बसंतर के युद्ध में आखिर उल्टे पांव भागी पाक सेना!

मेजर होशियार सिंह के जन्म दिवस पर विशेष

  • वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में बसंतर की ऐतिहासिक लड़ाई में गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और पाक सेना को हारकर भागना पड़ा
  • इस युद्ध में चार जांबाजों को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया था, मगर सिर्फ एक जांबाज मेजर होशियार सिंह ऐसे थे जिन्हें यह पुरस्कार जीवित रहते मिला 

वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध भारतीय सैनिकों की वीरता और शौय का एक नायाब किस्सा है। इस युद्ध में यूं तो चार जांबाजों को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया था, मगर सिर्फ एक जांबाज मेजर होशियार सिंह ऐसे थे जिन्हें यह पुरस्कार जीवित रहते मिला। इस जंग की दिशा बदलने में  बसंतर की ऐतिहासिक लड़ाई में गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। जिसके नतीजे में पाकिस्तानी सेना को उल्टे पांव वापस भागने पर मजबूर होना पड़ा।
हरियाणा के सोनीपत में 5 मई 1936 को जन्मे होशियार सिंह पढ़ाई में अच्छे होने के साथ-साथ खेल-कूद में भी आगे रहते थे। वर्ष 1957 में होशियार सिंह जाट रेजिमेंट में शामिल हुए और बाद में यहां से वह 3 ग्रेनेडियर्स में अफसर बन गए। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब पाकिस्तानी सेना रणनीतिक तौर पर बेहद खास शकरगढ़ सेक्टर पर कब्जा कर बैठी थी, उस वक्त बसंतर नदी में एक पुल बनाने का कार्य ग्रेनेडियर्स की एक बटालियन को दिया गया। नदी के दोनों किनारे गहरी बारूदी सुरंगों से ढके हुए थे और पाकिस्तानी सेना दूसरी ओर किनारे पर पोजिशन लेकर बैठी थी। मेजर होशियार सिंह को उस वक्त पाकिस्तानी इलाके में स्थित जरपाल पर कब्जा करने का आदेश दिया गया। दुश्मनों की संख्या पर ध्यान न देते हुए उन्होंने अपनी कंपनी के साथ हमला बोल दिया। पाकिस्तानी सेना ने उनकी कंपनी पर भारी गोलीबारी और मशीन गन से हमला किया।
इसके बावजूद होशियार सिंह ने अपने जवानों का हौसला टूटने नहीं दिया और सीधी लड़ाई में कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद उन्होंने रणनीतिक तौर पर अहम पोजिशन ली, जहां से उनकी कंपनी ने गोलीबारी शुरू की। हमले के दौरान बेखौफ मेजर होशियार सिंह एक खाई से दूसरी खाई में जाकर अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने हमला और तेज कर दिया। जिसमें होशियार सिंह खुद भी गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी इस सबसे बेपरवाह थे और लगातार अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे। मेजर को इस तरह देखकर उनके सैनिकों में भी जोश भर गया और उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर फायरिंग और तेज कर दी। 
17 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने टैंकों से उनकी कंपनी पर भारी गोलाबारी की। जिसमें होशियार सिंह की कंपनी के कुछ सैनिक बुरी तरह घायल हो गए। खुद मेजर होशियार सिंह भी बेहद घायल थे, लेकिन वह हमले के बीच एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट जाकर लगातार अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करते रहे। इसी दौरान मीडियम मशीन गन पोस्ट में तैनात एक सैनिक गोली लगने से नीचे गिर पड़ा। उन्होंने तुरंत खुद उस पोस्ट का मोर्चा संभाल लिया और पाकिस्तानी सेना पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी। हमले से परेशान पाकिस्तानी सेना अपने पीछे 85 साथियों की लाशें छोड़कर भाग खड़ी हुई। इस हमले में उनका कमांडिंग ऑफिसर और तीन अन्य अधिकारी भी मारे गए। 
हमला खत्म हो गया था। जरपाल पोस्ट पर भारतीय सेना का कब्जा था। मेजर होशियार सिंह बुरी तरह घायल हो चुके थे और उनके कई साथी भी गंभीर रूप से घायल थे, लेकिन उन्होंने सीजफायर की घोषणा होने तक अपनी पोस्ट से हटने से इनकार कर दिया। उनकी इस वीरता को देखते हुए सरकार ने उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र देने की घोषणा की। उनके अलावा सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को भी परमवीर चक्र से नवाजा गया जो अलग मोर्चे पर लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उल्लेखनीय है कि आज तक सिर्फ 21 लोगों को परमवीर चक्र पुरस्कार मिला है, उनमें से भी जीवित रहते हुए यह पुरस्कार सिर्फ सात लोगों को मिला है। होशियार सिंह इसके बाद आर्मी से ब्रिगेडियर की पोस्ट से रिटायर हुए और 6 दिसंबर 1998 को उनका देहांत हो गया। आज उनके जन्म दिवस पर देश की जनता उनकी बहादुरी को नमन करती है।

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