उत्तराखंड कर्मकार बोर्ड : कर्मियों के पास न काम न धाम!

  • कल्याण पर लगा विराम
  • नए दफ्तर में आने वाले कर्मचारी भी बिना काम काट रहे हैं समय
    पुराने पदाधिकारियों से नहीं मिल पा रही हैं पुराने दफ्तर की चाबियां

देहरादून। उत्तराखंड कर्मकार बोर्ड का काम श्रमिकों का कल्याण करना है पर नेताओं की रस्साकशी की वजह से इस पर पूर्ण विराम लगा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल के अंतिम दिनों में कर्मकार बोर्ड में आमूलचूल परिवर्तन किया गया था। उनके हटने के बाद लगातार उनके फैसले पलटे जा रहे हैं। एक बार फिर उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड चर्चाओं में आ गया है।
फिलहाल बोर्ड के आधे कार्यालय ताले लटके पड़े हैं और बाकी आधा दफ्तर सर्वे चौक स्थित हॉस्टल की बिल्डिंग के कोने में चल रहा है।दिलचस्प बात यह है पुराने दफ्तर की चाबियां भी पूर्व पदाधिकारियों के पास से नहीं मिल पाई हैं। कर्मकार बोर्ड में सचिव पद से दमयंती रावत को हटाने और अध्यक्ष पद से डॉ. हरक सिंह रावत को हटाने के बाद यहां सचिव पद पर दीप्ति सिंह और अध्यक्ष पद पर शमशेर सिंह सत्याल को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके बाद कार्यालय में तमाम तरह के विवाद हुए। ऑडिट और जांच शुरू हुई लेकिन इस बीच नेतृत्व परिवर्तन हो गया।
इसी दौरान कर्मकार बोर्ड का दफ्तर सर्वे चौक के निकट स्थित हॉस्टल में शिफ्ट कर दिया गया। सचिव पद से दीप्ति सिंह को हटाकर सरकार ने मधु नेगी चौहान को जिम्मा सौंप दिया। नये मुख्यमंत्री के एक आदेश से सभी ऐसे बोर्ड, संस्थाओं में राजनीतिक पदों पर नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया। यानी अध्यक्ष पद पर शमशेर सिंह सत्याल भी अब नियुक्त नहीं रहे। अब बोर्ड के कर्मचारी पसोपेश में हैं। जिस पुराने दफ्तर में कागज हैं, वहां ताला लगा हुआ है, जिसकी चाबियां ही नहीं मिल पा रही हैं। जिस नए दफ्तर में कर्मचारी काम करने को आ रहे हैं, वहां उनके पास कोई काम ही नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, पुराने दफ्तर की चाबियां पूर्व पदाधिकारियों के पास हैं।
बोर्ड ने अपना दफ्तर को सर्वे चौक स्थित हॉस्टल की इमारत में शिफ्ट कर दिया लेकिन यह किस आदेश के तहत किया गया, इसकी जानकारी नहीं है। अब वर्तमान सचिव ने शासन को इस संबंध में पत्र भेजा है। ताकि यह पता चल सके कि यह दफ्तर नेहरू कालोनी के निकट स्थित इमारत में है या हॉस्टल में। 
इस बाबत कर्मकार बोर्ड सचिव मधु नेगी चौहान का कहना है कि अभी मैंने कार्यभार संभाला है। सभी व्यवस्थाएं देखी जा रही हैं। बोर्ड का काम श्रमिकों के हक में सेवाएं देने का है, जिसके लिए हम तत्पर हैं। 
इस बारे में श्रम मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत का कहना है कि सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि एक अध्यक्ष कैसे चाबी लेकर गायब हो सकता है। एक दफ्तर को बिना किसी आदेश के कैसे कहीं और शिफ्ट किया जा सकता है। वह भी ऐसी जगह, जहां एक वर्किंग महिलाओं का हॉस्टल है और दूसरा कोविड केयर सेंटर है। इस मामले में संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया जाएगा। 
उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के विवादों का गुब्बारा भी नेतृत्व परिवर्तन के बाद फूटने लगा है। बोर्ड के ऑडिट से लेकर सभी जांचें अब पूरी हो चुकी हैं। मंत्री हरक का कहना है कि ऑडिट उन्होंने खुद कराया था और बाकी कोई आरोप नहीं है, जिसकी जांच की जाए।
गौरतलब है कि कर्मकार बोर्ड में बोर्ड अध्यक्ष बदलने के बाद कई तरह के विवाद सामने आए थे। बोर्ड के सभी लेखा-जोखा का एजी ऑडिट कराया गया। यहां भर्ती 38 कर्मचारियों को नियम विरुद्ध बताते हुए बाहर कर दिया गया। बोर्ड की ओर से ईएसआई अस्पताल के लिए दिया गया लोन भी वापस ले लिया गया। वहीं बोर्ड की जांच शासन स्तर पर बैठाई गई।
नेतृत्व परिवर्तन होने के बाद सभी विवादों के गुब्बारे की हवा निकलनी शुरू हो गई है। ऑडिट के कुछ आपत्तियों पर सुनवाई की प्रक्रिया लगभग संपन्न हो गई है। 38 कर्मचारियों की बहाली के आदेश मंत्री के स्तर से किए जा चुके हैं। बाकी कोई भी जांच अब गतिमान नहीं है। श्रम मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि वर्ष 2005 से बोर्ड का ऑडिट नहीं हुआ था। इसलिए उन्होंने अपने पूर्व कार्यकाल में ही ऑडिट शुरू कराया था। बाकी किसी भी तरह की बोर्ड की जांच नहीं चल रही है। 
कर्मकार बोर्ड से हटाए गए 38 कर्मचारियों को दोबारा पुरानी तिथि से सवेतन बहाल करने की राह आसान नहीं है। प्रदेश में लागू नो वर्क, नो पे के आदेश के बीच इसमें संवैधानिक अड़चन आ सकती है, जिस पर अभी अंतिम फैसला नहीं हो पाया है।
श्रम मंत्री ने नेतृत्व परिवर्तन के बाद हाल ही में आदेश जारी किया था कि हटाए गए 38 कर्मचारियों को उसी तिथि से बहाल किया जाए। उन्हें वेतन भी दिया जाए। इस आदेश पर अब श्रम विभाग संवैधानिक नजरिए से देख रहा है। क्योंकि प्रदेश में नो वर्क-नो पे का आदेश लागू है। ऐसे में पूर्व में हटाए गए कर्मचारियों को पूर्व तिथि से ज्वाइनिंग तो दी जा सकती है लेकिन वेतन देने में अटकल आ सकती है। फिलहाल श्रम विभाग इसका समाधान ढूंढने में लगा है।

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