चुनावी शोर में खो गया ‘गैरसैंण’

पहाड़ की पीड़ा

  • पर्वतीय प्रदेश का सबसे अहम मुद्दा और भावी राजधानी माना जाता है गैरसैंण
  • भाजपा के दृष्टिपत्र में इसका उल्लेख तो है मगर इस पर नहीं हो रही बात 
  • कांग्रेस ने किया दावा- गैरसैंण में जो हो रहा उसकी शुरुआत उसने ही की

देहरादून। लगता है कि देवभूमि के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाने वाला गैरसैंण राजधानी का मुद्दा चुनावी शोर में कहीं गायब हो गया है। प्रदेश के सभी सियासी दल गैरसैंण को लेकर मौका देखकर इसका जिक्र कर लोगों की सहानुभूति भी बटोरते हैं और खूब राजनीति करते हैं, लेकिन जब गैरसैंण मुद्दे पर गंभीर और ठोस चर्चा होनी चाहिए तब उसे हाशिये पर डाल देते हैं। सभी राजनीतिक दलों के अपने एजेंडे में यह जगह पा जाता है, लेकिन अब इस बारे में बात कुछ भी नहीं हो रही। इस लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा हो, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस या फिर यूकेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टी गैरसैंण को लेकर गंभीर नहीं दिख रही। पिछले विधानसभा चुनावों में गैंरसैंण का मुद्दा चर्चाओं में था। भाजपा ने तो इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का वादा भी किया था। माना जा रहा था कि इस चुनाव में भी गैंरसैंण की गूंज सुनाई देगी। मगर अन्य जरूरी मुद्दों की तरह इस पर भी न तो कोई बहस चल रही है और न ही सियासी पार्टियां इसको लेकर किसी तरह की उत्सुकता दिखा रही हैं।

गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ने वाली गैरसैंण घाटी को राजधानी जैसी मान्यता राज्य आंदोलन के दौरान ही मिल गयी थी। राजनीतिक दलों ने गैरसैंण को अपने फायदे के अनुरूप समय-समय पर हवा देने की कोशिश भी की। गैरसैंण (भराड़ीसैंण) में विधानसभा का भवन बनकर तैयार हो चुका है। विधायक और आफिसर ट्रांजिट हॉस्टल भी तैयार हो रहे हैं। भारी भरकम राशि खर्च करने के बाद पहाड़ को बड़ी उम्मीद भी जगी कि गैरसैंण देर सबेर राजधानी बनेगी। राज्य गठन के बाद अंतरिम सरकार ने देहरादून को अस्थाई राजधानी घोषित करते हुए स्थाई राजधानी का फैसला निर्वाचित सरकार पर छोड़ दिया था। तबसे तीन निर्वाचित सरकारें अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं और चौथी सरकार का भी दो वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया है। उक्रांद व अलग राज्य की लड़ाई में साथ रहने वाले कई संगठन लंबे समय तक गैरसैंण के झंडाबरदार बने रहे। समय-समय पर उन्होंने ‘पहाड़ की राजधानी पहाड़ में ही हो’ के नारे भी बुलंद किये। बावजूद इसके इनकी आवाज भी धीर-धीरे मंद होती चली गयी। उक्रांद ने हर चुनाव में गैरसैंण राजधानी को घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह तो दी, मगर लोगों का भरोसा इस दल से चुनाव-दर-चुनाव उठता चला गया। विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्रित्वकाल में गैरसैंण में पहले कैबिनेट बैठक और उसके बाद विधानसभा का सत्र आहूत किया गया। इसके बाद हरीश रावत के कार्यकाल में वहां विधानसभा भवन का निर्माण शुरू हुआ। त्रिवेंद्र सरकार ने अपना पहले बजट सत्र गैरसैंण में ही आहूत किया। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस गैरसैंण को लेकर खुलकर मैदान में थे और राजधानी बनाने की बातें भी करते रहे। बावजूद इसके लगता है कि गैरसैंण इस लोकसभा चुनाव के शोर में कहीं गुम हो गया है।इस बारे में भाजपा नेता डा. देवेन्द्र भसीन ने पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि गैरसैंण हमारा खास मुद्दा है। हमने इसे अपने दृष्टिपत्र में रखा हुआ है कि वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाएंगे। वहां आसपास पर्यटन भी विकसित किया जा रहा है। सरकार की ओर से वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी की सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। हम अपने दृष्टिपत्र पर अडिग हैं। उधर प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि गैरसैंण को लेकर हम पूरी तरह सकारात्मक हैं। हमारी सरकार ने ही वहां कैबिनेट व फिर सत्र शुरू किया। वह भावनात्मक मुद्दा है। चुनावों में ऐसे मुद्दे उठते हैं, जिससे राजनीतिक दलों को सीधा लाभ हो। गैरसैंण भले ही इस बार चुनावी मुद्दा नहीं बना, लेकिन वह हमारी प्राथमिकता में है। 

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