स्थायी राजधानी में ही रुकेंगे भराड़ीसैंण से फिसले कदम!

  • पहाड़ जैसी उम्मीदों का पिटारा है ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण
  • घर लौटे लोगों को गैरसैंण से मिलेगा भावनात्मक सपोर्ट
  • 4 मार्च 2२0 का दिन बन गया उत्तराखंड के इतिहास में यादगार
  • 2 साल बाद भराड़ीसैंण में त्रिवेंद्र रावत की घोषणा से विपक्ष रह गया था अवाक
  • गैरसैंण का दबाव न होता तो स्थायी राजधानी बन गया होता देहरादून

देहरादून। उत्तराखंड राज्य के लिए गैरसैंण के मायने क्या हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। गैरसैंण अब विधिक ही नहीं आधिकारिक रूप से भी उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गयी है। इसके साथ ही पहाड़ जैसी उम्मीदों का पिटारा खुल गया है। इस फैसले से जहां समूचे पर्वतीय क्षेत्र में बड़े-बड़े सपने देखे जाने लगे हैं वहीं सरकार के कंधों पर इन सपनों को पूरा करने के लिए भारी बोझ भी आ गया है। सरकार इस बोझ को कैसे उतारेगी यह तो नीति नियंता जानें, लेकिन भराड़ीसैंण की ढलानों से फिसले ग्रीष्मकालीन राजधानी के कदम अंतत: गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के बाद ही ठिठकेंगे, ऐसा मुझे लग रहा है। कारण साफ है। इन 2 वर्षों में कोई भी शासक गैरसैंण का नाम अपनी जुबान पर लाने से बचता रहा। गैरसैंण (यानि पहाड़ी राज्य का पहाड़) नाराज न हो इसलिए देहरादून में इतना कुछ बनाने के बाद भी किसी भी शासक ने पिछले कई वर्षों से रायपुर में प्रस्तावित विधानसभा भवन का न तो निर्माण शुरू किया और न ही इस मुद्दे को अपनी जुबान पर लाने का साहस किया।
गैरसैंण के लिए एक बड़ी बात यह हुई कि सीएम त्रिवेंद्र रावत ने जैसे ही गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का निर्णय लिया, समूचा विपक्ष और बुद्धिजीवी वर्ग गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के पक्ष में खड़ा हो गया। हालांकि त्रिवेंद्र विरोधियों ने इस निर्णय को स्थायी राजधानी के लिए गैरसैंण की दावेदारी को कमजोर करने के रूप में प्रचारित किया, लेकिन सच तो यह है कि इस फैसले ने लंबे समय बाद गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए सभी को—  मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सूर बने हमारा… के रूप में सुर मिलाने के लिए विवश कर दिया है।  
इस राज्य के इतिहास में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह द्वारा सोमवार 8 जून 2020 को जारी अधिसूचना को जितने सिद्दत से याद किया जाएगा, उतना ही महत्व 4 मार्च 2020 को भराड़ीसैंण विधानसभा के भीतर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की उस घोषणा को भी मिलेगा, जिसमें उन्होंने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने साहस दिखाया। ये दोनों तारीखें, उत्तराखंड के इतिहास में नौ नवंबर 20 के बाद की सबसे महत्वपूर्ण तारीखें होंगी। भराड़ीसैंण विधानसभा मंडप के भीतर जब मुख्यमंत्री रावत ने यह घोषणा की तो वहां बैठे विधायकों, अधिकारियों, मीडियाकर्मियों को विश्वास भी नहीं हुआ। विपक्ष की तो हालत एेसे थी, मानो उसके सामने रखे छप्पन भोग के थाल पर किसी ने झपट्टा मार दिया हो। इस एेतिहासिक क्षण का गवाह बनने का सुअवसर मुझे भी मिला।
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने से पहाड़ का पलायन रुकेगा या नहीं, एक सुंदर पहाड़ी शहर बसेगा या नहीं या फिर से गैरसैंण के बहाने पहाड़ बचेगा या नहीं यह कहना तो अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तय है कि कारोना संकट के चलते देश के कोने—कोने से घर लौटे सवा लाख से अधिक प्रवासियों को यह फैसला बड़ा सपोर्ट देगा। कोरोना के संक्रमण काल में लाकडाउन के चलते बहुत मुश्किलें झेलने के बाद घर पहुंचे ज्यादातर लोग अपने घरों में हीं संभावनाएं तलाशने की कोशिश कर रहे हंै। सरकार की और से भी कृषि, उद्यान, पशुपालन व पर्यटन में बड़े प्रोत्साहन पैकेज घोषित किये गये हैं। सरकार की योजनाएं कितनी कामयाब होंगी यह अभी ठीक नहीं होगा, लेकिन इतना तय है कि गैरसैंण के ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से आजीविका के लिए नयी संभावनाआें का इंतजार करने के साथ ही सरकार की आेर टकटकी लगाये पहाड़ में रहने वाले लोगों के साथ ही संकटकाल में घर पहुंचे लोगों को गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से भावनात्मक सपोर्ट अवश्य मिलेगा। भारी कठिनाइयां सहने के बाद जैसे—तैसे अपने गांवों तक पहुंचे पाये पहाड़ के युवकों के मन में गैरसैंण को विधिक रूप से ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की अधिसूचना संभावनाआें का संचार अवश्य करेगी।  
सरकारों की घोषणाआें को धरातल पर उतारना आसान काम नहीं होता, अनगिनत घोषणाएं ऐसी हैं, जिन पर शासनादेश तक नहीं हो पाता। यहां तक कि मंत्रिमंडल में होने वाले फैसलों पर भी शासनादेश होने में कई बार तो महीनों लग जाते हैं और आदेश हो भी गये तो उन्हें धरातल पर उतारने में लालफीताशाही अडं$गे लगा देती है। एेसे में इस बात की आशंका भी बनी हुई थी कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की अधिसूचना पर भी एेसा हो सकता था।  लंबे आंदोलन के बाद अस्तित्व में आये इस पहाड$ी राज्य की राजधानी का मुद्दा आज 2 साल बाद भी हल नहीं हो पाया। तब अंतरिम सरकार ने राजधानी चयन आयोग बिठाकर स्थायी राजधानी का फैसला चुनी हुई सरकारों पर छोड$ दिया था।
अस्थायी रूप से देहरादून से प्रदेश का राजकाज भले ही चलने लग गया हो, लेकिन कोई भी सरकार देहरादून को राजधानी घोषित करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण गैरसैंण ही था। जब—जब राजधानी की चर्चाएं हुई गैरसैंण भी दिमाग में आता रहा। राजनीतिक दल गैरसैंण को राजधानी बनाने की बातें भी करते रहे, लेकिन जैसी सत्ता मिल जाती गैरसैंण राग रद्दी की टोकरी में चला जाता। पूरी तरह क्षेत्रीयता की राजनीति का प्लेटफार्म बनाकर आगे बढ$ रही उत्तराखंड क्रांति दल ने भी शुरुआती वर्षाें में गैरसैंण को लेकर जो अपनापन दिखाया बाद के वर्षों में वह काफूर हो गया। यकायक 2१२ से गैरसैंण एक बार फिर से उत्तराखंड की राजनीति की धुरी बनता चला गया,  जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने गैरसैंण में मंत्रिमंडल की बैठक और उसके बाद विधानसभा का सत्र करने का निर्णय लिया। इस कसरत ने सरकारों को यहां कुछ न करने के लिए विवश किया और हर सरकार यहां विधानसभा का सत्र करने लगी। इसी बीच यहां विधानसभा भवन व दूसरे भवनों का निर्माण तो हो गया, लेकिन राजधानी की घोषणा करने में हुक्मरान बचते रहे। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कई बार अपनी इस पीड़ा को सार्वजनिक भी किया कि वे उनसे गैरसैंण पर फैसला लेने में चूक हुई।
गैरसैंण को लेकर 2२0 एक तरह से निर्णायक रहा। प्रचंड बहुमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भराड़ीसैंण में आहूत बजट सत्र में जब बजट पर चर्चा के तुरंत बाद सदन के भीतर ही जब भराड$ीसैंण—गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की तो लोगों को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। विपक्ष तो हक्का—बक्का रह गया। सोमवार (8 जून) को गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी का विधिक दर्जा मिलने के साथ ही इस बात की चर्चाआें ने जोर पकड़ लिया है कि आखिर स्थायी राजधानी कहां होगी, लेकिन राजनीतिक विलेश्षक यह भी मान रहे हैं कि ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में भराड़ीसैंण से उठे ये कदम अब इन ढलानों में फिसलते हुए स्थायी राजधानी गैरसैंण तक पहुंच ही जाएंगे।
-वरिष्ठ पत्रकार श्री अर्जुन बिष्ट जी की फेसबुक वाल से साभार।  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here