उन्नाव केस में सुप्रीम कोर्ट के तीन अहम आदेश
- परिवार के कहने पर लखनऊ में ही चलेगा पीड़िता का इलाज
- पीड़िता के चाचा रायबरेली से तिहाड़ जेल दिल्ली में होंगे शिफ्ट
- मीडिया को भी दी हिदायत, हर हाल में छिपायें पीड़िता की पहचान
नई दिल्ली। उन्नाव गैंगरेप केस में लगातार दूसरे दिन आज शुक्रवार को भी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़िता का लखनऊ के अस्पताल में ही इलाज जारी रखने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता के ट्रांसफर पर कोई आदेश नहीं दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अभी लखनऊ में इलाज होने दें और अगर जरूरत पड़ती है तो पीड़िता की तरफ से रजिस्ट्री आकर ट्रांसफर के लिए कहा जा सकता है। इससे साफ हो गया है कि पीड़िता को एयरलिफ्ट कर दिल्ली नहीं लाया जाएगा। गौरतलब है कि पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह अपनी बेटी का उपचार लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में ही जारी रखना चाहती हैं। वह उसे उपचार के लिए दिल्ली शिफ्ट नहीं करना चाहतीं। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि सुरक्षा के मुद्देनजर पीड़िता के चाचा को रायबरेली से दिल्ली के तिहाड़ जेल में फौरन शिफ्ट किया जाए।
शीर्ष न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडया से पीड़िता की पहचान हर हाल में छुपाने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उन्नाव केस की रिपोर्टिंग करते समय मीडिया इस बात का ध्यान रखे कि पीड़िता की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उजागर न हो। अब मामले की सुनवाई सोमवार को होगी। आज शुक्रवार को सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा रेप पीड़िता को सौंप दिया गया है। एक दिन पहले ही शीर्ष अदालत ने रायबरेली के पास सड़क दुर्घटना में जख्मी रेप पीड़िता को अंतरिम मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये देने का आदेश प्रदेश सरकार को दिया था। सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि पीड़िता के चाचा को शिफ्ट करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है जो फिलहाल रायबरेली जेल में बंद हैं।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को उन्नाव रेप कांड से संबंधित सभी पांचों मुकदमे उत्तर प्रदेश की अदालत से दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने तीस हजारी अदालत के जिला न्यायाधीश धर्मेश शर्मा को रेप कांड से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई का जिम्मा सौंपा है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि रेप से संबंधित मुख्य मामले की सुनवाई 45 दिन के भीतर पूरी की जाए।