हरक को एक और बड़ा झटका, कर्मकार कल्याण बोर्ड का होगा स्पेशल ऑडिट!

सब गोलमाल है

  • अगस्त में 81.26 करोड़, जमा रह गए 35 करोड़, नहीं मिल रहे एफडी के सर्टीफिकेट
  • बोर्ड ने तत्काल प्रभाव से कोटद्वार कार्यालय को बंद करने का लिया फैसला
  • वित्तीय नियमों के विपरीत बोर्ड और फील्ड में रखे गए 38 कर्मचारियों को भी हटाया
  • प्रशासनिक फंड का भी हिसाब किताब नहीं, अनुमति एक तल की, दफ्तर दो तल में

देहरादून। हरक सिंह रावत को अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद अब एक और झटका देते हुए फैसला किया गया है कि उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का स्पेशल ऑडिट होगा। नवगठित बोर्ड की पहली बैठक में बोर्ड की वित्तीय और प्रशासनिक मामलों का स्पेशल ऑडिट करने का निर्णय लिया गया। 
बोर्ड ने कोटद्वार कार्यालय को बंद करने का फैसला ले लिया है। साथ ही वित्तीय नियमों के विपरीत बोर्ड और फील्ड में रखे गए 38 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटा दिया है। बोर्ड के इन कड़े फैसलों को श्रम मंत्री हरक सिंह रावत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। स्पेशल ऑडिट में जो भी तथ्य सामने आएंगे, हरक सिंह स्वाभाविक रूप से निशाने पर होंगे।
शुक्रवार को बोर्ड के अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल की अध्यक्षता में नवगठित बोर्ड की बैठक हुई। बैठक में वित्त विभाग के अधिकारी भी शामिल हुए। विभाग की ओर गहरी नाराजगी जताई गई कि 2017 से बोर्ड का ऑडिट नहीं कराया गया। जबकि 2017 से पहले जब बोर्ड कार्यालय हल्द्वानी में था, हर साल ऑडिट होता था। बैठक में बोर्ड का समयबद्ध स्पेशल ऑडिट कराने का फैसला हुआ। बोर्ड में वित्त विभाग का एक भी अधिकारी व कर्मचारी तैनात न होने को लेकर भी वित्त विभाग ने हैरानी जताई। बैठक में तय हुआ कि बोर्ड में एक वित्त विभाग का अधिकारी तैनात होगा।  नवगठित बोर्ड ने 38 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटाने का फैसला किया। सृजित पदों के सापेक्ष रखे गए इन सभी कर्मचारियों की नियुक्ति में वित्त विभाग के नियमों का पालन नहीं हुआ। ये कर्मचारी देहरादून और कोटद्वार बोर्ड कार्यालय में फील्ड में तैनात हैं। सोमवार तक इसके आदेश जारी हो जाएंगे।
बैठक में श्रमिकों के पंजीकरण के लिए खोले गए निजी वर्कर फेसिलिटी सेंटर बंद करने का फैसला हुआ। कहा गया कि क्षेत्रीय कार्यालय और कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) पहले से यह काम कर रहे हैं। पिछले बोर्ड ने भी सीएससी को ही यह काम सौंपने को कहा था। तय हुआ कि प्राइवेट कंपनी के सेंटर बंद किए जाएं। क्षेत्रीय कार्यालय में यदि कर्मचारियों की आवश्यकता हो तो उसकी अनुमति दी जाएगी।
बोर्ड में पांच प्रतिशत प्रशासनिक फंड के नाम लाखों खर्च दिए गए, लेकिन इस फंड का कोई वर्क आउट नहीं है। इसकी पड़ताल करने का फैसला किया गया कि कितना फंड निकाला गया। बैठक में किराये के भवन में चल रहे कार्यालय को लेकर भी सवाल उठे। यह तथ्य उजागर हुआ कि एग्रीमेंट के अनुसार, एक तल पर कार्यालय खोलने की अनुमति दी गई थी। लेकिन कार्यालय दो तलों में चल रहा है। पूरे भवन की बिजली का 50 फीसद बिल का भुगतान बोर्ड कर रहा है। एक अन्य कार्यालय भी भवन में है, उसका बिल भी बोर्ड के खाते से दर्ज हो रहा है। बैठक में यह जवाब नहीं मिला कि किसकी अनुमति दूसरे तल में दफ्तर चलाया गया।  बोर्ड का दफ्तर सरकारी भवन में शिफ्ट करने का फैसला लिया गया। 
बोर्ड में श्रमिकों के अब तक हुए पंजीकरण का सत्यापन करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दो दिन पूर्व समीक्षा बैठक में नाराजगी जाहिर की थी कि पंजीकरण में पारदर्शिता नहीं अपनाई जा रही है। तय हुआ कि पंजीकरण केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुरूप होंगे। बैठक में इस बारे में सदस्यों से भी सुझाव मांगे गए हैं। इस पर अगली बोर्ड बैठक में इस पर चर्चा होगी।
गौरतलब है कि श्रम मंत्री ने बीते अगस्त महीने में यह जानकारी दी थी कि कर्मकार बोर्ड के खातों में 81.26 करोड़ रुपये जमा है, लेकिन अब जानकारी सामने आई है कि बोर्ड के खाते में केवल 35 करोड़ रुपये ही जमा है। बाकी धनराशि कहां गई है, इसे लेकर नवगठित बोर्ड भी हैरान परेशान है। फिलहाल 15 करोड़ की खरीदारी को लेकर जारी चेकों को पर रोक जारी रहेगी। नवगठित कर्मकार बोर्ड के सामने एक बड़ा सवाल बैंकों में जमा धनराशि को लेकर भी है। सीए का कहना हैकि बैंकों को न तो ओपनिंग बैलेंस का सर्टिफिकेट दिया गया न क्लोजिंग बैलेंस का। डिपोजिट सर्टिफाई नहीं है। बैंकों में एफडी जमा है, लेकिन उसके सर्टिफिकेट कहां, किसी को नहीं मालूम। बीते सितंबर माह के हिसाब से बैंकों में 35 करोड़ रुपये जमा हैं। 
इसकी पुष्टि करते हुए कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल ने बताया कि बोर्ड की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए हैं। वित्त विभाग ने वित्तीय ऑडिट न कराए जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की है। इसलिए 2017 से लेकर अब तक का वित्तीय ऑडिट कराने का फैसला किया गया है। इसके अलावा अन्य अहम निर्णय लिए गए हैं। हम चाहते हैं कि बोर्ड के कामकाज की पारदर्शी प्रक्रिया हो और श्रमिक और मजदूर हित में कार्य हों।

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