…तो दुनियाभर में अब रोजगार के लिये क्रांति का काउंट डाउन शुरू!

आंखें खोलने वाली यूएन की रिपोर्ट

  • पूरे विश्व में बेरोजगारी के संकट से जूझ रहे करीब 47 करोड़ लोग
  • श्रम संगठन के प्रमुख गाय रैडर बोले- हालात हमारे अनुमान से ज्यादा गंभीर
  • कहा, दुनिया के अधिकांश देशों में बढ़ती अशांति की बड़ी वजह बेरोजगारी
  • ऊंची कमाई वाले एक वर्ष में जितना कमाते हैं, नीचे वालों को लगते हैं 11 साल
  • कहा, पर्याप्त रोजगार पैदा नहीं कर पा रही हैं धीमी अर्थव्यवस्थाएं
  • 26.7 करोड़ जरूरतमंद युवाओं की शिक्षा और प्रशिक्षण तक पहुंच नहीं

जेनेवा। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने आंखें खोलने वाली एक रिपोर्ट में कहा कि दुनियाभर में 47 करोड़ लोग या तो बेरोजगार हैं या उनके पास ढंग का रोजगार नहीं है। यूएन ने चेतावनी दी कि बेहतर रोजगार न मिलने पर समाज में क्रांति फैल सकती है। संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि रोजगार की कमी से जूझते लोगों की कुल संख्या 50 करोड़ के लगभग भी हो सकती है। यह दुनियाभर की श्रम शक्ति का 13% है।
संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (यूएनआईएलओ) के मुताबिक हालांकि दुनियाभर में बेरोजगारी की दर पिछले दशक की तुलना में स्थिर रही है, लेकिन बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। पिछले साल 5.4% की बेरोजगारी दर में ज्यादा बदलाव की संभावना नहीं है, लेकिन दुनियाभर में बेरोजगारों की संख्या में बढ़ोतरी का अनुमान है। धीमी पड़ती अर्थव्यवस्थाएं भी बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से कम रोजगार पैदा कर रही हैं।
यूएनआईएलओ ने अपनी सालाना ‘वैश्विक रोजगार और सामाजिक दृष्टिकोण’ रिपोर्ट में कहा कि बेरोजगार के तौर पर पंजीयन कराने वालों की संख्या पिछले साल 18.8 करोड़ रही, जो इस साल बढ़कर 19.05 करोड़ हो सकती है। इसके साथ ही पूरी दुनिया में करीब 28.5 करोड़ लोगों के पास ढंग का रोजगार नहीं है। इसका मतलब यह है कि या तो वे उन्हें उम्मीद से कमतर काम मिल पाता है या फिर वे काम की तलाश करना ही छोड़ चुके हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनकी श्रम बाजार तक पहुंच नहीं है।
गाय रैडर ने कहा, “काम करने वाले करोड़ों लोगों के लिए अपनी जिंदगी को बेहतर बना पाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है।” उन्होंने काम से संबंधित असमानता और भेदभाव लगातार जारी रहने के खतरों को लेकर भी चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “तनख्वाह के मामले में सबसे ज्यादा और सबसे कम कमाने वालों के बीच का अंतर बढ़कर ‘बेहद असमान’ हो चुका है। मुझे लगता है कि यह चिंता का विषय है। सबसे ज्यादा मेहनताना पाने वाले 20% लोग एक साल में जितना कमाते हैं, सबसे निचले 20% लोगों को उतने मेहनताने के लिए 11 साल का वक्त लगा।”
रैडर ने कहा, “आज के हालात हमारे पहले के अनुमान से कहीं बदतर हैं।” उन्होंने बेरोजगारी के समाज और देश पर पड़ने वाले असर को लेकर कहा, “दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन और बढ़ती अशांति की एक बड़ी वजह उचित रोजगार न मिल पाना भी है।” लेबनान और चिली के प्रदर्शनों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दुनियाभर के श्रम बाजारों के हालात से अशांति को बढ़ावा मिला है। कई समुदायों में सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है।
श्रम संगठन की रिपोर्ट में कहा गया कि दुनियाभर की 60% श्रमशक्ति असंगठित क्षेत्र में काम करती है। इन्हें अक्सर कम मेहनताना दिया जाता है और बुनियादी सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती। 2019 में दुनिया की आबादी का पांचवां हिस्सा यानी 63 करोड़ ‘कामकाजी गरीबी’ झेल रहे थे। इन्हें हर दिन 3.2 डॉलर की न्यूनतम खरीद क्षमता भी हासिल नहीं थी। श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में दुनिया में लिंग, उम्र और भौगोलिक स्थिति के आधार पर आमदनी और रोजगार में बढ़ती असमानता पर भी चिंता जताई।
रिपोर्ट में बताया गया कि 2004 से 2017 के बीच 15 से 24 साल के 26.7 करोड़ लोग शिक्षा, प्रशिक्षण या रोजगार से वंचित रहे। इससे कहीं ज्यादा संख्या उन लोगों की थी, जो बदतर हालात में काम करने को मजबूर थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस दौरान तनख्वाह और मजदूरी पर खर्च किया जाने वाला हिस्सा भी देशों की राष्ट्रीय कमाई का 54% से घटकर 51% रह गया। ये आंकड़े आंखें खोलने वाले हैं और यह स्थिति मात्र भारत की नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया की है। 

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