उत्तराखंड : घर की याद आई तो भूख हड़ताल पर बैठे प्रवासी

टूटने लगा सब्र का बांध

  • लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की आहट के बीच राहत शिविरों में रह रहे लोगों ने खाने से किया इनकार
  • दी चेतावनी, अगर प्रशासन ने उन्हें घर भेजने की व्यवस्था नहीं की तो वे खाना नहीं खाएंगे
  • उन्हें रोकने का कोई औचित्य नहीं, वे लोग न तो बीमार हैं न ही उन्हें कोई दूसरी दिक्कत

लक्सर (रुड़की)। रुड़की में राहत शिविरों में रहने वाले प्रवासी कामगारों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है। इसी कड़ी में लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की आहट के बीच लक्सर कस्बे के राहत शिविरों में रह रहे 50 से अधिक लोगों ने रविवार रात भूख हड़ताल कर दी। उन्होंने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन ने उन्हें घर भेजने की व्यवस्था नहीं की तो वे खाना नहीं खाएंगे। सूचना पाकर मौके पर पहुंचे बीडीओ ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे। बाद में एसडीएम के आश्वासन पर उन्होंने खाना खा लिया।
लॉकडाउन के बाद प्रवासी कामगारों को पैदल ही घर लौटते देख केंद्र सरकार के आदेश पर 29 मार्च को प्रदेश की सारी सीमाएं पूरी तरह सील कर दी गई थीं। पुलिस-प्रशासन ने कस्बे से गुजर रहे बाहर के लोगों को रोककर राहत शिविरों में ठहराया था। प्रशासन ने लक्सर में चार राहत शिविर बनाए हैं, जिनमें दिल्ली, यूपी और बिहार के करीब 175 लोग ठहरे हैं। इन्हें नगर पालिका और समाजसेवी लोग भोजन दे रहे हैं।
रविवार शाम को लक्सर के कुछ समाजसेवी युवराज पैलेस के शिविर में खाना लेकर पहुंचे तो 62 में से केवल दस लोगों ने ही खाने के पैकेट लिए। बाकी लोग खाना लेने से इनकार कर भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनका कहना था कि जब वे लौट रहे थे तो उस समय प्रशासन ने केवल दो हफ्तों की बात कहकर शिविर में रोका था। साथ ही 14 अप्रैल के बाद घर भेजने की बात कही थी। जिस तरह से अब लॉकडाउन 30 अप्रैल तक बढ़ाने की बात सामने आ रही है, उससे लगता है कि उन्हें तब तक यहीं रहना पड़ेगा।
सूचना मिलते ही बीडीओ चंदन लाल राही मौके पर पहुंचे और राहत शिविर में लोगों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। बीडीओ का कहना है कि राहत शिविर में जिन लोगों को रोका गया है, उन्हें सरकार के आदेश के बाद ही घर भेजा जा सकता है।
हरिद्वार में भी लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की बात सामने आने पर राहत शिविरों, होटल, धर्मशालाओं एवं आश्रमों में फंसे सैकड़ों लोगों का सब्र जवाब देने लगा है। इन लोगों को अब राहत शिविर आफत लगने लगे हैं। वे या तो पुलिसकर्मियों से उलझ रहे हैं या फिर उन स्थानों के प्रबंधकों व कर्मचारियों से तू-तू मैं-मैं कर रहे हैं, जहां उन्हें ठहराया गया है।
यहां धर्मनगरी में राहत शिविरों में मौजूदा समय में करीब 262 कामगार हैं। उनकी देखभाल में पुलिस जुटी है। होटल, धर्मशाला में भी करीब साढ़े सात सौ यात्री फंसे हुए हैं। अब जब यह बात सामने आ रही है कि लॉकडाउन का समय बढ़ रहा है तो वे लोग झल्ला उठे हैं। वह आश्रम, होटल एवं धर्मशालाओं के प्रबंधकों व कर्मचारियों से उलझ रहे हैं।
उनका कहना है कि उन्हें रोकने का कोई औचित्य नहीं है। वे लोग न तो बीमार हैं न ही उन्हें कोई दूसरी दिक्कत है। अब उनके पैसे भी खत्म हो चुके हैं। अब उन्हें वापस लौटना है। उनका कहना है कि 14 अप्रैल के बाद उन्हें उनके घर वापस भेजने का इंतजाम सरकार को करना चाहिए। कोतवाली प्रभारी प्रवीण सिंह कोश्यारी बताते हैं कि रोजाना विवाद सामने आ रहे हैं। पुलिस उनकी मनोदशा को समझकर दिलासा दिला रही है। उन्हें भेजने की बात उच्चाधिकारियों तक पहुंचाई जा रही है।
एसडीएम पूरण सिंह राणा का कहना है कि राहत शिविर में रुके लोगों ने बाद में समझाने पर खाना ले लिया है। शिविर में उन लोगों को सभी प्रकार की जरूरी व्यवस्था उपलब्ध कराई जा रही है। आज सोमवार सुबह उनसे फिर बातचीत की गई है। 

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