बगैर प्रवेश परीक्षा के पीएचडी और डेढ़ वर्ष में डिग्री!

ये यूटीयू का कारनामा है जनाब

  • उत्तराखंड तकनीकी विवि में गड़बड़ियों की एसआईटी जांच की तैयारी
  • राजभवन की सख्ती के बाद भी यूटीयू से नहीं मिला था जवाब
  • पीएचडी के लिए नियमों में अनदेखी सहित लगे हैं कई गंभीर आरोप
  • शासन ने सीएम को फाइल भेजकर एसआईटी जांच के लिए अनुमति मांगी

देहरादून। उत्तराखंड तकनीकी विवि (यूटीयू) में पीएचडी के लिए नियमों की अनदेखी सहित अन्य गड़बड़ियों की जांच एसआईटी से कराने की कवायद शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार शासन ने यूटीयू प्रकरण में एसआईटी जांच के लिए मुख्यमंत्री को फाइल भेजकर अनुमति मांगी है।
उल्लेखनीय है कि राजभवन के सख्त आदेश पर शासन ने यूटीयू से गड़बड़ियों पर रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन विवि से संतोषजनक जवाब न मिलने पर अब मामला एसआईटी को सौंपा जा रहा है। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद गृह विभाग जांच के लिए एसआईटी गठित करेगा। यूटीयू में नियमों को ताक पर रखकर अभ्यर्थियों को पीएचडी की उपाधि देने का मामला सामने आया था।
आरोप है कि कुछ अभ्यर्थियों को बगैर प्रवेश परीक्षा के पीएचडी के लिए पंजीकृत किया गया और डेढ़ साल के भीतर ही उन्हें उपाधि भी दे दी गई। इसके अलावा वर्ष 2009 और 2010 में उन लोगों को इसकी उपाधि दी गई, जिनका विभिन्न विश्वविद्यालयों से यहां ट्रांसफर किया गया था। वहीं 2010 में वाइवा और 2011 में पंजीकरण का भी आरोप लगा था। वर्ष 2017 में पीएचडी प्रवेश परीक्षा में भी गड़बड़ी का आरोप लगा था, लेकिन इस मामले में अब तक किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई।
बीते नौ सितंबर को राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक लेते हुए इस मामले में शासन को सचिव स्तर से 15 दिनों के भीतर अंतिम जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा था। राज्यपाल के सख्त तेवरों के बाद शासन ने विवि प्रशासन से रिपोर्ट तलब की, लेकिन विवि की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। सूत्रों के अनुसार इसके बाद अपर मुख्य सचिव तकनीकी शिक्षा ओम प्रकाश ने मामले की जांच एसआईटी को सौंपने का निर्णय लिया और अनुमति के लिए फाइल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भेज दी है। अब मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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