भाई-भतीजा ‘वाद’ के भरोसे बहनजी!

अपने तो अपने होते हैं

  • मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद और रामजी गौतम को बनाया बसपा का राष्ट्रीय संयोजक
  • इससे पहले बसपा सुप्रीमो ने अपने भाई आनंद कुमार को दिया राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दर्जा
  • परिवारवाद पर अन्य दलों को घेरने वालीं माया ने पार्टी में ताजा फेरबदल में अपनों को दी तरजीह 

लखनऊ। परिवारवाद पर दूसरे दलों को घेरने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के संगठन में ताजा फेरबदल में अपने घरवालों को ही तरजीह दी है। माया ने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक बनाया है तो भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। इस तरह आकाश आनंद की बसपा में आधिकारिक एंट्री हो गई है। देशभर में पार्टी को मजबूत करने के लिए आकाश आनंद को अहम जिम्मेदारी दी गई। बसपा कैडर में कोऑर्डिनेटर का सबसे बड़ा पद माना जाता है। ऐसे में बहनजी ने इस फैसले से साफ कर दिया है कि पार्टी में उनके अपनों की दखल बढ़ने वाली है। 
ताजा फेरबदल में सतीश चंद्र मिश्र को राज्यसभा में बसपा नेता सदन का पद दिया गया है। रामजी गौतम को भी राष्ट्रीय संयोजक, दानिश अली लोकसभा में नेता सदन और गिरीश चंद्र को लोकसभा में मुख्य सचेतक बनाने का फैसला लिया गया है। रामजी गौतम भी मायावती के भतीजे हैं। इससे पूर्व बसपा सुप्रीमो मायावती के नेतृत्व में आज रविवार को यहां आयोजित मैराथन मीटिंग खत्म हो गई। मीटिंग में भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय संयोजक बनाने, यूपी में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की रणनीति के साथ ही कई अन्य मुद्दों पर चर्चा कर फैसले लिए गए। 
बताया जा रहा है कि पुरानी पद्धति पर काम कर रही बसपा में आकाश के आने के बाद से कई बदलाव आए। मीडिया और सोशल मीडिया से दूर रहने वाली बहनजी अपने भतीजे के कहने पर ट्विटर पर आईं और लोकसभा चुनाव से पहले आधिकारिक अकाउंट बनाया। मायावती अब लगातार ट्विटर के जरिए विपक्ष पर हमला बोलती रहती हैं। आकाश अब बसपा को युवा दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने के लिए काम करेंगे। 
आज बसपा की बैठक एक खास बात नजर आई कि बैठक से पहले सारे नेताओं के मोबाइल फोन जमा करा लिए गए। उनके जूते-चप्पल, पेन, पर्स, बैग और गले में पड़े ताबीज तक उतरवाने के बाद ही मीटिंग हॉल में जाने दिया गया। विधानसभा उपचुनाव बसपा के लिए बेहद अहम हैं। लोकसभा चुनाव बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा और उसके हिस्से में 10 सीटें आईं। गौरतलब है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में इस चुनाव के नतीजे को अकेले मायावती के जनाधार से जोड़कर नहीं देखा जा रहा है। जानकार लोग मान रहे हैं कि बसपा अकेले चुनाव लड़तीं तो उन्हें दस सीटें नहीं मिलतीं। अब वह सपा से अलग होकर उपचुनाव लड़ रही है तो नतीजों को सीधे तौर पर मायावती के राजनीतिक वजूद से जोड़कर देखा जाएगा। 

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