जनरल खंडूरी की राजनीतिक विरासत का असली हक़दार कौन?

जिस दिन से पौड़ी लोकसभा सीट के लिए कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने प्रत्याशी घोषित किए उस दिन से ही पौड़ी सीट सबसे ज़्यादा रोमांचक बन गयी है। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि एक तरफ़ जहाँ कांग्रेस के टिकट पर जनरल के सुपुत्र मनीष खंडूरी चुनाव लड़ रहे है वहीं दूसरी तरफ भाजपा से जनरल के ख़ासमखास और उनके राजनीतिक सफ़र के हमसफ़र रहे तीरथ रावत मैदान में है। यानि एक तरफ़ पारिवारिक विरासत के हक़दार मनीष खंडूरी और दूसरी तरफ़ राजनीतिक विरासत के हक़दार तीरथ रावत। लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है वह यह है कि विरासतों के इन दोनों हक़दारों में जनरल खंडूरी का फैसला आख़िर किस के पक्ष में जाएगा।
जैसे-जैसे चुनाव की सरगर्मियाँ बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे जनरल की चुप्पी से कार्यकर्ताओं में भी बेचैनी बढ़ती जा रही है। यह सच है कि पुत्र होने के नाते हर अच्छे कार्य में मनीष खंडूरी को अपने पिता से आशीर्वाद लेने का पूरा हक़ है लेकिन यहाँ मामला थोड़ा अलग है क्यूँकि पहली बात तो मनीष अभी तक पूरी तरह गैर राजनीतिक रहे है और पिता के राजनीतिक जीवन में कहीं भी उनका कोई योगदान नहीं है। दूसरी बात यह कि पौड़ी लोकसभा का टिकट उन्होंने उस पार्टी से लिया है जिस पार्टी के ख़िलाफ़ कई बार चुनाव जीत कर उनके पिता ने अपनी राजनीतिक विरासत तैयार की है। जबकि तीरथ रावत जनरल खंडूरी की राजनीति में आने से पहले ही अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार कर उस पर आसीन हो चुके थे। जब खंडूरी जी भाजपा के मामूली सदस्य भी नहीं थे, उस वक़्त तक तीरथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के संघठनकर्ता के रूप में एक दशक पूरा कर चुके थे। उस जमाने में श्रीनगर के गोला बाज़ार स्थित संघ कार्यालय में लुंगी पहनकर व खिचड़ी खाकर भाजपा के लिए वो उस जमीन को तैयार कर रहे थे जिसकी वजह से जनरल खंडूरी की राजनीतिक यात्रा इतनी सुगम हुई।
जिस वक़्त गढ़वाल विश्वविद्यालय व डिग्रीकॉलेजों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का कोई नाम लेने वाला नहीं होता था उस वक़्त तीरथ रावत ने छात्र संघ चुनावों में शानदार जीत दर्ज कर उत्तराखंड में भाजपा की नींव रख दी थी। उसके बाद विद्यार्थी परिषद् की जीत का यह सिलसिला पूरे राज्यभर में फैलता चला गया। विधानसभाओं के चुनावों के लिये तीरथ रावत सहित हजारों कार्यकर्ताओं की मेहनत से ही उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें बनीं जो वर्तमान में भी है। इस बार भाजपा ने अगर पौड़ी से तीरथ रावत को लोकसभा का टिकट दिया है तो उन पर यह किसी तरह का कोई एहसान नहीं लगता बल्कि पार्टी द्वारा सही निर्णय लिया गया है। इससे भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं में भी जोश का माहौल दिख रहा है और आम जमीनी कार्यकर्ताओं में यह सन्देश जा रहा है कि मेहनत और पार्टी के प्रति समर्पण का फल एक ना एक दिन जरूर मिलता है।
श्रीनगर की धरती से छात्र राजनीति व संघठन के विस्तार के परिणामस्वरूप 1993 में आँध्रप्रदेश के हैदराबाद में हुए विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय सम्मलेन में तीरथ रावत को परिषद् का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया था। उत्तरकाशी के भूकंप में राहत कार्यों में तीरथ रावत और उनके साथियों के योगदान को आज भी लोग याद करते हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के दौरान पार्टी ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें गढ़वाल से एम.एल.सी. बनाया। राज्य निर्माण के पश्चात तीरथ रावत प्रदेश के पहले शिक्षा मंत्री बने और उनके द्वार हजारों शिक्षा मित्रों की नियुक्ति की गई। वे अपने गृह सीट चौब्बटाखाल से विधायक चुने गये उसके बाद उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनकर पार्टी को मजबूत करते रहे।
अगर खंडूरी जी भाजपा के सच्चे सिपाही है और उस विचारधारा को मानते है तो उनको सार्वजनिक मंचों से तीरथ रावत के लिए बहुमत माँगना चाहिए, क्यूँकि ये वही तीरथ है जिन्होंने राजनीतिक उतार-चढ़ाव की हर अच्छी बुरी घड़ी में जनरल खंडूरी का एक पल के लिए भी साथ नहीं छोड़ा। जनरल ने पिछले तीस सालों में जो भी आदेश तीरथ रावत को दिए उनका पालन करना तीरथ रावत ने हमेशा अपना कर्तव्य समझा। जबकि कारपोरेट जगत और फ़ेसबुक जैसी प्रसिद्द मल्टीनेशनल कंपनी से राजनीति में आए मनीष खंडूरी का राजनीति से आज तक कभी कोई भी मतलब नहीं रहा है।
जनरल खंडूरी की राजनीतिक विरासत में तीरथ रावत की हक़दारी एसलिए भी बनती है क्यूँकि आज तक का अगर इतिहास देखा जाए तो ज़्यादातर हुआ यह है कि जो भी व्यक्ति किसी बड़े नेता का राजनीतिक हमसफ़र रहा उसी ने बग़ावत की है लेकिन यहाँ इसके विपरीत बेटे मनीष खंडूरी अपने ही पिता से बग़ावत कर उनके विरोधियों के शरणागत हो गए। अरुण नेहरु, राज ठाकरे, शिवपाल यादव व माधवराव सिंधिया जैसे कई उदाहरण जनता के सामने है। जबकि जनरल खंडूरी के राजनीतिक जीवन में हमेशा से परछाई की तरह साथ चलने वाले तीरथ रावत उनके वफ़ादार साथी बने रहे और आखिर में पौड़ी के लिए भाजपा हाईकमान की पसंद भी बने।

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