पीओके और अक्साईचिन वापस लेने को तैयार खड़ी सेना!

जनरल बिपिन रावत की दो टूक

  • करगिल के शहीदों को दी श्रद्धांजलि, हमारी सेना किसी भी आदेश का पालन करने को तैयार
  • कहा, 1947 में जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बना, इस  राज्य पर भारत का पूरा अधिकार 
  • अब हमें कैसे अक्साईचिन और पीओके वापस लेना है, राजनीतिक नेतृत्व को लेना है यह फैसला  
  • कश्मीर में सेना के खिलाफ जो बंदूक उठाएगा वो कब्र में जाएगा और वो बंदूक हमारे पास आएगी

जम्मू। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने द्रास में करगिल युद्ध स्मारक पर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि वर्ष 1947 में जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बना। फिर यहां सेना पहुंची। भारत का इस राज्य पर पूरा अधिकार है। अब हमें कैसे अक्साईचिन और पीओके वापस लेना है, यह फैसला राजनीतिक नेतृत्व को लेना है। सेना किसी भी आदेश का पालन करने को तैयार है। पीओके और अक्साईचिन का जो हिस्सा हमारे नियंत्रण में नहीं है, उसको लेकर देश के राजनीतिक नेतृत्व को तय करना है कि उसे कैसे हासिल किया जाए। 


जनरल रावत जब ये बातें कहीं तो उनके साथ एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ और नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह भी मौजूद थे। तीनों सेना प्रमुख ने शहीदों को याद किया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में बंदूक और युवा एक साथ नहीं चल सकते हैं। जो भी कश्मीर में सेना के खिलाफ बंदूक उठाएगा वो कब्र में जाएगा और उसकी बंदूक हमारे पास आएगी। हालांकि, ये एकमात्र हल नहीं है। हमारी कोशिश है कि यहां का युवा रोजगार की तरफ आगे बढ़े। अपने सुनहरे भविष्य का रास्ता अपनाए। अब भी सेना दिग्भ्रमित युवाओं तक पहुंचने और समझाने का प्रयास कर रही है ताकि वह आतंक का रास्ता छोड़ दे। इसके लिए समाज की मदद ली जा रही है। समाज के संभ्रांत लोगों, मौलवियों से बात की जा रही है। 


इससे पहले तीनों सेना प्रमुखों ने शुक्रवार को द्रास में करगिल युद्ध स्मारक पर करगिल शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर शहीदों को याद किया। इसके साथ ही दिल्ली से शुरू हुई विजय मशाल को युद्ध स्मारक पर समर्पित किया। युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद उन्होंने कहा कि इन वीर शहीदों की वजह से दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। सेना अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सेना इन वीर शहीदों के परिवार के साथ सुख-दुख की घड़ी में पूरी तरह खड़ी है। करगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ पर दिल्ली के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक से शुरू विजय मशाल के द्रास स्थित करगिल युद्ध स्मारक तक पहुंचने पर सेना प्रमुख ने उसे हासिल किया। साथ ही उसे वहां प्रज्ज्वलित मशाल के साथ शामिल किया। 
गौरतलब है कि रक्षा मंत्री ने 14 जुलाई को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर सेना के सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज सूबेदार जीतू राय को विजय मशाल सौंपी थी। यह उत्तर भारत के नौ प्रमुख शहरों की 1000 किलोमीटर यात्रा कर शुक्रवार को द्रास स्थित करगिल में शहीदों की कर्मभूमि पर पहुंचीं। इससे पहले 20 जुलाई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने द्रास में कारगिल वार मेमोरियल पहुंचकर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए थे। सेना प्रमुखों ने करगिल युद्ध स्मारक का दौरा करने के साथ ही वहां पहुंची वीर नारियों तथा सेक्टर में तैनात जवानों के साथ संवाद किया। उन्होंने जवानों का हौसला बढ़ाया और वीर नारियों के प्रति सम्मान व्यक्त किया। 
द्रास में आयोजित समारोह में जनरल वीपी मलिक (सेवानिवृत्त) जो करगिल संघर्ष के दौरान सेना प्रमुख रहे थे, भी उपस्थित रहे। 

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