उत्तराखंड : बंद होगी सरकारी भूमि की बंदरबांट!

त्रिवेंद्र सरकार का दूरगामी फैसला

  • राजस्व विभाग ने खाली पड़ी सरकारी भूमि के लिये तैयार किया नई नीति का प्रस्ताव
  • अब उद्यम और जैविक खेती के लिये जरूरतमंदों को मिल सकेगी सरकारी भूमि
  • टेंडर जारी होंगे और सर्किल रेट के आधार पर तय की जाएगी न्यूनतम बोली

देहरादून। त्रिवेंद्र सरकार ने सरकारी जमीनों की बंदरबांट रोकने की तैयारी कर ली है। जल्द ही अब प्रदेशभर में उपलब्ध खाली सरकारी भूमि जरूरतमंदों को मिल सकेगी। इसके लिए राजस्व विभाग ने नई नीति तैयार की है। इसके तहत टेंडर जारी होंगे और सर्किल रेट के आधार पर न्यूनतम बोली तय की जाएगी।
गौरतलब है प्रदेश बनने के साथ ही करीब पिछले 19 साल से होरी सरकारी भूमि की बंदरबांट पर सवाल उठते रहे हैं। त्रिवेंद्र सरकार ने अंकुश लगाने की तैयारी कर ली है। इसके तहत जरूरतमंद लोगों को समान रूप से सरकारी जमीन लेने का मौका भी मिलेगा। सरकारी जमीन का जिले स्तर पर रजिस्टर बनेगा और भूमि आवंटन के लिए टेंडर निकाला जाएगा।
प्रदेश सरकार इस समय निजी क्षेत्र में लोगों को गवर्मेंट ग्रांट एक्ट सहित अन्य कई तरीकों से पट्टे आदि पर भूमि उपलब्ध कराती है। सरकार के इन फैसलों पर अकसर सवाल भी उठते रहे हैं। लोग इसे सरकारी भूमि की बंदरबांट भी कहते रहे हैं। सरकार का मानना है कि इस नई नीति से लोगाें को सरकारी भूमि पाने का समान अवसर मिलेगा।
नीति में स्पष्ट रूप से इसकी व्यवस्था की जा रही है। इससे सरकार को दोहरा फायदा होगा। पहला यह कि जिले स्तर पर यह स्पष्ट हो पाएगा कि कहां कितनी सरकारी भूमि उपलब्ध है। दूसरा यह कि सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा।
नई नीति तहत बनाई जा रही व्यवस्था में जिले स्तर पर डीएम सरकारी भूमि को चिह्नीत करेंगे और रजिस्टर तैयार कराएंगे।जिलाधिकारी एक कमेटी का गठन करेंगे। यह कमेटी रजिस्टर में दर्ज भूमि का सार्वजनिक रूप से प्रकाशन कराएगी और इच्छुक लोगों से आवेदन मांगेगी। भूमि की न्यूनतम दर सर्किल रेट के आधार पर तय होगी।
इसके साथ ही लोगों को जमीन देने की प्राथमिकता तय होगी। इसमें भूमि के उपयोग का प्रावधान मसलन उद्योग, जैविक खेती आदि भी देखा जाएगा। राज्य सरकार अपनी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को वरीयता देगी। यह भी देखा जाएगा कि परियोजना कितने समय में पूरी होगी। इससे कितने लोगों को रोजगार मिलेगा। अधिक लोगों को रोजगार देने वाली परियोजनाओं को आगे रखा जाएगा। यह भी देखा जाएगा कि सरकार को इससे राजस्व का कितना फायदा होगा।
सरकारी भूमि को निजी क्षेत्र को देने की स्थिति में प्रदेश सरकार की नीति के पारदर्शी न होने का आरोप लगता रहा है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी इसमें सरकार को पारदर्शी नीति बनाने का आदेश जारी किया था। इसके चलते सरकार को अब ऐसी नीति बनाने जा रही है जिससे उस पर कोई सवालिया निशान न लगा सके। शासन के सूत्रों का कहना है कि इस नीति को अंतिम रूप दिया जा चुका है उच्च स्तर पर मंथन जारी है और नीति को मंत्रिमंडल के समक्ष भी रखा सकता है। इस बारे में सचिव राजस्व सुशील कुमार का कहना है कि सरकारी भूमि को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से कई आदेश अलग-अलग समय में जारी किए गए हैं। इन निर्देशों के आधार पर ही शासन स्तर पर निर्णय लिया जाना है। शासन स्तर पर यह मामला विचाराधीन है। नीति को अंतिम स्वरूप मिल जाने के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है। निर्णय जल्द से जल्द लेने की कोशिश की जा रही है।

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