उत्तराखंड में अब सेटेलाइट की निगरानी में रहेंगे ग्लेशियर

देहरादून। उत्तराखंड में केदारनाथ और चमोली जैसी भयावह आपदा फिर न हो, इसके लिए राज्य सरकार ने इन आपदाओं से सबक लेते हुए अब पहले से ही ग्लेशियरों की निगरानी करने का निर्णय लिया है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्नो एवलांच, ग्लेशियर टूटने और भारी-भरकम चट्टानों के दरकने से आने वाली भयावह प्राकृतिक आपदाओं, झील व भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की निगरानी को लेकर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) ने भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आइआइआरएस) के साथ एमओयू किया है।
यह एमओयू आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास मंत्री डॉ. धन सिंह रावत की उपस्थिति में किया गया। बता दें कि यूएसडीएमए और आइआइआरएस के बीच कुल दो एमओयू किए गए हैं। एक एमओयू के तहत आइआइआरएस अधिकारी आपदा प्रबंधन से संबंधित प्राधिकरणों को सेटेलाइट निगरानी पर प्रशिक्षण देंगे। वहीं, दूसरे व मुख्य एमओयू के तहत आइआइआरएस राज्य के ग्लेशियरों व भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की सेटेलाइट से निरंतर निगरानी करेगा। इसके साथ ही संस्थान राज्य में हिमस्खलन और भूस्खलन से होने वाली आपदा की घटनाओं से बचाव के लिए भी अध्ययन करेगा। आपदा प्रबंधन मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि यह समझौता आने वाले समय के लिए राज्य के लिए अहम होंगे। उन्होंने कहा कि राज्य में आने वाली विभिन्न आपदाओं एवं अन्य चुनौतियों से निपटने में संस्थान का तकनीकी सहयोग व प्रशिक्षण लाभकारी साबित होगा।
आइआइआरएस के निदेशक डॉ. प्रकाश चौहान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में ग्लेशियरों के आकार में निरंतर बदलाव हो रहा है। ग्लेशियर झीलें तेजी से बन और टूट रही हैं। यदि ग्लेशियरों से होने वाले हिमस्खलन व ग्लेशियर में झील बनने की प्रक्रिया की निरंतर निगरानी की जाए तो पहले ही यह पता लगाया जा सकता है कि किस ग्लेशियर से हिमस्खलन होने वाला है या कौन सी ग्लेशियर झील टूटने के कगार पर है। इसके साथ ही भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की निगरानी से आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस दौरान डॉ. प्रकाश चौहान ने विभिन्न अध्ययनों का प्रस्तुतिकरण देते हुए पूर्व में केदारनाथ एवं उत्तरकाशी में आई आपदाओं का सेटेलाइट तस्वीरों की जानकारी दी।

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