उत्तराखंड में इस गांव के लोग जड़ी-बूटी से करते हैं खुद का इलाज

  • पीढ़ियों से नहीं किया अंग्रेजी दवा का सेवन
  • जड़ी-बुटियों का अथाह भंडार, विकास की किरणाों से अछुता

देहरादून। टिहरी जिले में हरियाली से आच्छादित एक गांव है गंगी। भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित इस गांव से आगे कोई आबादी नहीं है। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां के लोग बीमार होने पर आज भी अंग्रेजी दवाई नहीं खाते हैं। यहां दुर्लभ जड़ी-बुटियों का अथाह भंडार है। पीढ़ियों से इस गांव के लोग जड़ी-बुटियों का घोल बनाकर ही अपना इलाज करते हैं। कुदरत का करिश्मा भी है कि जड़ी-बुटियों के सेवन से यहां के लोग स्वस्थ भी हो जाते हैं। गौर करने वाले बात यह है कि यहां के लोगों ने अंग्रेजी दवा का सेवन नहीं किया। बीमार होने पर जड़ी- बूटियों से अपना इलाज किया। गौरतलब हो कि नई टिहरी जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर भारत- तिब्बत सीमा पर स्थित है। 160 की आबादी वाले इस गांव में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। लेकिन प्राकृतिक इस गांव पर नेमत बरसायी है। यहां अतीस, कूट, कुटकी, चिरायता, छतवा, और सिंगपरणी जैसी दुर्लभ जड़ी- बूटियां होती हैं जो बुखार, खांसी, पेट से संबधित बीमारी, सूगर और लीवर से संबधित बीमारियों में काफी फायदेमंद है। गंगी के लोगों का कहना है कि यहां कई जड़ी- बूटियां ऐसी हैं कि उन्हें भी जानकारी नहीं है। सरकारों की अनदेखी से गंगी गांव उपेक्षा का शिकार है।

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