आयुर्वेद शल्य पर शंका करना समाज में भ्रम फैलाना: आचार्य बालकृष्ण

हरिद्वार। पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद शल्य पर शंका करना अज्ञानता और समाज में भ्रम फैलाना है। महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सकों को मरीजों को ठीक करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शल्य चिकित्सा आयुर्वेद में वर्णित प्राचीन विधि चिकित्सा विधि है। प्राचीन अष्टांग आयुर्वेद में सर्जरी को मुख्य चिकित्सा विधि के रूप में उल्लेख किया गया है। इनमें शल्य, शालक्य, काय चिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्रा, रसायनतंत्रा, वाजीकरणतंत्राम जैसी शल्य चिकित्सा है। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक शल्य चिकित्सा, संधन क्रिया, जिह्ना, नेत्र, कर्ण, दंत, नासा और मुखरोग सभी रोगों की शल्य चिकित्सा भी आचार्य सुश्रुुत द्वारा वर्णित विधाओं का ही प्रचलन मात्रा है। उन्होंने कहा कि पतंजलि योगपीठ में पिछले दस वर्षों में हजारों रोगियों की शल्य चिकित्सा से इलाज किया गया है। इसमें बवासीर, भगंदर, परिकर्तिका, नाड़ीव्रण, पिनोडिनल, हर्निया, हाइड्रोसिल, मूत्र ग्रंथि रोग आदि की सर्जरी की जाती है। फिस्टुला का इलाज आधुनिक चिकित्सा में एलोपैथी में भी नहीं है। एम्स, मेदांता, अपोलो, मैक्स, फोर्टिस जैसे अस्पतालों से मरीज पतंजलि अस्पताल में इलाज करवाने आते हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय में परास्नातक सर्जरी शिक्षा दी जाती है। कई योग्य डाक्टर रोगियों की सेवा कर रहे हैं। आयुर्वेद में एनेस्थीसिया और एंटीबायोटिक के सवाल पर आचार्य ने कहा कि एलोपैथिक में भी एनेस्थीसिया नहीं है और वह अलग विभाग है। जबकि आयुर्वेदिक में कारगर एंटीबायोटिक हैं।

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