त्रिवेंद्र के कड़े और बड़े फैसले से कई सफेदपोशों, नौकरशाहों में हड़कंप

गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों का मामला

  • अवैध कब्जेदारों के खिलाफ चलेगा अभियान, सचिव राजस्व ने डीएम को जारी किए निर्देश
  • सरकारी भूमि पर अवैध रूप से काबिज लोगों को चिह्नित कर उनके खिलाफ होगी कार्रवाई
  • सहस्रधारा रोड, पछवादून क्षेत्र की जमीनें फिर सफेदपोशों को लौटाने की होगी जांच
  • नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ ने बड़ी संख्या में रिश्तेदारों के नाम पर हड़पी जमीन
  • इनमें सत्ता और विपक्ष में बैठे दोनों ही दलों के कई बड़े नेता भी शामिल
  • पूर्व कमिश्नर व दून के पूर्व डीएम, एडीएम, एसडीएम, तहसीलदार भी आये घेरे में
  • रिटायर होने पर भी उनका बाल बांका नहीं कर पाये शासन व सरकार में बैठे लोग  

देहरादून। त्रिवेंद्र सरकार के गोल्डन फॉरेस्ट की 486 हेक्टेयर भूमि राज्य सरकार में निहित किए जाने के कड़े और बड़े फैसले से  उन सफेदपोशों और नौकरशाहों में हड़कंप मच गया है जो गोल्डन फॉरेस्ट की विवादित जमीनों पर कुंडली मारे बैठे हैं। नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ ने फर्जी कागजात तैयार कर गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों को अपने रिश्तेदारों के नाम पर करा रखा है। इसमें सत्ता और विपक्ष में बैठे दोनों ही दलों के कई बड़े नेता भी शामिल हैं। गोल्डन फॉरेस्ट की करीब 38 हेक्टेयर भूमि ऐसी है, जो पूर्व में कई नौकरशाह और अफसर अपने चहेतों को लुटा चुके हैं।
त्रिवेंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि कोई कितना ही प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो, अगर वह गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों पर किसी भी रूप में काबिज है तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। इस मामले में भी जीरो टॉलरेंस की नीति ही अपनाई जाएगी। गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों के मामले में पूर्व नौकरशाहों से लेकर कई सेवानिवृत्त और सेवारत अफसरों की भूमिका हमेशा सवालों के घेरे में रही है। खासतौर पर गढ़वाल मंडल में पूर्व कमिश्नर, देहरादून में पूर्व डीएम, एडीएम, एसडीएम विकासनगर व सदर देहरादून, तहसीलदार विकासनगर, तहसीलदार सदर के पद पर रहने वाले कई बड़े अफसरों की भूमिका संदिग्ध रही है। कई बार इन अफसरों में से कई के खिलाफ विभागीय कार्रवाई होने के साथ ही जांच के आदेश भी हुए, लेकिन ये जांचें अभी तक लंबित हैं। इससे पता चलता है कि रिटायर होने के बावजूद वे इतने प्रभावशाली हैं कि शासन और सरकार में बैठे लोग उनका बाल बांका भी नहीं कर पाये हैं।
हालांकि गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों को लेकर कई दशकों से विवाद चल रहा है। विवाद की शुरुआत 90 के दशक में तब हुई, जब गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी ने किसानों से जमीनें जुटानी शुरू की। बड़े पैमाने पर सीलिंग एक्ट को दरकिनार करते हुए जमीनें कंपनी में शामिल की गई। इस दौरान एससीएसटी की जमीनों की भी नियम विरुद्ध बड़े पैमाने पर खरीद फरोख्त हुई। इन विवादों पर 1997 में पहली बार तत्कालीन डीएम ने जमीन सरकार में निहित की।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति के समक्ष तथ्य दिए गए कि 1997, 2003 और 2008 में जिन जमीनों को सरकार में निहित किया गया, उसे लेकर किसी प्रकार का विवाद नहीं है। पिछले सप्ताह मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस पर फैसला ले लिया गया। बुधवार को विधिवत आदेश भी जारी कर दिए गए। इस बीच सहस्रधारा रोड से लेकर पछवादून क्षेत्र की ऐसी विवादित जमीनें नौकरशाहों और बड़े अफसरों ने दोबारा अपने चहेते सफेदपोशों और भूमाफिया को लौटा दीं। जबकि ये जमीनें ऐसी थीं जिनको वर्ष 1997, वर्ष 2003 और वर्ष 2008 में तत्कालीन जिलाधिकारियों ने राज्य सरकार में निहित किए जाने के फैसले किए थे। सीलिंग एक्ट के उल्लंघन, एससी एसटी की जमीन बिना मंजूरी के खरीद फरोख्त समेत तमाम नियमों के उल्लंघन पर ये जमीनें इसलिए सरकार में निहित की गई थी। अंतिम बार 2008 में जिलाधिकारी राकेश कुमार ने बाकायदा अभियान चलाते हुए जमीनों को सरकार में निहित किए जाने के फैसले लिए। बावजूद इसके बीच बीच में कई जिलाधिकारियों ने विवादित फैसले करते हुए इन जमीनों को फिर कारोबारियों को लौटा दिया। त्रिवेंद्र सरकार अब ये सभी मामले फिर से खोले जाने की तैयारी में जुट गई है, जिससे इस खेल में संलिप्त नेताओं और नौकरशाहों की नींद खराब हो गई है।
गौरतलब है कि गोल्डन फॉरेस्ट की राज्य सरकार में निहित 486 हेक्टेयर जमीन पर गरीबों के लिए आवास बनाने के साथ ही अब उद्योग लगेंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के हरी झंडी के बाद राजस्व विभाग ने इसके आदेश कर दिए हैं। यह जमीन विभिन्न विभागों को आवंटित कर दी गई है।
राज्य सरकार ने एडीएम (प्रशासन) की अक्तूबर, 2019 की रिपोर्ट के आधार पर ऐसी खाली जमीनों को सरकार में निहित करते हुए विभागों को आवंटित भी कर दिया है। प्रभारी सचिव सुशील कुमार की तरफ से यह आदेश किए गए। चूंकि दो दशक से ज्यादा समय से जमीन विवादों में रही, लेकिन सरकार इस पर कोई फैसला नहीं ले पा रही थी। अब त्रिवेंद्र सरकार ने बड़ा और कड़ा फैसला लेते हुए इस जमीन को सिंचाई, औद्योगिक विकास, आवास और राजकीय कार्यालय को आवंटित कर दिया है।
गोल्डन फॉरेस्ट की सरकार में निहित हुई जमीनों पर अवैध रूप से काबिज लोगों के खिलाफ बड़ा अभियान चलेगा। सचिव राजस्व सुशील कुमार शर्मा की ओर से इस बाबत जिलाधिकारी देहरादून को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। जिसमें कहा गया है कि सरकारी भूमि पर अवैध रूप से काबिज लोगों को चिह्नित करते हुए कार्रवाई की जाएगी। कुल 486 हेक्टेयर भूमि सरकार में निहित की गई है। इसमें 342.6 हेक्टेयर भूमि छोटे छोटे टुकड़ों में है। शेष बड़ी भूमि सरकारी विभागों को आवंटित कर दी गई है। सचिव राजस्व ने सरकार में निहित भूमि के विशेष रूप से देखरेख के निर्देश दिए।
राजस्व सचिव सुशील कुमार शर्मा का कहना है कि मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद गोल्डन फॉरेस्ट की भूमि सरकार में निहित कर दी गई है। जो भी भूमि निहित की गई है, उस पर यदि किसी भी तरह का कब्जा होगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। डीएम को जमीनों पर कब्जा लेने के निर्देश दिए गए हैं।

गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों का मामला  सुप्रीम कोर्ट में
देहरादून। हालांकि करीब 22 साल से चल रहा गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस पर अगली सुनवाई 23 अक्तूबर की है।
उल्लेखनीय है कि 1984 में बनी गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी ने देहरादून में जमीन खरीदने के लिए नब्बे के दशक में अपने कदम रखे थे। देहरादून के अलग-अलग हिस्सों में कंपनी ने करीब 12 हजार हेक्टेयर भूमि खरीदी थी। गोल्डन फॉरेस्ट ने निवेशकों से मोटी रकम जुटाते हुए जमीन खरीदने का लालच दिया था, लेकिन बीच में कंपनी बंद होने से निवेशकों की बड़ी रकम डूब गई थी। मगर 1997 में सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने पर कंपनी को भंग कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने एक गोल्डन फॉरेस्ट कमेटी बनायी और देशभर में गोल्डन फॉरेस्ट की सभी जमीन अपने कब्जे में लेने के निर्देश दिए थे। कमेटी को देशभर में गोल्डन फॉरेस्ट की जमीन की नीलामी करनी थी, लेकिन इसकी नीलामी नहीं हो सकी। गोल्डन फॉरेस्ट की जमीन में लगी पूंजी वापस पाने की उम्मीद में सैकड़ों लोगों की नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई है।

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