- मोदी लहर के चलते उत्तराखंड की पांचों संसदीय सीटों पर नहीं खोल पाई थी खाता
- विधानसभा चुनाव के दौरान भी शर्मनाक हार के चलते फूंक—फूंककर कदम रख रही कांग्रेस
देहरादून। आगामी लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही पूरे देश में सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव मैदान में उतरने के लिये तैयारी में जुट गई हैं। देश में राष्ट्रभक्ति के ज्वार के साथ चुनावी मौसम शुरू हो चुका है। वहीं कांग्रेस के पास राफेल लड़ाकू विमान सौदे में हुई कथित धांधली और मोदी सरकार पर विफलताओं को जनता के सामने ले जाने क़ी चुनौती है। इसके साथ ही उत्तराखंड में कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती का भी सामना इस चुनाव में करना है।
हालांकि पिछले दो चुनावों को देखा जाए तो कांग्रेस चुनावी मैदान पर बुरी तरह पिटी है। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को इतनी बड़ी दुर्गति होने की आशंका कदापि नहीं रही होगी। उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी। दिलचस्प बात यह है कि उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और विजय बहुगुणा तब मुख्यमंत्री थे। इसके साथ ही केदारनाथ आपदा के बाद प्रदेश में सरकार के खिलाफ जबरदस्त माहौल भी था और मोदी की लहर ने कांग्रेस को पूरी तरह सैलाब में बहा दिया।
लगभग ढाई साल बाद कांग्रेस को विधानसभा चुनावों का सामना करना पड़ा। हालांकि चुनाव से कुछ समय पहले ही कांग्रेस में बड़े स्तर पर बगावत हो गयी थी। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व दो मंत्रियों सहित नौ विधायकों ने बजट सत्र के आखिरी दिन विनियोग विधेयक पर मतदान के दौरान बगावत कर दी थी। इसकी वजह से प्रदेश में कुछ दिन राज्यपाल का शासन भी रहा, लेकिन बाद में कोर्ट से सरकार बहाल हो गयी थी। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गये सभी नौ सदस्यों की सदस्यता खत्म हो गयी थी। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर मुंह की खानी पड़ी।
कांग्रेस की उम्मीदों से कहीं विपरीत रहे परिणामों के अनुसार कांग्रेस न केवल 11 सीटों पर सिमट गयी बल्कि मुख्यमंत्री हरीश रावत भी दोनों सीटों से चुनाव हार गये। इसके बाद नगर निकाय चुनाव में भी कांग्रेस को अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली। हालांकि दो जगह मेयर सीटों पर जीत दर्ज होने से पार्टी को थोड़ी राहत भी मिली।
इस लगातार दो चुनावों में करारी शिकस्त झेलने के बाद कांग्रेस के सामने अब यह लोकसभा चुनाव बहुत बड़ी चुनौती है। इस चुनाव की चुनौतियां इसलिए भी ज्यादा जोखिमपूर्ण हैं क्योंकि कांग्रेस के भीतर आपसी लड़ाई चरम पर है। पिछले दिनों राहुल गांधी की फटकार के बाद यह लड़ाई भले ही बाहर न दिख रही हो, लेकिन अभी तक कांग्रेस क्षत्रप एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। इन तमाम स्थितियों को देखते आसन्न लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए कई लिहाज से चुनौती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा के निवर्तमान सांसदों की तुलना में कांग्रेस के पास कद्दावर प्रत्याशियों का भी टोटा है। सिर्फ हरिद्वार लोकसभा सीट को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस अभी प्रत्याशियों की उधेड़बुन में ही लगी है। हरिद्वार में हरीश रावत को उतारे जाने की स्थिति में कांग्रेस यहां मुकाबले में आ जाएगी, लेकिन यदि रावत को टिकट नहीं मिलता है तो यहां जो चेहरे टिकट की लाइन में खड़े हैं, उनमे से अधिकतर भाजपा के वर्तमान सांसद रमेश पोखरियाल निशंक के कद के आगे एक तरह से बौने ही हैं और लोकसभा स्तर के लिहाज से भी वयस्क नहीं कहे जा सकते।