मुजफ्फरनगर। आंदोलनकारी महिला से सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों पीएसी के सेवानिवृत्त सिपाहियों को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। घटना के 30 साल बाद पीड़िता को इंसाफ मिला है। चार दिन पहले अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश शक्ति सिंह ने सामूहिक दुष्कर्म के दो आरोपित पीएसी के सेवानिवृत्त दो सिपाहियों को मामले में दोषी ठहराया था। सोमवार को सजा के प्रश्न पर कोर्ट में बहस हुई। दोनों पक्ष की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने दुष्कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
कोर्ट ने घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह ऐसी घटना से समाज शर्मसार हुआ। अंग्रेजों के जमाने में जलियांवाला कांड हुआ था, लेकिन आजाद भारत में लोकतांत्रिक परंपरा के तहत अपनी मांगों को मनवाने के लिए शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे महिलाओं के साथ इस तरह की घटना कारित करना अक्षम्यहै। उत्तराखंड संघर्ष समिति की ओर से अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि राज्य उत्तराखंड गठन के लिए 30 वर्ष पूर्व आंदोलन हुआ था। एक अक्टूबर 1994 को बस में सवार होकर हजारों आंदोलनकारी उत्तराखंड से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। इसी दिन शाम के समय थाना छपार क्षेत्र के रामपुर तिराहा पर पुलिस ने बैरिकेडिंग कर आंदोलनकारियों के वाहनों को रोक लिया था। यहां टकराव होने पर पुलिस की फायरिंग में सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। जबकि कई महिला आंदोलनकारियों से दुष्कर्म की शिकायत सामने आई थी।
जिला शासकीय अधिवक्ता राजीव शर्मा और सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता परविंदर सिंह ने बताया कि उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में मिसलेनियस रिट पिटीशन फाइल की थी। इसके बाद लखनऊ सीबीआइ, एसआइटी के एसपी एसआर अग्रवाल ने 25 जनवरी 1995 में एफआइआर कराई थी। सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले की विवेचना सीबीआई देहरादून ने की थी, जिसमें यह तथ्य सामने आया था कि उत्तराखंड संघर्ष समिति के आह्वान पर रैली में भाग लेने के लिए एक आंदोलनकारी महिला उत्तराखंड के श्रीनगर से दिल्ली के लिए बस संख्या यूपी-411 में सवार होकर चली थी। रामपुर तिराहा पर दो अक्टूबर 1994 की रात एक बजे बस को रोक लिया गया था।