बहुत कठिन है संसद की डगर
- भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट और निवर्तमान सांसद रमेश पोखरियाल निशंक का सियासी भविष्य भी होगा तय
- कांग्रेस के पूर्व सीएम हरीश रावत और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के सामने भी करो या मरो की स्थिति
देहरादून। लोकसभा चुनावों के परिणाम को लेकर जो कयास लगाये जा रहे हैं, उससे उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही के कई दिग्गजों के सियासी भविष्य पर चुनाव परिणाम की ‘तलवार’ लटकी हुई है। अगर पक्ष में आये तो ठीक वरना सियासी सफर पर विराम लगने का संकट भी गहरा सकता है।
गौरतलब है कि गत विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट हार गये थे। इसलिये इस बार उनके सामने हर हाल में जीतने की चुनौती बनी हुई है क्योंकि इस चुनाव में मोदी लहर गायब है और भाजपा पूरे देश में ‘राष्ट्रवाद’ के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। इस बार लोकसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे सिरे से गायब हैं। जहां तक पहाड़ के वोटरों का सवाल है तो मतदान हो जाने के बावजूद उनकी चुप्पी बरकरार है। उनकी इसी चुप्पी से दिग्गजों में एक डर सा समाया हुआ है कि पता नहीं, उंट किस करवट बैठ जाए!
निवर्तमान सांसद रमेश पोखरियाल निशंक दोबारा हरिद्वार सीट से अपना भाग्य आजमा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते निशंक वैतरणी पार कर गये थे, लेकिन इस बार उनके संसदीय क्षेत्र में समीकरण बदले हुए हैं और कई ‘कारक’ उभर कर सामने आये हैं। जिनमें सबसे दिलचस्प घटना यह हुई कि उन्हीं की पार्टी के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने उन्हें ‘प्रवासी पंछी’ बताते हुए उनको टिकट दिये जाने का विरोध किया था और ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का मुद्दा भी उछाला था। साथ ही बीते पांच में उनके द्वारा कराये गये विकास कार्यों पर भी लोगों ने प्रश्न चिह्न लगाये थे। जिनमें चैंपियन ने तो यहां तक कह दिया था कि उन्हें विकास कार्यों के शिलान्यास के नाम पर पत्थर लगाने की याद भी पांच साल बीतने के बाद आई। इनके अलावा और भी कई कारणों से उनको यहां से जीतना अपरिहार्य हो गया है। अन्यथा की स्थिति में उनके सियासी सफर पर संकट गहराने की आशंका है।
दूसरी ओर प्रदेश में कांग्रेस दो धड़ों में बंटी है। एक प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का माना जाता है और दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम दोनों गुटों के भीतर भारी उलटफेर कर सकते हैं। दोनों धड़ों की रंजिश बढ़ भी सकती है और समीकरण भी बदल सकती है। इसलिये इस चुनाव में दोनों ही धड़ों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। खुद प्रीतम सिंह टिहरी लोकसभा क्षेत्र से और हरीश रावत नैनीताल लोकसभा क्षेत्र से भाग्य आजमा रहे हैं। ऐसे में दोनों के सामने अपनी सीटों को निकालने की बड़ी चुनौती है। प्रीतम के करीबियों ने पूरी ताकत टिहरी लोकसभा क्षेत्र में लगायी तो हरीश रावत के करीबियों ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन तक नैनीताल में डेरा डाले रखा।
सियासी हलकों में यह माना जा रहा है कि प्रीतम चूंंकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, इसलिए उन पर ज्यादा दबाव है। यह दबाव दो तरह का है। पहला यह कि प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हो और दूसरा खुद अपनी सीट जीतने का। यदि ऐसा न हो पाया तो विरोधी खेमा उन्हें प्रदेश अध्यक्ष से विदा करने के लिए ताकत झोंक देगा। इसी तरह की स्थिति हरीश खेमे के साथ भी है। हरीश रावत को उनकी पसंदीदा सीट से टिकट दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश सहित अन्य विरोधी चाहते थे कि उन्हें हरिद्वार से उतारा जाए। जबकि हरीश रावत नैनीताल सीट को लेकर काफी पहले से सक्रिय होने के कारण नैनीताल से टिकट चाह रहे थे। पार्टी आलाकमान को इन सारी स्थितियों को देखते हुए टिकट फाइनल करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी और अंतत: हरीश रावत को नैनीताल से ही टिकट दिया गया।
ऐसे में अगर हरीश रावत इस चुनाव में जीत दर्ज करते हैं तो आलाकमान में उनका कद बढ़ जाएगा और अगर वे चुनाव हार गये तो इसे उनके राजनीतिक करियर का अवसान भी कहा जा रहा है। माना जा रहा है कि वर्तमान परिस्थितियों में अगर हरीश व प्रीतम दोनों जीतते हैं तो भी कांग्रेस के भीतर वर्चस्व की लड़ाई तेज होगी। मतलब लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद उत्तराखंड कांग्रेस में घमासान होना ही है क्योंकि प्रीतम विरोधी खेमे के दबाव के चलते प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाये हैं। दोनों गुटों की कोशिश होगी कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर उनका वर्चस्व कायम हो और भविष्य की राह निष्कंटक हो सके।