उत्तराखंड : जब खाली पद कर रहे खत्म तो युवाओं को कहां से मिलेगी नौकरी!

सबसे शाही नौकरशाही

  • धामी सरकार ने मानीं सरकारी बोझ घटाने के लिये पंचम राज्य वित्त आयोग की सिफारिशें
  • तमाम सरकारी विभागों में तीन साल से खाली पड़े सभी पदों को किया जाएगा समाप्त
  • खर्च पर काबू पाने के लिए सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की तैयारी

देहरादून। उत्तराखंड में सबसे शाही नौकरशाही है। एक ओर भारी भरकम वेतन, भत्तों और सुविधाओं से देवभूमि की आर्थिकी चरमराती जा रही है तो दूसरी ओर रोजगार और नौकरी के लिये दर दर भटक रहे युवा वर्ग के लिये धामी सरकार ने सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद करने की तैयारी कर ली है।
इसका ताजा उदाहरण पंचम राज्य वित्त आयोग की प्रदेश में आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाले व भर्ती में देरी को छोड़कर सरकारी विभागों में तीन साल से अधिक समय से खाली पड़े पद समाप्त करने की सिफारिश है। धामी सरकार ने पंचम राज्य वित्त आयोग की इस सिफारिश स्वीकार कर लिया है। यह खुलासा आयोग की सिफारिशों पर विधानसभा के पटल पर बुधवार को रखी गई कार्यवाही रिपोर्ट (एक्शन टेकन रिपोर्ट) से हुआ।
धामी सरकार ने पदों को समाप्त करने की आयोग की सिफारिश पर कार्मिक विभाग को कार्रवाई करने के लिए कहा है। रिपोर्ट के अनुसार, खर्च पर नियंत्रण के लिए सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की सिफारिश भी मानी गई है। आयोग ने 2021-26 के लिए सरकार को 43 महत्वपूर्ण सिफारिशें सौंपी थीं। इन सिफारिशों पर सरकार ने कार्यवाही रिपोर्ट सदन पटल पर रखी। राज्य के पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय की अध्यक्षता में गठित पंचम राज्य वित्त आयोग में तत्कालीन अपर सचिव वित्त भूपेश चंद्र तिवारी सदस्य सचिव थे और डॉ. एमसी जोशी व पूर्व आईएएस सुरेंद्र सिंह रावत सदस्य बनाए गए थे। आयोग ने राज्य सरकार को अपनी सिफारिशें सौंप दी थीं।
आज बुधवार को सदन पटल पर उसकी रिपोर्ट पेश हुई। रिपोर्ट के अनुसार आयोग ने खर्च कम करने के लिए विभागों के सही आकार तय करने और समान कार्यों वाले विभागों का विलय करने की सिफारिश की। ऐसे कर्मचारी, जिन्हें कहीं समायोजित नहीं किया जा सकता है, आयोग ने उनके लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना तैयार करने की सलाह दी।
आयोग ने सिफारिश की कि जहां उपयोगिता नहीं रह गई है, वहां चरणबद्ध ढंग से सब्सिडी समाप्त की जानी चाहिए। सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार किया है। रिपोर्ट में राज्य सरकारी की 90 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली सहकारी चीनी मिलों के निजीकरण, उन्हें पीपीपी मोड पर चलाने व इथेनॉल प्लांट बदलने की सिफारिश का उल्लेख है। आयोग का मानना है कि बिजली क्षेत्र में सब्सिडी को धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाए।
राज्य वित्त आयोग ने कोविड महामारी के कारण बढ़ती जिम्मेदारियों को देखते हुए अपने राजस्व (जीएसटी मुआवजे सहित) के 11 प्रतिशत हस्तांतरण की सिफारिश की। इसे शहरी स्थानीय निकाय और ग्रामीण निकायों के बीच 60 व 40 के अनुपात में विभाजित किया गया। सरकार ने 10.50 प्रतिशत धनराशि ही रखे जाने को ही मंजूरी दी।
राज्य वित्त आयोग की सिफारिश पर किस शहरी और ग्रामीण निकाय को कितना प्रतिशत अंश मिलेगा, यह भी निर्धारित किया गया है। शहरी स्थानीय निकायों में नगर निगमों के लिए 40 प्रतिशत, नगर पालिका के लिए 47 प्रतिशत और नगर पंचायतों के लिए 13 प्रतिशत की सिफारिश की गई है। ग्रामीण निकायों में जिला पंचायतों के 37.5 प्रतिशत क्षेत्र पंचायतों के लिए 17.5 प्रतिशत और ग्राम पंचायतों के लिए 45 प्रतिशत अंश तय हुआ है।
आयोग के अधिनिर्णय की अवधि में नवसृजित नगर पालिका व नगर पंचायतों को 1.25 करोड़ रुपये और शेष वर्षों के लिए एक करोड़ रुपये का अनुदान मिलेगा। आयोग ने शेष वर्षों के लिए 75 लाख की सिफारिश की, जिसे सरकार ने बढ़ाया। नई, स्टाफ कार व जीप अनुदान से नहीं खरीदी जाएंगी। आयोग की सिफारिश में संशोधन करते हुए सरकार ने बदरीनाथ नगर पालिका को एक करोड़ के स्थान पर दो करोड़ और केदारनाथ व गंगोत्री निकाय के लिए 50 लाख की जगह दो करोड़ देने को स्वीकृति दी।
आयोग का मानना है कि स्कूलों, कॉलेजों, औद्योगिक प्रशिक्षण व पॉलिटेक्निक व अन्य शैक्षिक संस्थानों में बड़े खर्च की जांच की जानी चाहिए। जिन संस्थानों में बुनियादी ढांचा न के बराबर हैं, छात्र शिक्षक अनुपात कम है, उन्हें बंद करना चाहिए। पड़ोसी क्षेत्र के संस्थानों में इन्हें मिला देना चाहिए। आयोग की इस सिफारिश को भी सरकार ने मान लिया है।
कर्मचारियों के वेतन भत्ते और पेंशन का खर्च कम करने के लिए विभागों का पुनर्गठन किया जाए।नगरपालिका क्षेत्र में बिजली की खपत पर एक अधिभार या उपकर लगे, इससे बिजली बिलों का भुगतान हो।
विस्तृत सर्वेक्षण के बाद जीआईसी आधारित मास्टर प्लान तैयार हो, इसके लिए 15 करोड़ अनुदान दिया जाए। 400 करोड़ की ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना में राज्य के हिस्से की 180 करोड़ के अनुदान और भूमिगत कचरा बिन स्थापित करने के लिए 20 करोड़ रुपये की सिफारिश की।
शहरी निकायों में देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी में विद्युत शवदाह गृह बनें, 100 करोड़ के संयुक्त अनुदान की सिफारिश की। प्रदेश के ग्रामीण निकायों में 20 करोड़ रुपये का संयुक्त अनुदान दिया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों को सुगम बनाना होगा। स्वैच्छिक, समेकित, प्रसंस्करण उद्योग लिंकेज के साथ अनुबंध खेती व तकनीकी निवेश की समीक्षा होनी चाहिए।
कृषि, बागवानी अनुसंधान, प्रसंस्करण, उत्पादन, विपणन में यदि गंभीर अड़चन हैं, तो संस्थागत संरचना और रणनीति में बदलाव किए जाएं। बैंकाक की तर्ज पर जैव चिकित्सा अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान आवश्यक है। पर्यटन विकास योजना पर नए सिरे से विचार कर भविष्य की योजनाओं और रणनीतियों को बदली हुई परिस्थितियों के अनुरूप तैयार करना होगा। शहरी स्थानीय निकायों के लिए वैल्यू कैप्चर फाइनेंस को राजस्व का महत्वपूर्ण स्रोत बनाया जा सकता है। विकास प्राधिकरण बेहतरी शुल्क, विकास शुल्क लागू कर सकते हैं।
आयोग ने पूर्ववर्तीय आयोग की तर्ज पर जिला पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों को संपत्ति एवं विभव कर को व्यवसाय कर के रूप में लगाने की सिफारिश की है। ग्राम पंचायतों के कार्यालयों में कर्मचारियों की कमी को दूर किया जाना चाहिए। शहरी स्थानीय निकायों के भीतर एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन या प्रकोष्ठ बनें, जिसमें विशिष्ट तकनीक और प्रबंधकीय विशेषज्ञता वाले कर्मचारी हों। शहरीकरण से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विचार करने और स्थानीय परिस्थितियों व विभिन्न हितधारकों के लिए उपयुक्त व उचित समाधान के उपाय सुझाने के लिए शहरी विकास संस्थान की स्थापना होनी चाहिए। शहरी विकास निदेशालय को भी मजबूत किया जाना चाहिए।

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