केदारनाथ यात्रा : 16 दिनों में भूखे-प्यासे 60 घोड़े-खच्चरों ने दम तोड़ा, मंदाकिनी में फेंके जा रहे शव!  

सिस्टम पर सवाल

  • पैसा कमाने की होड़ में घोड़े-खच्चरों के साथ हो रहे अत्याचार को देखने वाला कोई नहीं
  • घोड़े-खच्चरों के लिए न तो रहने खाने की व्यवस्था और न ही मरने के बाद हो रहा दाह संस्कार

रुद्रप्रयाग। केदारनाथ यात्रा में जरूरतमंद तीर्थ यात्रियों के लिये सहारा देने वाले घोड़े-खच्चरों के लिए न तो रहने और खाने की कोई समुचित व्यवस्था है और न ही इनके मरने के बाद दाह संस्कार किया जा रहा है। इससे चारधाम यात्रा की बेहतर सुविधाओं का दावा करने वाले सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कोई देखने वाला नहीं है कि इस बेजुबान घोड़ों-खच्चरों से एक दिन में लगातार कितने चक्कर लगवाये जा रहे हैं।
अंधाधुंध कमाई के चक्कर में उनके मालिक और हाॅकर उनसे दिन रात काम ले रहे हैं। ऐसे में केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के दम तोड़ देने की घटनायें बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर उनके मरने के बाद उनके मालिक और हाॅकर उन्हें वहीं पर फेंक रहे हैं जो सीधे मंदाकिनी में गिरकर नदी को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसे में केदारनाथ क्षेत्र में महामारी फैलने का खतरा भी मंडराने लगा है। अभी तक करीब एक लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोड़े-खच्चरों से अपनी यात्रा कर चुके हैं, जबकि अन्य तीर्थयात्री हेलीकाॅप्टर व पैदल चलकर धाम पहुंचे हैं।
समुद्र तल से 11750 फिट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तक पहुंचने के लिए बाबा केदार के भक्तों को 18 किमी की दूरी तय करनी होती है। ऐसे में यात्री को धाम तक पहुंचाने में घोड़ा-खच्चर अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन जानवरों के लिए भरपेट चारा भी नहीं दिया जा रहा है। तमाम दावों के बावजूद पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ों-खच्चरों के लिए गर्म पानी नहीं है। दूसरी तरफ संचालक एवं हॉकर रुपए कमाने की होड़ में घोड़ों-खच्चरों से एक दिन में गौरीकुंड से केदारनाथ के दो से तीन चक्कर लगवा रहे हैं और रास्ते में उन्हें पलभर भी आराम नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण वे थकान से चूर होकर मौत के शिकार हो रहे हैं।
आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि केदारनाथ की रीढ़ कहे जाने वाले इन जानवरों की कितनी सुध ली जा रही है। सिर्फ 16 दिनों में 55 घोड़ों-खच्चरों की थकान से मौत हो चुकी है, जबकि 4 घोड़ों-खच्चरों की गिरने से और एक की पत्थर की चपेट में आने से मौत हुई है। बावजूद इसके घोड़े-खच्चरों की सुध नहीं ली जा रही है।
विडंबना यह है कि यात्रा में पैदल मार्ग पर घोड़ों-खच्चरों के संचालन और उनके खाने पीने या रहने की ठोस व्यवस्था आज तक नहीं बन पाई है। हर बार यह व्यवस्था सवालों के घेरे में रहती है, जिसका खमियाजा बेजुबान जानवरों के साथ-साथ यात्रियों को भी झेलना पड़ता है। घोड़ा-खच्चर संचालन की मॉनीटरिंग के दावे खोखले साबित हुए हैं। गौरीकुंड से केदारनाथ तक घोड़ा-खच्चर के लिए 18 किमी रास्ते में बीच में कहीं भी विश्राम के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इस दौरान संचालक एवं हॉकर गौरीकुंड से घोड़े को हांकते हुए सीधे बेस कैंप केदारनाथ में रुकते हैं और थोड़ा बहुत चारा खिलाकर पुनः नीचे के लिए दौड़ा दिया जाता है। भूखे प्यासे जानवर को पानी और आराम न मिलने से उसके पेट में गैस बननी शुरू हो जाती है जो फेफड़ों के बाहरी झिल्ली को प्रभावित करती है और उनकी दर्द से मौत हो जाती है।
जिला पंचायत अध्यक्ष अमरदेई शाह ने बताया कि गौरीकुंड से केदारनाथ धाम तक कहीं पर भी घोड़े-खच्चरों के लिए आराम करने के लिए टिन शेड का निर्माण नहीं किया गया है और न ही अन्य व्यवस्थाएं की गई हैं। घोड़ों-खच्चरों के मालिक भी अपने जानवरों के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं। घोड़ा-खच्चर संचालक एवं हॉकर घोड़ा-खच्चरों की सुध नहीं ले रहे हैं, जो बड़ा अपराध है। यात्रा मार्ग पर मर रहे घोड़ों-खच्चरों को नदी में डाला जा रहा है, जो भयावह है। मृत जानवर का सही तरीके से दाह संस्कार कर उसे जमीन में नमक डालकर दफनाया जाना चाहिये। 

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