मोदी सरकार ने आबादी कंट्रोल से हाथ झाड़े!

  • सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा- हम देश के लोगों पर जबरन परिवार नियोजन थोपने के विरोधी
  • जनसंख्या नियंत्रण कानून पर हलफनामे में कहा, किसके कितने बच्चे हों, यह खुद तय करें दंपति सरकार नागरिकों पर यह जबर्दस्ती न करे कि वो निश्चित संख्या में ही पैदा करें अपने बच्चे  

दिल्ली। आज शनिवार को मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह देश के लोगों पर जबरन परिवार नियोजन थोपने के साफ तौर पर विरोध में है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है जिसमें अपने परिवार के आकार का फैसला दंपति कर सकते हैं और अपनी इच्छानुसार परिवार नियोजन के तरीके अपना सकते हैं। किसके कितने बच्चे हों, यह खुद पति-पत्नी तय करें और सरकार नागरिकों पर जबर्दस्ती नहीं करे कि वो निश्चित संख्या में ही बच्चे पैदा करे।
मोदी सरकार ने बताया कि निश्चित संख्या में बच्चों को जन्म देने की किसी भी तरह की बाध्यता हानिकारक होगी और जनसांख्यिकीय विकार पैदा करेगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में पेश हलफनामे में कहा कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है जिसमें अपने परिवार के आकार का फैसला दंपती कर सकते हैं और अपनी इच्छानुसार परिवार नियोजन के तरीके अपना सकते हैं। इसमें किसी तरह की अनिवार्यता नहीं है।
भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर केंद्र सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान इसी साल 10 जनवरी को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर प्रतिक्रिया मांगी थी। याचिका में दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें अदालत ने देश की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण के लिए दो बच्चों के नियम समेत कुछ कदमों को उठाने की मांग करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने कहा था कि इस याचिका पर सुनवाई करने करने का कोई वजह नहीं है। पीठ ने कहा था कि न्यायपालिका सरकार के कार्यों को नहीं कर सकती है और अदालत संसद और राज्य विधानसभाओं को निर्देश जारी नहीं करना चाहती है। हाई कोर्ट की बेंच ने 4 सितंबर को याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि कानून बनाना संसद और राज्य विधायिकाओं का काम है, अदालत का नहीं। उक्त याचिका में कहा गया था कि भारत की आबादी चीन से भी अधिक हो गई है तथा 20 प्रतिशत भारतीयों के पास आधार कार्ड नहीं है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि ‘लोक स्वास्थ्य’ राज्य के अधिकार का विषय है और लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से बचाने के लिए राज्य सरकारों को स्वास्थ्य क्षेत्र में उचित एवं निरंतर उपायों से सुधार करने चाहिए। इसमें कहा गया, “स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार का काम राज्य सरकारें प्रभावी निगरानी तथा योजनाओं एवं दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया के नियमन एवं नियंत्रण के लिए विशेष हस्तक्षेप के साथ प्रभावी ढंग से कर सकती हैं।” गौरतलब है कि अश्विनी उपाध्याय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का आग्रह कर चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर वर्ष 2018 में एक प्रजेंटेशन भी दिया था।

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