देश के पहले सीडीएस जनरल रावत बोले- अभी कुछ काम अधूरे

नया साल नई जिम्मेदारी

  • देश के पहले सीडीएस दिल्ली में दिया गया गार्ड ऑफ ऑनर
  • रावत ने नेशनल वॉर मेमोरियल पर दी शहीदों को श्रद्धांजलि दी
  • देश के पहले सीडीएस जनरल रावत बुधवार को संभालेंगे कार्यभार
  • जनरल रावत ने कहा- कठिन होती है आर्मी चीफ की जिम्मेदारी
  • ले. जनरल नरवणे ने 28वें सेना प्रमुख का लिया चार्ज

नई दिल्ली। आज मंगलवार को जनरल बिपिन रावत नेशनल वॉर मेमोरियल पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त किये गये हैं। वह कल बुधवार (1 जनवरी 2020) को चार्ज लेंगे। इसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने मंगलवार को 28वें सेना प्रमुख का पदभार संभाला। तीन साल सेना प्रमुख रहे जनरल बिपिन रावत ने उन्हें चार्ज देने से पहले कहा कि आर्मी चीफ का काम कठिन होता है। मुझे उम्मीद है कि नरवणे यह जिम्मेदारी बखूबी निभाएंगे।
जनरल रावत ने बतौर सेना प्रमुख आखिरी बार परेड की सलामी ली और उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘कुछ काम अधूरे रह जाते हैं, नई जिम्मेदारी लेने के बाद योजनाएं बनाऊंगा। नॉर्दर्न, ईस्टर्न, वेस्टर्न और बर्फीले इलाकों में मोर्चे पर तैनात जवानों को शुभकामनाएं देता हूं। जो जान की परवाह किए बिना देश की सेवा में लगे हैं। वे अपने परिवार को छोड़कर सीमा पर तैनात रहते हैं। मुझे विश्वास है कि नरवणे अपनी ड्यूटी को बखूबी निभाएंगे। आज खास मौका है। पिछले तीन सालों में मुझे सहयोग देने वाले सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं। उनके कारण ही सफलतापूर्वक कार्यकाल पूरा कर पाया।’
जनरल रावत ने कहा कि भारतीय सेना में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ एक पद है। इसको अपने कर्तव्य पालन में जवानों द्वारा सहयोग मिलता है। जिस टीम वर्क से सेना काम करती है, उसी से हमें सफलता मिलती है। विपिन रावत सिर्फ एक नाम है। मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता था। सोच तो हमेशा बड़ी होती है, लेकिन कुछ काम अधूरे रह जाते हैं। आगे के अधिकारी इन्हें आगे ले जाते हैं और यह उनकी जिम्मेदारी भी होती है। हथियारों का आधुनिकीकरण करना मेरी बड़ी सफलता रही है। यह कितना सफल हुआ, इसे बाहर से देखने वाला ही बता सकता है।
नए सेना प्रमुख नरवणे ने इससे पहले एक सितंबर 2019 को उप थलसेनाध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया था। वह सेना की ईस्टर्न कमांड के प्रमुख भी रहे। 37 साल की सेवा में नरवणे जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में तैनात रह चुके हैं। वह कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन और पूर्वी मोर्चे पर इन्फैन्टियर ब्रिगेड की कमान संभाल चुके हैं। नेशनल डिफेंस एकेडमी और इंडियन मिलिट्री एकेडमी के छात्र रहे नरवणे को सेना मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और अति विशिष्ट सेवा मेडल से अलंकृत किया जा चुका है। नरवणे ही वह आर्मी कमांडर हैं, जिन्होंने डोकलाम विवाद के दौरान चीन को हद बताई थी। जनरल रावत के साथ दशकों तक कई मोर्चों पर काम कर चुके एक लेफ्टिनेंट जनरल ने बताया- ‘रावत तीनाें सेनाओं से जुड़े मुद्दाें की गहरी समझ रखते हैं। तीनाें सेनाओं और रक्षा मंत्रालय के अफसर उनकी बातें न सिर्फ मानते हैं, बल्कि उनका सम्मान भी करते हैं। वह हर काम में पहल करते हैं, लेकिन जल्दबाजी नहीं करते। वह यथास्थितिवादी न हाेकर सिस्टम की खामियां ढूंढ़ते रहते हैं। जनरल रावत भ्रष्टाचार जैसी गतिविधियाें में लिप्त कई लाेगाें काे वह बिना पेंशन घर बैठा चुके हैं। समाज और सेना के प्रति उनकी निष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वह रविवार या छुट्टी वाले दिन भी घर पर किसी से मिलने से इनकार नहीं करते। अगर वह कहीं दाैरे पर जाते हैं ताे एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ से मिले बिना नहीं जाते। उन्होंनेे अफसरों और जवानाें के बीच की खाई पाटने की दिशा में काफी प्रयास किए हैं। रक्षा मंत्री की नाराजगी झेलकर भी उन्हाेंने रिटायर्ड सैनिकाें के मुद्दे मुखर हाेकर उठाए हैं। इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली है।
उन्होंने कहा कि जनरल रावत की मानसिक मजबूती ऐसी है कि वह चेक साइन करने जैसा गंभीर काम भी एनएसए या पीएम के प्रधान सचिव के साथ चर्चा करते हुए करते हैं। युवा अफसर के ताैर पर एक बार बुरी तरह घायल हाेने के बावजूद उन्हाेंने मजबूत वापसी की और अभी तक शारीरिक ताैर पर मजबूत हैं। वे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, ट्रेडमिल पर दौड़ने का अपना रूटीन कभी नहीं छोड़ते। वह साल में दाे बार किसी धार्मिक स्थान पर जरूर जाते हैं।
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार हरसिल के पास एक बस खाई में गिर गई थी। तब जनरल रावत कैप्टन हुआ करते थे। जैसे ही उन्हें हादसे का पता चला ताे वह तुरंत नीचे नदी के पास पहुंचे और कई यात्रियाें काे बचा लाए।
गौरतलब है कि सीडीएस के पीछे तीनों सेनाओं में ‘एक सोच-एक दिशा-एक युद्ध’ का सिद्धांत है। करगिल युद्ध के बाद सीडीएस बनाने की सिफारिश हुई थी। सरकार ने 17 जुलाई 2004, 4 अगस्त 2005, 10 अगस्त 2006, 20 अक्टूबर 2008 और 18 मार्च 2013 को संसद में सीडीएस की नियुक्ति का आश्वासन दिया था, लेकिन लंबे समय के अंतराल के बाद प्रधानमंत्री माेदी ने इसी वर्ष 15 अगस्त काे इसकी घाेषणा की थी।
सीडीएस के तीन बड़े मकसद हैं। पहला- ट्रेनिंग, खरीदारी, स्टाफ और ऑपरेशंस काे संयुक्त रूप देना। दूसरा- राजनीतिक नेतृत्व के लिए सैनिक सलाह में गुणवत्ता लाना। तीसरा- सैन्य मामलों में विशेषज्ञता लाना।
इसके लिये रक्षा मंत्रालय में नया विभाग बनेगा। इसका नाम डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स हाेगा। यह सैन्य मामले ही देखेगा। बाकी का रक्षा विभाग सुरक्षा से जुड़े व्यापक मामलों पर विचार करेगा। थल सेना, वायु सेना और नौसेना डीएमए के तहत आएगी। सचिव के तौर पर इसकी अगुवाई सीडीएस करेंगे। विभाग तीनों सेनाओं से जुड़े मौजूदा कमान के बीच तालमेल करेगा और नई संयुक्त कमान का रोडमैप तय करेगा।
अभी चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी है। यह व्यवस्था भी कायम रहेगी। नए सीडीएस इसके स्थायी अध्यक्ष होंगे।
तीनों सेनाओं से जुड़े मामलों में वह रक्षा मंत्री के लिए प्रधान सैन्य सलाहकार होंगे। सीडीएस का किसी सैन्य कमांड पर कोई नियंत्रण नहीं हाेगा। तीनों सेनाओं का आपरेशनल संचालन उनके प्रमुखों के पास ही रहेगा। वह अपने मामलों के लिए रक्षा मंत्रालय को विशिष्ट सलाह देते रहेंगे। हालांकि, तीनों सेनाओं के संयुक्त संगठनों के प्रशासक सीडीएस होंगे। साइबर और स्पेस कमांड जैसे संगठनों की अगुवाई भी सीडीएस करेंगे। सीडीएस चार स्टार के जनरल होंगे। उनका वेतन और भत्ते मौजूदा सेना प्रमुख के बराबर रहेंगे। रिटायरमेंट उम्र 65 साल होगी, जबकि सेना प्रमुखों कार्यकाल 62 साल की उम्र तक का होता है। रिटायरमेंट के बाद सीडीएस किसी सरकारी पद पर नहीं बैठ सकेंगे। अवकाश ग्रहण करने के बाद पांच साल तक वह प्राइवेट नौकरी भी नहीं कर पाएंगे।

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