नई दिल्लीः भारत के संविधान निर्माता, चिंतक और समाज सुधारक डॉ भीमराव आंबेडकर को उनकी पुण्यतिथि पर देशभर में याद किया जा रहा है। महापरिनिर्वाण दिवस पर आज कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। डॉ भीमराव आंबेडकर ने अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों, जैसे- छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया। इस दौरान बाबा साहेब गरीब, दलितों और शोषितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। डॉ भीमराव आंबेडकर के विचार और सिद्धांत उनके बाद आज भी भारतीय राजनीति के लिए हमेशा प्रासंगिक रहे हैं।
“हिंदूओं को समझना चाहिए कि वे भारत के बीमार लोग हैं और ये भी कि उनकी बीमारी दूसरे भारतीयों के स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए घातक है”- डॉ. भीमराव आंबेडकर
आंबेडकर का जन्म एक अछूत और निचली महार जाति में हुआ था। हिन्दू धर्म ग्रंथों का अध्ययन करने वाले आंबेडकर हिन्दू धर्म की छूत-अछूत प्रथा के सख्त खिलाफ थे। ऊंची जातियों का निचली जातियों पर किया जाने वाला जातिगत अमानवीय व्यवहार ही आंबेडकर के धर्म परिवर्तन का कारण बना। वो मानते थे कि सिर्फ सामाजिक स्तर पर ही नहीं बल्कि कानूनी तौर पर इस भेदभाव से निपटा जा सकता है। डॉ. भीमराव आंबेडकर जिदंगी भर जाति व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास करते रहे, हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास करते रहे। लेकिन वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाए। यही वजह है कि उन्होंने कहा, “हिंदू भारत के बिमार लोग हैं”
कई बार प्यासा रहना पड़ता था:
आंबेडकर पढ़ने-लिखने में तेज थे लेकिन केवल छोटी जाति का होने की वजह से उन्हें नीच जाति के दूसरें बच्चों के साथ स्कूल के बाहर बिठाया जाता था। उनको क्लास में ना बैठाने की वजह थी नीच जाति के साथ बैठने से ऊंची जाति के बच्चे दूषित हो जाते थे। ज्यादातर अध्यापक भी इन बच्चों की पढाई-लिखाई पर ध्यान नहीं देते थे और न ही मदद करते थे। छुआछूत और भेदभाव का अमानवीय व्यवहार इतना ज्यादा था कि इन बच्चों को प्यास लगने परा स्कूल का चपरासी या कोई अन्य ऊंची जाति का आदमी ऊंचाई से उनके हाथों पर पानी गिराकर उन्हें पिलाता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के बर्तन को छूने की अनुमति नहीं थी। ऊंची जाति के लोंगो की मान्यता थी कि ऐसा करने से पानी की बर्तन और पानी दोनों अपवित्र हो जाएगा। कई बार पानी पिलाने के लिए कोई ना होने पर उन्हें प्यासा ही रहना पड़ता था।
हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं:
आंबेडकर जिस ताकत के साथ दलितों को उनका हक दिलाने के लिए उन्हें एकजुट करने और राजनीतिक-सामाजिक रूप से उन्हें सशक्त बनाने में जुटे थे, उतनी ही ताकत के साथ उनके विरोधी भी उन्हें रोकने के लिए जोर लगा रहे थे। बे संघर्ष के बाद जब अंबेडकर को भरोसा हो गया कि वे हिंदू धर्म से जातिप्रथा और छुआ-छूत की कुरीतियां दूर नहीं कर पा रहे तो उन्होंने वो वक्तव्य दिया जिसमें उन्होंने कहा कि मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं। जिसके बाद 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया।
आईए जानते हैं बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के बारे में कुछ रोचक बातें:
आंबेडकर ने अमरीका और ब्रिटेन दोनों देशों में उच्च शिक्षा पाई थी। विदेशी यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय थे।
1913 में उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था। इसके लिए बड़ौदा के राजपरिवार से उन्हें वज़ीफा मिला था।
1916 में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पीएचडी की।
अंबेडकर साइमन कमीशन के एकमात्र भारतीय सदस्य थे।
1932 में पूना पैक्ट के तहत दलितों के लिए सुरक्षित सीट की व्यवस्था की।
वह देश के पहले क़ानून मंत्री बने साथ ही वे संविधान समिति अध्यक्ष थे।
पहले वित्त आयोग के गठन में आंबेडकर ने महत्वपूर्म भूमिका निभाई थी।
1951 में हिंदू कोड बिल के सवाल पर उन्होंने मंत्री मद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
1952 में वे राज्यसभा के सदस्य बनाए गए।
वे सिख बनना चाहते थे लेकिन, सिख नेताओं से मिलने के बाद उन्होंने अपना इरादा बदल लिया।
14 अक्टूबर 1956 को आंबेडकर धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बन गए थे।
आंबेडकर को 1990 में मरणोपरांत भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया था।