‘प्रवासी मजदूरों से न लें बसों-ट्रेनों का किराया’

मोदी सरकार को दिया ‘सुप्रीम’ आदेश

  • प्रवासियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश- सफर शुरू करने से पहले उन्हें खाना मुहैया कराएं राज्य
  • प्रवासी मजदूरों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर 28 मार्च तक केंद्र-राज्यों से जवाब मांगे थे; अगली सुनवाई 5 जून को
  • सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- 27 दिन के भीतर हमने 91 लाख लोगों को घर पहुंचाया; कोर्ट ने पूछा- क्या उन्हें भरपेट खाना खिलाया?

नई दिल्ली। आज गुरुवार को प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि ट्रेनों और बसों से सफर कर रहे प्रवासी मजदूरों से किसी तरह का किराया न लिया जाए। यह खर्च राज्य सरकारें ही उठाएं। कोर्ट ने आदेश दिया कि फंसे हुए मजदूरों को खाना मुहैया कराने की व्यवस्था भी राज्य सरकारें ही करें। इस मसले पर अगली सुनवाई अब 5 जून को होगी।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने आज गुरुवार को मामले पर सुनवाई की। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में दलीलें रखीं। इस दौरान बेंच ने 4 आदेश दिए और 4 टिप्पणियां कीं।
1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रेन और बस से सफर कर रहे प्रवासी मजदूरों से कोई किराया न लिया जाए। यह खर्च राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें उठाएं।
2. स्टेशनों पर खाना और पानी राज्य सरकारें मुहैया करवाएं और ट्रेनों के भीतर मजदूरों के लिए यह व्यवस्था रेलवे करे। बसों में भी उन्हें खाना और पानी दिया जाए।
3. देशभर में फंसे मजदूर जो अपने घर जाने के लिए बसों और ट्रेनों के इंतजार में हैं, उनके लिए भी खाना राज्य सरकारें ही मुहैया करवाएं। मजदूरों को खाना कहां मिलेगा और रजिस्ट्रेशन कहां होगा। इसकी जानकारी प्रसारित की जाए।
4. राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को देखें और यह भी निश्चित करें कि उन्हें घर के सफर के लिए जल्द से जल्द ट्रेन या बस मिले। सारी जानकारियां इस मामले से संबंधित लोगों को दी जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर जाने की कोशिश कर रहे प्रवासी मजदूर जिन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, उन्हें लेकर हम परेशान हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें उनके लिए कदम उठा रही हैं। लेकिन, रजिस्ट्रेशन, ट्रांसपोर्टेशन और खाना-पानी देने के मामलों में कुछ खामियां भी देखने को मिली हैं।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य सरकारों से को-ऑर्डिनेट कर प्रवासी मजदूरों को स्पेशल ट्रेनों और बसों से उनके राज्यों में पहुंचाया जा रहा है। 1 मई से 27 मई तक 91 लाख मजदूरों को घर पहुंचा दिया गया। इस जवाब पर कोर्ट ने टिप्पणी की- क्या यात्रा में उन्हें भरपेट खाना खिलाया गया?
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या प्रवासियों से किसी भी मौके पर टिकट के पैसे मांगे गए? सवाल ये है कि राज्य सरकारें टिकटों के पैसे कैसे चुका रही हैं। अगर प्रवासियों से पैसे ले रहे हैं तो क्या उन्हें यह रकम वापस की जा रही है? ट्रेन के इंतजार के दौरान उन्हें खाना मिल रहा या नहीं? कोर्ट ने कहा- प्रवासियों को खाना मिलना ही चाहिए। सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि खाना दिया जा रहा है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हर रोज करीब 3.36 लाख प्रवासियों को उनके राज्यों में पहुंचाया जा रहा है। सरकार ऐसे सभी प्रवासियों को उनके घर पहुंचाएगी। अदालत ने इस पर कहा- बहुत से जरूरतमंद लोगों को फायदा नहीं मिल पाया। अदालत ने इस मामले में मंगलवार को स्वत: संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मजदूरों की हालत खराब है। उनके लिए सरकार ने जो इंतजाम किए हैं वे नाकाफी हैं। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर 28 मई तक जवाब मांगा था।

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