मां का पेट पालने को ‘बैल’ बने भाई-बहन!

‘मोटे पेट’ वालो, इन्हें भी देखो

  • कर्नाटक के कारवार जिले में इस परिवार के पास थोड़ी जमीन है, लेकिन इसे जोतने के लिए कोई साधन नहीं
  • ऐसे में मां और अपना पेट भरने के लिये पिछले 15 सालों से खुद बैलों की तरह खेत जोत रहे भाई-बहन

कारवार। कर्नाटक के कारवार जिले के छोटे से गांव में रहने वाले इस परिवार के पास आय का कोई साधन नहीं है। थोड़ी सी जमीन है, लेकिन इसे जोतने के लिए बैल या दूसरा कोई साधन नहीं है। ऐसे में दोनों भाई-बहन अपना और अपनी मां का पेट भरने के लिये खुद बैलों की तरह बीते 15 वर्षों से खेत जोत रहे हैं। 
भाई गिरिधर गुनागी (30) और उनके बहन सुजाता गुनागी (25) इन दिनों खेत की जुताई जुटे हैं। गिरिधर ने बताया कि जब वह तीन साल का था, तब उसे आर्थराइटिस हो गया था। उसने किसी तरह आठवीं तक पढ़ाई की, लेकिन उसके आगे नहीं पढ़ सका। वह दवाएं खाकर खेतों में जुताई में जुट जाता है। 
बहन सुजाता ने बताया, ‘मैं और मेरा भाई मां के साथ रहते हैं। मां की उम्र लगभग 70 साल है। हम जैविक खेती करते हैं और उसे मां बाजार में बेचने जाती हैं। हम खेत जोतने के लिए बैल या दूसरे साधन नहीं ले सकते, इसलिए खुद खेत जोतते हैं। हम रोज सुबह दो घंटे और शाम को दो घंटे खेत जोतने का काम करते हैं।’ 
उन्होंने बताया कि आर्थराइटिस के कारण भाई के शरीर में रोज भयंकर दर्द होता है। वह दर्द से चीखता है और दवाएं खाकर किसी तरह सो जाता है। उन्हें बहुत बुरा लगता है लेकिन मजबूरी के कारण वे कुछ नहीं कर सकते। उन्होंने बताया कि वे लोग कृषि विभाग से सब्सिडी वाला टिलर लेने गए थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना क्या है। उनका तो बैंक में खाता ही नहीं है। 
गिरिधर ने बताया कि उनके पिता की 20 साल पहले अचानक मौत हो गई थी। उनकी मां को कई वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा। जब वे थोड़ा बड़े हुए तो खेतों की कमान अपने हाथों में संभाल ली। अब सब्जियां उगाकर बेचने पर जो रुपये मिलते हैं, उनसे वे लोग किसी तरह गुजर बसर करते हैं। 

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