देहरादून। प्रदेश सरकार को हर साल सैकड़ों करोड़ का लाभ देने वाला वन विकास निगम खुद कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। सेवा नियमावली न बन पाने के कारण 20 साल से नई भर्तियां नहीं हो पा रही हैं। दूसरी तरफ पुराने कर्मचारी लगातार रिटायर हो रहे हैं। अनुमान के मुताबिक अगले दो साल में निगम में मात्र 20 फीसद कर्मचारी ही बचेंगे।जब 2001 में निगम का गठन हुआ था, तब फील्ड और कार्यालय कर्मियों की संख्या 3500 थी। वर्तमान में 2828 कर्मियों का ढांचा स्वीकृत है। इसके सापेक्ष मात्र 1750 कार्मिक कार्यरत हैं। निगम में कार्यरत कर्मियों में से 2024 में करीब 60 प्रतिशत कर्मचारी रिटायर हो जाएंगे। इसके बाद 20 प्रतिशत कर्मचारी ही मात्र रह जाएंगे। 2002 में एक नियमितीकरण के बाद कभी भी निगम में भर्ती नहीं हुई। वर्ष 2007 में निगम का ढांचा बना, लेकिन सेवा नियमावली आज तक नहीं बन पाई। इन सब स्थितियों के बीच निगम की गाड़ी कैसे आगे बढ़ेगी, इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।शासन की ओर से वन विकास निगम में क श्रेणी के 54 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 26 पद कार्यरत, जबकि 28 पद रिक्त पड़े हैं। वहीं ख श्रेणी के 100 पदों के सापेक्ष 70 कार्यरत और 30 खाली पड़े हैं। ग श्रेणी के तहत 1576 पदों के सापेक्ष 881 कार्यरत और 695 पद रिक्त पड़े हैं। इसी तरह से घ श्रेणी के 1098 पदों के सापेक्ष 773 पद कार्यरत, जबकि 325 पद रिक्त पड़े हैं।इस बाबत प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड वन विकास निगम डीजेके शर्मा ने कहा, मैं पिछले आठ माह से निगम के एमडी का काम देख रहा हूं। इससे पूर्व क्या हुआ, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता हूं। लेकिन मैंने इन आठ माह में नई भर्ती के लिए नियामावली तैयार करवाई। जो वर्तमान में शासन स्तर पर नोटिफिकेशन के लिए तैयार है। संभवत आचार संहिता खत्म होने के बाद इसे जारी कर दिया जाए। इसके बाद निगम में नई भर्तियां हो सकेंगी। हमारी कोशिश है कि मई माह तक भर्तियों के अधियाचन आयोग को भेजकर इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया जाए।चेयरमैन बने जन प्रतिनिधियों ने भी नहीं दिया ध्यानस्थापना के बाद से उत्तराखंड वन विकास निगम में अब तक सात चेयरमैन रहे हैं। इन पर निगम की ओर से मानदेय, स्टाफ, वाहन, आवास के अलावा तमाम भत्तों पर मोटी रकम खर्च की जाती है। चेयरमैन बने जन प्रतिनिधियों ने भी कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि निगम कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है।उत्तराखंड वन विकास निगम के चेयरमैन सुरेश परिहार ने कहा कि वे निगम से जुड़े तमाम प्रकरणों को लेकर निगम के एमडी समेत तमाम दूसरे अधिकारियों से शीघ्र चर्चा करेंगे। निगम को कंपनी एक्ट में लाए जाने पर कहा कि इस तरह का कोई पत्र हमें अभी प्राप्त नहीं हुआ है। अगर शासन इस पर कोई विचार कर रहा है तो इसके लिए प्रबंध निदेशक की बैठक में चर्चा के बाद ही आगे बढ़ा जाना चाहिए। इसके अलावा कर्मचारी संगठनों को भी भरोसे में लिया जाना चाहिए।
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