चौखुटिया के झलाहाट में प्रशासन ने ड्रोन से देखी जमीन

  • चीन के साथ बिगड़ते हालातों के मध्यनगर एयरपोर्ट बनाने की तैयारी
  • सेना ने उत्तराखंड की सीमा पर जंगलों में बिछाई माइन
  • ग्रामीणों को जंगलों की ओर नहीं जाने के लिए किया आघाह


देहरादून से गजे सिंह बिष्ट
चीन के साथ बिगड़ते हालातों को देखते हुए भारत सचेत हो गया है। प्रदेश में चौखुटिया के झलाहाट गांव में एयरपोर्ट बनाने को लेकर हलचल तेज हो गई है। इन दिनों वहां ड्रोन से फोटोग्राफ लिए जा रहे हैं। इसी 17 सितंबर को आपदा प्रबंधन की टीम और स्थानीय प्रशासन ने झलाहाट में जमीन का निरीक्षण किया। चौखुटिया में लंबे समय से एयरपोर्ट बनाने को लेकर कवायद चल रही थी। लेकिन दो साल पहले ग्रामीणों के विरोध के कारण मामला लटका हुआ था। प्रशासन की टीम ने राम गंगा के कटाव को भी परखा। यहां वायुसेना दो बार भूमि का निरीक्षण कर चुकी है। चमोली के गौचर और उत्तरकाशी में भी एयर बनाने की कवायद जल रही है। हालांकि इन स्थानों पर पहले से ही हवाई पट्टी है। झलाहाट में एयरपोर्ट बनाने को लेकर वायुसेना के उच्च अधिकारी ने भी हालही में प्रदेश के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर एयरपोर्ट बनाने को लेकर चर्चा की थी। सूत्रों के अनुसार प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एयरपोर्ट को लेकर लगातार रक्षामंत्री के संपर्क में हैं। चीन के साथ तनाव को देखते हुए चौखुटिया में एयरपोर्ट बनाना जरूरी हो गया है। ताकि युद्ध के हालात पैदा होने पर तत्काल एक्शन लिया जा सके। सूत्रों का यह भी कहना है कि चीनी सेना के सीमा में घुसने की आशंका को देखते हुए उत्तराखंड की सीमा बाराहोती के जंगल में माइन बिछा दी गई हैं। जहां मानव विहीन क्षे़त्र है। स्थानीय लोगों को जंगलों की ओर नहीं जाने के लिए आघाह किया गया है। यह माइन करीब चार से पांच किमी बिछाई गई है। इसमें वजन पड़ते ही विस्फोट हो जाएगा। और दुश्मन सेना के जवानों की मौके पर ही मौत हो जाएगी। गौरतलब हो कि 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत मैकमहोन रेखा अस्तित्व में आई थी। कुछ समय बाद इसका अस्तित्व खत्म हो गया था। लेकिन 1935 में अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ओलफ केरो ने सरकार से इसको अस्तित्व में लाने के लिए आग्रह किया। 1937 में सर्वे आॅफ इंडिया के मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक रूप से दर्शाया गया। समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैनरी मैकमहोन के नाम से इस रेखा का नाम रखा गया। लेकिन चीन शिमला समझौते को नहीं मानता है। इसलिए लगातार भारत की सीमा पर घुसपैठ कर रहा है।

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