इतिहास के झरोखे से
-जब म्यूनिख में ओलंपिक खेलों के दौरान हुआ था आतंकी हमला और मार दी गई थी इजरायल की पूरी टीम
-इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने 20 साल तक चुन चुनकर घटना के जिम्मेदारों को उतारा मौत के घाट
यह घटना वर्ष 1972 की है। जब म्यूनिख में आयोजित ओलंपिक खेलों के दौरान आतंकी हमला कर इजरायल की पूरी टीम मार दी गई थी। इस घटना से आहत इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने सबसे पहले ऐसे लोगों की लिस्ट बनाई, जिनका संबंध इस नरसंहार से था। वर्ष 1972 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी के म्यूनिख शहर में किया गया था। दुनियाभर के देशों के खिलाड़ी इसमें हिस्सा लेने आए थे।
इसी दौरान खेलों के पांचवें दिन पांच सितंबर को खिलाड़ियों की तरह ट्रैक सूट पहने आठ अजनबी लोग लोहे की दीवार फांदकर ओलंपिक विलेज में घुसने की कोशिश कर रहे थे। तभी वहां कनाडा के कुछ खिलाड़ी पहुंच गए और उन्होंने उनको किसी दूसरे देश का खिलाड़ी समझा और फिर दीवार फांदने में उनकी सहायत की। इसके बाद कनाडा के खिलाड़ी आगे बढ़ गए। दूसरी तरफ ट्रैक सूट पहने वे अजनबी उस इमारत के बाहर पहुंचे जहां इजरायली खिलाड़ियों को ठहराया गया था।
इमारत में दाखिल होते ही उनका असली चेहरा सामने आ गया। वे कोई खिलाड़ी नहीं बल्कि हथियारों से लैस आतंकी थे। ये फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी पीएललो से जुड़े थे। हथियारों से लैस आठों आतंकियों ने जिस अपार्टमेंट में दाखिल होने की कोशिश की, उसमें रह रहे पहलवान योसेफ गटफ्रंड अभी जाग रहे थे, शोर सुनकर वो दरवाजे तक पहुंचे और गटफ्रंड ने शोर मचाकर अपने बाकी साथियों को खबरदार कर दिया। पूरे हॉस्टल में हड़ंकप मच गया, कुछ खिलाड़ी भागने की कोशिश करने लगे।
उनके रेसलिंग कोच मोसे वेनबर्ग दौड़कर किचन में घुसे और मुकाबला करने के लिए चाकू उठा लिया। अगले ही पल एक आतंकी की बंदूक गरजी और गोली मोसे के गालों को छेदती हुई निकल गई। इसके बाद आतंकियों ने हॉस्टल में खिलाड़ियों को बंधक बना लिया। गोलीबारी के बीच कुछ खुशकिस्मत खिलाड़ी भागने में कामयाब रहे लेकिन कुछ ऐसे बहादुर खिलाड़ी भी थे, जिन्होंने पूरी हिम्मत जुटाकर आतंकियों का मुकाबला किया। वो अपने साथियों को बचाने के लिए दुश्मनों से भिड़ गए, लेकिन आतंकियों ने उन्हें गोली मारने में देर नहीं लगाई।
अगले दिन मीडिया में ये खबर सनसनी बनकर पूरी दुनिया में फैल गई कि फलस्तीनी आतंकवादियों ने ओलंपिक खेलों के दौरान म्यूनिख में 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है। अब तक बाहरये पता नहीं था कि दो खिलाड़ी पहले ही मारे जा चुके हैं।
आतंकियों ने मांग रखी कि इजरायल की जेलों में बंद 234 फलस्तीनियों को रिहा किया जाए, लेकिन इजरायल ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि आतंकियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी। इसके बाद आतंकियों ने दो खिलाड़ियों के शवों को हॉस्टल के दरवाजे से बाहर फेंक दिया। इससे वो ये संदेश देना चाहते थे कि यही हाल बाकी खिलाड़ियों का भी होगा लेकिन इजरायल का इरादा नहीं बदला।
इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर के सख्त तेवर देखकर दुनिया दंग थी। लोगों को लग रहा था कि इजरायल ने अपने खिलाड़ियों को आतंकियों के भरोसे छोड़ दिया है। लेकिन हकीकत ये है कि इजरायल जर्मनी को इस बात के लिए राजी करने में जुटा था कि वो म्यूनिख में अपने स्पेशल फोर्सेस भेज सके, जिससे ओलंपिक खेलों के दौरान खिलाड़ियों को बंधक बनाने वालों से मोलभाव कर सके, लेकिन जर्मनी इसके लिए तैयार नहीं हुआ। पूरी दुनिया के लोग सांसें थामे इंतजार कर रहे थे कि आखिर इजरायली खिलाड़ियों का क्या होगा। इसी बीच आतंकियों ने मांग रखी कि उन्हें यहां से निकलने दिया जाए, वो बंधक इजरायली खिलाड़ियों को अपने साथ ले जाना चाहते थे। जिसे जर्मन सरकार ने मान लिया।
जर्मन सरकार की रणनीति थी कि इसी बहाने आतंकी और खिलाड़ी बाहर निकलेंगे और एयरपोर्ट पर आतंकियों को निशाना बनाना आसान होगा।
प्लान के मुताबिक आतंकियों को बस मुहैया कराई गई, जो उन्हें एयरपोर्ट तक ले गई। एयरपोर्ट पर अंधेरे में जगह-जगह शार्प शूटर तैनात कर दिए गए थे। पूरी दुनिया अपने टीवी स्क्रीन पर इस मंजर को लाइव देख रही थी। खिलाड़ियों को बस से उतारकर हेलीकॉप्टर में बिठाया गया। इसके कुछ ही सेकेंड बाद शार्प शूटरों ने आतंकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। खुद को चारों तरफ से घिरता देख आतंकियों ने निहत्थे खिलाड़ियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। एक हेलीकॉप्टर को बम से उड़ा दिया गया। फिर दूसरे हेलीकॉप्टर में बैठे खिलाड़ियों को भी गोलियों से भून दिया गया। कुछ ही मिनटों में एयरबेस पर मौजूद हर आतंकी मारा गया। साथ ही इजरायल के नौ खिलाड़ी भी आतंकियों की गोलियों के शिकार बन गए। इस खौफनाक मिशन को अंजाम देने वाले आठ आतंकी भी मारे गए, लेकिन इजरायल शांत बैठने वाला नहीं था।
इजरायल ने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद से उन सभी लोगों के कत्ल की योजना बनाई, जिनका वास्ता ऑपरेशन ब्लैक सेंप्टेंबर से था। इस मिशन को ‘रैथ ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का कहर नाम दिया गया था। म्यूनिख नरसंहार के दो दिन के बाद इजरायली सेना ने सीरिया और लेबनान में फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के 10 ठिकानों पर बमबारी की और करीब 200 आतंकियों और आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने मोसाद से एक ऐसा मिशन चलाने को कहा जिसके तहत अलग-अलग देशों में रह रहे उन सभी लोगों के कत्लेआम किया जाए जिनका वास्ता ब्लैक सेप्टेंबर से था। मोसाद ने ऐसे लोगों की लिस्ट बनाई, जिनका संबंध म्यूनिख नरसंहार से था। इसके बाद ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड को अंजाम देने के लिए तैयार एजेंटों को बताया गया कि पकड़े जाने पर इजरायल उन्हें पहचानने से इनकार कर देगा। यानी बिना किसी पहचान, बिना किसी मदद के उन्हें इस मिशन को अंजाम देना था।
मिशन शुरू होने के कुछ ही महीनों के अंदर मोसाद एजेंटों ने वेल ज्वेटर और महमूद हमशारी का कत्ल कर सनसनी मचा दी। अब मोसाद की टीम ने ब्लैक सेप्टेंबर से संबंध रखने के शक में हुसैन अल बशीर नाम के शख्स की दिन-रात निगरानी शुरू की।ये शख्स होटल में रहता था, और होटल में वो सिर्फ रात को आता था और दिन शुरू होते ही निकल जाता था। मोसाद की टीम के एक एजेंट ने बशीर के ठीक बगल वाला कमरा किराए पर ले लिया। वहां की बालकनी से बशीर के कमरे में देखा जा सकता था। रात को जैसे ही बशीर बिस्तर पर सोने के लिए गया। एक धमाके के साथ उसका पूरा कमरा उड़ गया। इजरायल का मानना था कि वो साइप्रस में ब्लैक सेप्टेंबर का प्रमुख था, हालांकि उसकी हत्या के पीछे रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी से उसकी नजदीकियां अहम मानी गईं।
इसके बाद फलस्तीनी आतंकियों को हथियार मुहैया कराने के शक में बेरूत के प्रोफेसर बासिल अल कुबैसी को गोली मार दी गई। मोसाद के दो एजेंटों ने उसे 12 गोलियां मारीं। मोसाद की लिस्ट में शामिल तीन टार्गेट लेबनान में भारी सुरक्षा के बीच रह रहे थे और अभी तक के हत्याओं के तरीकों से उन तक पहुंचना नामुमकिन था। इसलिए उनके लिए विशेष ऑपरेशन ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ शुरू किया गया। 9 अप्रैल 1973 को इजरायल के कुछ कमांडो लेबनान के समुद्री किनारे पर स्पीडबोट से पहुंचे। इन कमांडो को मोसाद एजेंट ने कार से टार्गेट के करीब पहुंचाया। कमांडो आम लोगों की पोशाक में थे और कुछ ने महिलाओं के कपड़े पहन रखे थे। पूरी तैयारी के साथ इजरायली कमांडो की टीम ने इमारत पर हमला किया। इस ऑपरेशन के दौरान लेबनान के दो पुलिस अफसर, एक इटैलियन नागरिक भी मारे गए। वहीं इजरायल का एक कमांडो घायल हो गया।
इसके बाद तीन हमले और किए गए। इनमें साइप्रस में जाइद मुचासी को एथेंस के एक होटल रूम में बम से उड़ा दिया गया। वहीं ब्लैक सेप्टेंबर के दो किशोर सदस्य अब्देल हमीन शिबी और अब्देल हादी नाका रोम में कार धमाके में घायल हो गए। मोसाद के एजेंट दुनिया में घूम-घूम म्यूनिख कत्ल-ए-आम के गुनहगारों को मौत के घाट उतार रहे थे। हालांकि उसकी हिट लिस्ट में और लोगों के नाम शुमार थें मिशन के तहत 28 जून 1973 को ब्लैक सेप्टेंबर से जुड़े मोहम्मद बउदिया को उसकी कार की सीट में बम लगाकर उड़ा दिया। 15 दिसंबर 1979 को दो फलस्तीनी अली सलेम अहमद और इब्राहिम अब्दुल अजीज की साइप्रस में हत्या हो गई। 17 जून 1982 को पीएलओ के दो वरिष्ठ सदस्यों को इटली में अलग-अलग हमलों में मार दिया गया। 23 जुलाई 1982 को पेरिस में पीएलओ के दफ्तर में उप निदेशक फदल दानी को कार बम से उड़ा दिया गया। 21 अगस्त 1983 को पीएलओ का सदस्य ममून मेराइश एथेंस में मार दिया गया। 10 जून 1986 को ग्रीस की राजधानी एथेंस में पीएलओ के डीएफएलपी गुट का महासचिव खालिद अहमद नजल मारा गया। 21 अक्टूबर 1986 को पीएलओ के सदस्य मुंजर अबु गजाला को काम बम से उड़ा दिया गया। 14 फरवरी 1988 को साइप्रस के लीमासोल में कार में धमाका कर फलस्तीन के दो लोगों को मार दिया गया।
इस प्रकार मोसाद के एजेंट अलग-अलग देशों में जाकर करीब 20 साल तक म्यूनिख घटना से जुड़े लोगों की हत्याओं को अंजाम देते रहे।
इजरायल का अगला निशाना था अली हसन सालामेह जो म्यूनिख कत्ल-ए-आम का मास्टरमाइंड था। मोसाद ने सलामेह को एक कोड नाम दिया था, रेड प्रिंस। मोसाद के जासूस उसकी तलाश पूरी दुनिया में कर रहे थे लेकिन ये बात सलामेह भी जानता था और इसीलिए उसने अपने इर्दगिर्द सुरक्षा का घेरा बढ़ा दिया था। नार्वे में साल 1973 और स्विट्जरलैंड में साल 1974 में मोसाद ने सलामेह को जान से मारने की कोशिश की लेकिन वो असफल रहे। इसके बाद साल 1974 में स्पेन में एक बार फिर सलामेह की हत्या की कोशिश की गई लेकिन वो फिर बच निकला। पांच साल बाद साल 1979 में मोसाद ने एक बार फिर सलामेह को लेबनान की राजधानी बेरूत में ढूंढ़ निकाला। 22 जनवरी 1979 को एक कार बम धमाका कर सलामेह को भी मौत के घाट उतार दिया गया। म्यूनिख कत्ल-ए-आम का गुनहगार मारा जा चुका था लेकिन मोसाद के ऑपरेशन में उसके एजेंट्स ने 11 में से 9 फलस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया था। वैसे ये भी एक सच है कि करीब 20 साल तक चले इस सीक्रेट ऑपरेशन में मोसाद ने कुल 35 फलस्तीनियों को मारा था।