उत्तराखंड : जीएसटी में 8000 करोड़ का फर्जीवाड़ा पकड़ा!

अब तक का सबसे बड़ा घोटाला

  • आयुक्तालय जीएसटी देहरादून की 55 टीमों ने 70 व्यापार स्थलों पर सर्वेक्षण के बाद किया घोटाले का पर्दाफाश
  • जीएसटी के तहत फर्जी तरीके से पंजीयन लेकर ई-वे बिल के माध्यम से किया जा रहा है करोड़ों रुपये का कारोबार  
  • इसी प्रकार 26 फर्में अन्य राज्यों में दिखा रही चप्पल की बिक्री, जबकि मौके पर कोई फर्म ही नहीं पाई गई
  • दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान तक फैला हुआ है इस फर्जीवाड़े का दायरा  

देहरादून। उत्तराखंड के वित्त सचिव अमित सिंह नेगी के निर्देशन में आयुक्तालय जीएसटी देहरादून की 55 टीमों ने 70 व्यापार स्थलों पर सर्वेक्षण करके लगभग 8000 करोड़ के फर्जीवाड़े का खुलासा किया। विभाग को विगत कुछ माह से खबरें मिल रही थीं कि उत्तराखण्ड में कुछ लोगों द्वारा जीएसटी के तहत फर्जी तरीके से पंजीयन लेकर करोड़ों रुपये का कारोबार ई-वे बिल के माध्यम से किया जा रहा है।
आयुुक्तालय की टीमों ने गोपनीय रूप से जांच करने पर पाया कि 70 फर्मों द्वारा राज्य के भीतर व बाहर विगत दो माह में 8000 करोड़ रुपये के ई-वे बिल बनाये हैं जिनकी गहनता से जांच करने पर पता चला कि इन 70 में से 34 फर्म दिल्ली से मशीनरी और कंपाउंड दाना की खरीद के वे बिल बना रही थी जिनका मूल्य लगभग 1200 करोड़ है। उसके बाद उन फर्मों द्वारा आपस में ही खरीद बिक्री और प्रांत के बाहर भी दिखाई जा रही थी। इस प्रकार देखा जाए तो ई वे बिलों का वास्तविक मूल्य तो 1200 करोड़ है जिसमें ई वे बिलों के माध्यम से मूल्य वर्धन करते हुए यह धनराशि 8000 करोड़ तक पहुंच जाती है।
इसी प्रकार 26 फर्मों के माध्यम से चप्पल की बिक्री अन्य राज्यों आंध्र प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र को दिखाई जा रही थी। जबकि सर्वेक्षण में मौके पर न तो कोई फर्म पाई गई और न ही कोई पंजीकृत व्यक्ति। स्पष्ट है कि इस फर्जीवाड़े का दायरा अन्य राज्यों दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान तक फैला हुआ है। जिसके सम्बन्ध में जांच अभी जारी है। जांच पूरी करते ही इन राज्यों को भी रिपोर्ट प्रेषित की जाएगी।
साथ ही फर्जी तरीके से बनाये गए ई वे बिल में प्रयोग किये गए वाहनों की प्राथमिक जांच में यह तथ्य प्रकाश में आया कि प्रयोग किये ज्यादातर वाहन पूर्वोत्तर राज्यों में पंजीकृत हैं। इन सभी वाहनों के संबंध में परिवहन विभाग से संपर्क के बाद स्थिति स्पष्ट कराई जाएगी। साथ ही सभी फर्मों का किरायानामा नोटरी करने वाले नोटरी के प्रतिष्ठान पर भी एक टीम से जांच करवाई जा रही है।
टीमों ने पाया कि कुल 80 लोगों ने 21 मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का प्रयोग करते हुए 2-2 की साझेदारी में 70 फर्में पंजीकृत की है। पंजीयन लेते समय दिए गए विवरण के अनुसार सभी साझीदार हरियाणा या दिल्ली के रहने वाले है। जिन्होंने उत्तराखण्ड में किराए पर व्यापार स्थल दिखाते हुए पंजीयन प्राप्त किया है। एक व्यक्ति ने अलग-अलग नाम से अलग-अलग फर्मों में साझेदारी कराई है। किराये पर लिए गए व्यापार स्थल के साक्ष्य स्वरूप किरायानामा और बिजली का बिल लबाया गया है।
आज सोमवार को जांच में पता लगा कि मकान मालिक ने इस तरह का कोई करार किसी फर्म से नहीं किया है। ज्ञात हो कि जुलाई 2017 से जीएसटी लगने के पश्चात से ही पंजीयन प्राप्त करने तथा ई वे बिल बनाने की प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है जिसका लाभ इन लोगों द्वारा उठाया गया है।
विभाग द्वारा की गई अब तक की सबसे बड़ी जांच में राज्य के 12 डिप्टी कमिश्नर, 55 असिस्टेन्ट कमिश्नर, 55 राज्य कर अधिकारियों के साथ-साथ मुख्यालय स्तर पर 10 अधिकारियों की एक कोर टीम गठित की गयी थी जो पिछले पंद्रह दिन से लगातार इस सर्वेक्षण की तैयारियों में जुटी हुई थी। कोर टीम में एडिशनल कमिश्नर विपिन चंद्र, अनिल सिंह, डिप्टी कमिश्नर सुनीता पांडे, प्रमोद जोशी, रोहित श्रीवास्तव, असिस्टेंट कमिश्नर रंजीत नेगी, सुरेश कुमार के साथ-साथ देहरादून एसटीएफ इकाई की टीम सम्मिलित थी। जिसमें डिप्टी कमिश्नर श्याम सुंदर तिरूवा और असिस्टेंट कमिश्नर श्री जयदीप सिंह रावत ने आंकड़ों के विश्लेषण पर कार्य किया। इनके अलावा आयुक्त राज्य कर सौजन्या, अमित गुप्ता, ज्वाइंट कमिश्नर केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर द्वारा कहा गया कि उत्तराखण्ड में इस प्रकार फर्जी तरीके से व्यापार करने वाले व्यापारियों पर केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर विभाग एवं राज्य कर विभाग की प्रवर्तन इकाइयों द्वारा लगातार नजर रखी जा रही है। 

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