आखिरकार 68 साल बाद फिर टाटा की हुई एयर इंडिया

मुंबई। आखिरकार 68 साल बाद फिर एअर इंडिया अब टाटा ग्रुप की हो गई है। मोदी सरकार ने टाटा संस की बोली को स्वीकार कर लिया है।
मोदी सरकार ने इसमें पूरी 100% हिस्सेदारी बेचने के लिए टेंडर मांगे थे। एअर इंडिया की दूसरी कंपनी एयर इंडिया सैट्स (AISATS) में सरकार इसी के साथ 50% हिस्सेदारी बेचेगी। एयर इंडिया के लिए बनी कमेटी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल और उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। सूत्रों के अनुसार एअर इंडिया का रिजर्व प्राइस 15 से 20 हजार करोड़ रुपए तय किया गया था।
टाटा ग्रुप ने स्पाइस जेट के चेयरमैन अजय सिंह से ज्यादा की बोली लगाई थी। इस तरह करीब 68 साल बाद एअर इंडिया घर वापसी कर गई है। एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख 15 सितंबर थी। गौरतलब है कि एयर इंडिया को 1932 में टाटा ग्रुप ने ही शुरू किया था। टाटा समूह के जेआरडी टाटा इसके फाउंडर थे। वह खुद पायलट थे। तब इसका नाम टाटा एअर सर्विस रखा गया। 1938 तक कंपनी ने अपनी घरेलू उड़ानें शुरू कर दी थीं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद इसे सरकारी कंपनी बना दिया गया। आजादी के बाद सरकार ने इसमें 49% हिस्सेदारी खरीदी। इस डील के तहत एयर इंडिया का मुंबई में स्थित हेड ऑफिस और दिल्ली का एयरलाइंस हाउस भी शामिल है। मुंबई के ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा है। मौजूदा समय में एअर इंडिया देश में 4400 और विदेशों में 1800 लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट को कंट्रोल करती है।
उल्लेखनीय है कि भारी-भरकम कर्ज से दबी एअर इंडिया को कई सालों से बेचने की योजना में सरकार फेल रही। एयर इंडिया को सबसे पहले बेचने का फैसला साल 2000 में किया गया था। यह वही साल था, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने मुंबई के सेंटॉर होटल सहित कई कंपनियों का विनिवेश किया था। उस समय अरुण शौरी विनिवेश मंत्री थे। 27 मई 2000 को सरकार ने एयर इंडिया में 40% हिस्सा बेचने का फैसला किया था। सरकार ने 10% हिस्सा कर्मचारियों को शेयर देने के रूप में और 10% घरेलू वित्तीय संस्थानों को देने का फैसला किया था। इसके बाद सरकार की हिस्सेदारी एयर इंडिया में घटकर 40% रह जाती। हालांकि तब से पिछले 21 साल से एयर इंडिया को बेचने की कई बार कोशिश हुई। पर हर बार किसी न किसी कारण से यह मामला अटक गया। सरकार ने 2018 में 76% हिस्सेदारी बेचने के लिए बोली मंगाई थी। हालांकि उस समय सरकार मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखने की बात कही थी। जब इसमें किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सरकार ने मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ इसे 100% बेचने का फैसला किया। 

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