पांच वर्ष तक के बच्चे को बचायें स्क्रीन से!

  • स्मार्ट फोन, टीवी और अन्य डिवाइसों के नुकसान के बारे में डब्लूएचओ ने जारी की गाइडलाइंस 
  • इनके ज्यादा इस्तेमाल करने से अंधे भी हो रहे लोग, एक शोध में खुलासा

आजकल स्मार्ट फोन दुनियाभर में लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं और सुबह जगने से लेकर रात को सोने तक बार-बार फोन की स्क्रीन देखते रहना लोगों की एक आदत सी बन चुकी है। ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान स्मार्ट फोन या अन्य डिवाइसेज की स्क्रीन आंखों को पहुंचा रही हैं। इस बारे में किये गये एक शोध में खुलासा हुआ है कि इसके ज्यादा इस्तेमाल करने से लोग अंधे भी हो सकते हैं। इसको ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों के लिए गाइडलाइंस जारी की हैं।
डब्लूएचओ ने गत रोज बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में छोटे बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधी गाइडलाइंस में कहा है कि बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी है कि इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन को उनके जीवन का हिस्सा न बनाया जाए। रिपोर्ट के अनुसार ये डिवाइस भले ही हम लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हों, लेकिन जहां तक संभव हो बच्चों खासतौर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को इससे दूर ही रखें ।
इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि एक साल या इससे कम उम्र के नवजात शिशुओं को तो स्क्रीन के सामने बिलकुल नहीं लाना चाहिए। साथ ही शिशुओं को दिन भर में एक घंटे से ज्यादा स्ट्रॉलर्स, हाई-चेयर या स्ट्रैप ऑन कैरियर्स में भी नहीं रखना चाहिए। एक साल तक के बच्चे दिनभर जितने ऐक्टिव रहें, उतना ही अच्छा है। दूसरी ओर एक साल से दो साल तक के बच्चों के लिए कुछ मिनटों का ही स्क्रीन टाइम काफी है। साथ ही कम से कम तीन घंटे की फिजिकल ऐक्टिविटी ऐसे बच्चों के लिए बेहद जरूरी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन से चार साल तक के बच्चों को दिनभर में एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन के सामने नहीं रखना चाहिए। वह चाहे  टीवी हो, स्मार्टफोन हो या फिर कोई और गैजेट। इस उम्र के बच्चों को दिनभर में तीन से चार घंटे शारीरिक गतिविधियों से जुड़े खेलों में समय दिया जाना चाहिये।
आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में मां—बाप अपने बच्चों को उतना वक्त नहीं दे पाते, जितना दिया जाना चाहिये। इसलिए अधिकतर मां—बाप अपने बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं या फिर टीवी के सामने बिठा दिया जाता है। लेकिन यह बच्चों के लिए एक मीठे जहर की तरह काम करता है। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पांच साल से कम के बच्चे अगर बहुत ज्यादा स्क्रीन के सामने वक्त बिताते हैं तो उनकी दिनचर्या निष्क्रिय और गतिहीन हो जाती है जिससे उनकी रुचि खेलकूद और गतिविधियों में घट जाने से नींद नहीं आने की समस्या होने लगती है। आगे चलकर ऐसे बच्चे मोटापा और उससे संबंधित दूसरी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं और उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी सही तरीके से नहीं हो पाता। इसलिए भी बच्चों के स्क्रीन टाइम पर रोक लगाना बेहद जरूरी हो गया है।

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