सुप्रीम कोर्ट के इन ऐतिहासिक फैसलों के कारण साल 2023 हमेशा रहेगा यादगार…

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2023 में कई बड़े फैसले सुनाए। चाहे वह आर्टिकल 370 की संवैधानिक वैधता हो, विवाह समानता याचिकाएं, केंद्र की 2016 की नोटबंदी योजना को चुनौती या महाराष्ट्र और दिल्ली में राजनीतिक संकट। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के तहत, शीर्ष अदालत ने 1 जनवरी से 15 दिसंबर, 2023 के बीच लगभग 52,191 मामलों का निपटारा करके एक नया रिकॉर्ड बनाया।

आर्टिकल 370: इस साल का सबसे अहम फैसला सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को लेकर लिया। केंद्र ने आर्टिकल 370 को हटाने पर कानूनी लड़ाई जीत ली, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से इसके प्रावधानों को निरस्त करने के अपने फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने वर्तमान केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए ‘जल्द से जल्द’ राज्य का दर्जा बहाल करने और 30 सितंबर, 2024 तक राज्य विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया हैं।

तीन तलाक: सामाजिक व्यवस्था के उत्थान में यह फैसला काफी अहम रहा. इससे सदियों पुरानी कुप्रथा से छुटकारा मिला। केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में ही इसे पास कर दिया था। हालांकि, बाद में कुछ लोगों ने कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सरकार के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि वह विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर विवाह को भंग कर सकती है, साथ ही यह भी कहा कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे दी गई विशेष शक्ति का उपयोग कर सकती है। बता दें कि इस कानून से मुस्लिम महिलाओं के जीवन में भारी बदलाव देखा गया।

राहुल गांधी की सदस्यता मामला: मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बड़ी राहत मिली थी। 136 दिनों बाद उनकी संसद की सदस्यता बहाल हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले में सजा पर रोक लगी दी। इसके बाद लोकसभा सचिवावलय ने उनकी सदस्यता को बहाल करने का फैसला लिया था। इस फैसले से वह फिर से सांसद बन गए। इस फैसले से कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के राजनीतिक करियर के लिए अहम साबित हुआ। पेश मामले में राहुल गांधी में पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता के कथित बयान अच्छे नहीं थे। सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय कुछ हद तक संयम बरतने की अपेक्षा की जाती है।

समलैंगिक विवाह: भारत की शीर्ष अदालत ने 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से इनकार कर दिया और एक फैसले में जिम्मेदारी संसद को सौंप दी, जिससे देश में एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए प्रचारकों को निराशा हुई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार से समलैंगिक समुदाय के अधिकारों को बनाए रखने और उनके खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने का भी आग्रह किया।

नोटबंदी: वर्ष 2023 की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की 2016 की नोटबंदी को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के केंद्र के फैसलों को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं को 4:1 के बहुमत से खारिज कर दिया।

अडानी-हिंडनबर्ग मामले में कमेटी का गठन: अडानी-हिंडनबर्ग मामले ने पूरे देश में सुर्खियां बंटोरीं। सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट से उठे सवाल पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। समिति में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएम सप्रे की अध्यक्षता में 6 सदस्य शामिल थे। शीर्ष अदालत ने तब सेबी से 2 महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट उस समय हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियामक तंत्र से संबंधित एक समिति का गठन भी शामिल था।

भोपाल गैस त्रासदी: सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च को केंद्र सरकार को झटका देते हुए, भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को यूनियन कार्बाइड कंपनी से 7400 करोड़ के अतिरिक्त मुआवजे दिलाने वाली क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के मुआवजे में हुई बड़ी लापरवाही पर फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि लंबित दावों को पूरा करने के लिए भारत सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के पास पड़े 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल किया जाएगा। बता दें कि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में 3,000 से अधिक लोग मारे गए और बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति हुई थी।

26 सप्ताह की गर्भावस्था: सुप्रीम कोर्ट ने 26 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। विवाहित महिला ने यह याचिका दायर की थी। इसमें उसने अपनी बीमारी के कारण 26 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि गर्भावस्था की अवधि 24 सप्ताह से अधिक हो गई है। गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति की अनुमति नहीं दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मां को तत्काल कोई खतरा नहीं है और यह भ्रूण की असामान्यता का मामला नहीं है।

सीईसी, ईसी की नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आदेश दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता की एक समिति की सलाह पर की जाएगी। केंद्र ने सीजेआई को पैनल से हटाकर एक कैबिनेट मंत्री को नियुक्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया।

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