सी-60 ने 50 लाख के इनामी सहित 26 नक्‍सलियों को किया ढेर

गढ़चिरौली। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में शनिवार को नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई में 26 नक्सलियों को मार गिराया। जिनमें 50 लाख का इनामी नक्सलियों का वह टॉप कमांडर भी शामिल है जो सुरक्षा बलों के लिये सिरदर्द बना हुआ था। इसे सी-60 यूनिट की बड़ी कामयाबी माना गया है। इस मुठभेड़ में चार जवान भी घायल हुए हैं। इससे पहले साल 2018 में सी-60 यूनिट ने 39 नक्सलियों को ढेर किया था। इसका बदला नक्सलियों ने साल 2019 में लिया और सी-60 यूनिट के 15 जवान हमले में शहीद हुए। नक्सली सी-60 यूनिट को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं।नक्सल खतरों को ध्यान में रखते हुए 1992 में सी-60 कमांडो फोर्स तैयार की गई थी। इसमें पुलिस फोर्स के खास 60 जवान शामिल होते हैं। यह काम गढ़चिरौली के तब से एसपी केपी रघुवंशी ने किया था। सी-60 में शामिल पुलिस वालों को गुरिल्ला युद्ध के लिए भी तैयार किया जाता है। इनकी ट्रेनिंग हैदराबाद, बिहार और नागपुर में होती है।इस फोर्स को महाराष्ट्र की उत्कृष्ट फोर्स माना जाता है। रोजाना सुबह खुफिया जानकारी के आधार पर यह फोर्स आसपास के क्षेत्र में ऑपरेशन को अंजाम देती है। सी-60 के जवान अपने साथ करीब 15 किलो का भार लेकर चलते हैं। जिसमें हथियार के अलावा, खाना, पानी, फर्स्ट ऐड और बाकी सामान शामिल होता है। यह इकलौती ऐसी फोर्स है जो जिला स्तर पर तैयार की गई है। इसके लिए वहीं की जनजातीय आबादी से लोगों को लिया जाता है क्योंकि नक्सलियों की तरह वे भी उस इलाके से परिचित होते हैं। इसलिए वहीं के ग्रामीणों को कमांडो बनाया जाता है। ऐसी ही कुछ अन्य फोर्स भी कई राज्यों में है। इसमें तेलंगाना की ग्रेहाउंड्स और आंध्र प्रदेश की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) शामिल हैं, लेकिन ये सभी फोर्स राज्य स्तर पर बनाई गई हैं। मशहूर ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ को इन्होंने अपनी टैगलाइन बनाया हुआ है। सी-60 की शुरुआत 15 टीमों के साथ हुई थी जो अब बढ़कर 24 से पार चली गई हैं।यह इकलौती ऐसी फोर्स बताई जाती है जिसमें टीम को उसके कमांडर के नाम से जाना जाता है। सी-60 बल का मुखिया भी आदिवासी ही होता है। ये आदिवासी कमांडो नए-नए हथियार और गैजेट्स चलाने में दक्ष होते हैं। उनकी खुफिया क्षमता भी जबर्दस्त होती है क्योंकि उन्हें अपने गांवों की संस्कृति, लोग और भाषा के बारे में पूरी जानकारी होती है। स्थानीय लोग उन्हें जानते हैं और उनसे बात करने में उन्हें असुविधा नहीं होती है। सी-60 के कमांडो खुद से ही इस बल में शामिल होते हैं। इसमें शामिल कई लोग ऐसे होते हैं जिनके नाते-रिश्तेदार नक्सली हमले में अपनी जान गंवा चुके होते हैं। 

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