देहरादून। जोशीमठ जैसे उत्तराखंड में और भी शहर हैं जो दरारों के दर्द से परेशान हैं। ऋषिकेष, नैनीताल, मसूरी, टिहरी गढ़वाल, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और अल्मोड़ा में भी घरों में दरारें देखी गई हैं। यानी उत्तराखंड के एक बड़े हिस्से में ये डरावनी दरारें और डरा रही हैं। इन शहरों या उनके कुछ हिस्सों के धंसने की शुरुआत हो चुकी है। वहीं सरकार का दावा है कि जोशीमठ स्थिर होने की ओर है और अब दरारों के बढ़ने की संभावना बहुत कम है। हालांकि यह भी जोड़ा कि अंतिम रूप से इस बारे में तकनीकी संस्थाओं की रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जाएगा।
सचिव आपदा प्रबन्धन डा0 रंजीत कुमार सिन्हा ने जोशीमठ नगर क्षेत्र में हो रहे भू-धंसाव एवं भूस्खलन के उपरान्त राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे राहत व बचाव तथा स्थायी/अस्थायी पुनर्वास आदि से सम्बन्धित किये जा रहे कार्यो की मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि जोशीमठ में अग्रिम राहत के तौर पर 3.36 करोड़ रूपये की धनराशि 224 प्रभावित भूस्वामियों को वितरित कर दी गई है।
95 प्रभावित किरायेदारों को 47.50 लाख की धनराशि तत्काल राहत के रूप में वितरित की गई है | जोशीमठ में उद्यान विभाग की भूमि पर मॉडल प्री फैब्रिकेटेड शेल्टर निर्माणाधीन है। शीघ्र निर्माण कार्य पूरा होने की संभावना है। ढाक गांव, चमोली में प्री फैब्रिकेटेड ट्रांजिशन सेंटर हेतु भूमि विकास का कार्य जारी है। सर्वेक्षण में दरारों वाले भवनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
वहीं अभी तक जोशीमठ में 863 भवनों में दरारें दर्ज की गई हैं, जबकि 181 भवनों को पूरी तरह से असुरक्षित घोषित किया जा चुका है। वहीं, जांच एजेंसियों की रिपोर्ट में सामने आया है कि अब तक करीब 460 जगह जमीन के अंदर 40 से 50 मीटर तक गहरी दरारें मिली हैं। ऐसे में भू-धंसाव से प्रभावित 30 फीसदी क्षेत्र कभी भी धंस सकता है। इसलिए इस क्षेत्र में बसे करीब 4000 प्रभावितों को तुरंत विस्थापित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। दरारों वाले भवनों को जल्द ध्वस्त करना होगा।
डॉ. सिन्हा ने कहा कि जोशीमठ में भू-धंसाव की समस्या वर्ष 1976 से चल रही है। जो अब बढ़ गई है। इसका मतलब यह नहीं कि जोशीमठ नीचे चला जाएगा। वहां जो तेज ढलानें हैं, उनमें बने भवनों और जमीन पर अधिक दरारें हैं, जबकि समतल जमीन पर हल्की दरारें हैं, उनका इलाज करना पड़ेगा।