गंभीर संकट की ओर बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था!

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने चेताया

  • रघुराम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जताई गंभीर चिंता, बढ़ता राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था के लिए बनेगा संकट
  • कहा, अर्थव्यवस्था के गंभीर संकट का कारण अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी सरकार के दृष्टिकोण में अनिश्चितता
  • भारत के वित्तीय संकट को एक लक्षण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि मूल कारण के रूप में
  • चालू वित्त वर्ष में सरकार के रेकॉर्ड सात लाख करोड़ रुपये के कर्ज लेने की योजना से निवेशक भी चिंतित

नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने देश के राजकोषीय घाटे को लेकर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि बढ़ता राजकोषीय घाटा एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को एक बेहद ‘चिंताजनक’ अवस्था की तरफ धकेल रहा है। ब्राउन यूनिवर्सिटी में ओपी जिंदल लेक्चर के दौरान प्रख्यात अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने यह टिप्पणी की।
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के गंभीर संकट का कारण अर्थव्यवस्था को लेकर दृष्टिकोण में अनिश्चितता है। उन्होंने कहा, ‘पिछले कई साल तक अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय स्तर पर सुस्ती आई है। साल 2016 की पहली तिमाही में विकास दर 9% रही थी।’
भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर छह साल के निचले स्तर 5% पर पहुंच गई है और दूसरी तिमाही में इसके 5.3% के आसपास रहने की उम्मीद है। दिक्कतों की शुरुआत कहां से हुई के बारे में राजन ने कहा कि पहले की दिक्कतों का समाधान नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि असल दिक्कत यह है कि भारत विकास के नए स्रोतों का पता लगाने में नाकाम रहा है।
राजन ने कहा, ‘भारत के वित्तीय संकट को एक लक्षण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि मूल कारण के रूप में।’ उन्होंने विकास दर में आई गिरावट के लिए निवेश, खपत और निर्यात में सुस्ती तथा एनबीएफसी क्षेत्र के संकट को जिम्मेदार ठहराया। विदेशी बाजार में सरकारी बॉन्ड बेचने की मोदी सरकार की योजना जोखिम से भरीः रघुराम राजन
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा विदेशी बाजार में बॉन्ड बेचने की योजना जोखिमों से भरी है और इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला है।
केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार के विदेशी बाजार में सरकारी बॉन्ड बेचकर पैसे जुटाने की योजना की सफलता पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आशंका जताई है। राजन का कहना है कि सरकार की इस योजना से वास्तव में कोई लाभ नहीं होने वाला है और यह कदम जोखिमों से भरा है। रघुराम ने शनिवार को कहा, ‘विदेश में बॉन्ड की बिक्री से घरेलू सरकारी बॉन्ड की मात्रा कम नहीं होगी, जिनकी बिक्री स्थानीय बाजार में करनी है। देश को निवेशकों के उस रुख की चिंता करनी चाहिए, जिसमें वे भारतीय अर्थव्यवस्था में बूम रहने पर खूब निवेश करते हैं और जैसे ही सुस्ती आती है, निवेश से कन्नी काट लेते हैं।’
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा इस महीने की शुरुआत में विदेश में सरकारी बॉन्ड बेचकर पैसे जुटाने की योजना की घोषणा का विपक्षी पार्टियों ने भी विरोध किया है। अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के बाद मोदी सरकार के समक्ष फंड जुटाने के विकल्प सीमित होने के बाद विदेश में बॉन्ड बेचने की योजना की घोषणा की गई है। चालू वित्त वर्ष में सरकार के रेकॉर्ड सात लाख करोड़ रुपये (103 बिलियन डॉलर) के कर्ज लेने की योजना से निवेशक भी चिंतित हैं।
राजन ने कहा, ‘फॉरेन एक्सचेंज पर भारतीय बॉन्ड के कारोबार में आने वाली अस्थिरता क्या हमारे घरेलू प्रतिभूति बजार पर असर डाल सकती है?’ उन्होंने कहा कि इस योजना के बदले भारत को फॉरेन पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के पंजीकरण के कायदे-कानून में सहूलियत देनी चाहिए और सरकारी बॉन्ड में निवेश की मौजूदा सीमा में बढ़ोतरी करनी चाहिए।’
आरबीआई के तीन पूर्व अधिकारियों ने भी केंद्र सरकार की इस योजना का विरोध किया है। उनका कहना है कि अभी इस योजना के क्रियान्वयन का वक्त नहीं है, क्योंकि भारत बड़े बजट घाटे से जूझ रहा है। भारत ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए बजट घाटे का लक्ष्य जीडीपी के 3.3% तय किया है, जो फरवरी में अंतरिम बजट में तय 3.4% के लक्ष्य से कम है। राजन ने कहा, ‘छोटी मात्रा में बॉन्ड जारी किया जाता है, तो कोई खास फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। लेकिन एक बार जब दरवाजा खुल जाएगा, तो ज्यादा से ज्यादा बॉन्ड जारी करने का लालच बढ़ जाएगा। कुल मिलाकर कोई भी लत थोड़े से ही शुरू होती है।’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here