई-वे बिल में करोड़ों का फर्जीवाड़ा सामने आने से राज्य कर अधिकारियों ने इस बात को माना कि जीएसटी लागू होने से ई-वे बिल की प्रक्रिया आसान हो गई है। गौरतलब है कि जीएसटी पंजीकृत व्यापारियों को माल बेचने और खरीदने के लिए जीएसटी वेबसाइट पर ऑनलाइन ई-वे बिल अनिवार्य है। तभी वे माल को परिवहन कर सकते हैं। ई-वे बिल जनरेट करते समय व्यापारी का जीएसटीएन नंबर, क्रेता और विक्रेता की जानकारी, सामान का ब्योरा और वाहन नंबर की जानकारी देनी होती है। सवाल यह है कि कोई भी व्यापारी ई-वे बिल जनरेट कर सकता है। लेकिन माल गंतव्य स्थान तक वास्तव में पहुंचा या नहीं, इसकी जांच नहीं होती है।ई-वे बिल से गलत ढंग से माल की बिक्री और खरीद दिखाते हैं। जिससे टैक्स रिटर्न कम भरने के साथ ही इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का क्लेम करते हैं। इसके साथ ही
ई-वे बिल में माल परिवहन करने के लिए समय भी निर्धारित है। जिसमें प्रतिदिन के हिसाब से किमी तय हैं। वहीं, माल परिवहन करने वाला वाहन रास्ते में खराब हो जाता है तो दूसरे वाहन से माल परिवहन करने के लिए ई-वे बिल में जानकारी देने का प्रावधान है। इसके बावजूद भी ई-वे बिल में फर्जीवाड़ा सामने आने से प्रक्रिया और चेकिंग पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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