संघ का चुनावी मॉडल
- इस बार राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल नहीं होगा पीएम मोदी का चेहरा
- छह राज्यों में चुनाव 2022 के लिए आरएसएस की बैठक में बनी भावी रणनीति
नई दिल्ली। वर्ष 2022 में छह राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा के भविष्य की राजनीति का खाका दिल्ली में करीब-करीब तय कर लिया है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दिल्ली की बैठक में वर्ष 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ने का फैसला लिया गया है। हालांकि बाकी राज्यों में चुनावी ‘चेहरों’ की घोषणा नहीं की गई है। सूत्रों के अनुसार इस पर मंथन जारी है। संघ की बैठक में सबसे अहम निर्णय यह लिया गया है कि सभी छह राज्यों में होने वाले विस चुनावों में अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चेहरा नहीं होंगे। यानी कि राज्यों को अपने स्थानीय नेताओं के बलबूते ही चुनावी नैया को पार लगाना होगा।
इससे उत्तराखंड भाजपा में खलबली मच गई है और सियासी गलियारों में यह सवाल गूंजने लगा है कि देवभूमि में भाजपा किस ‘चेहरे’ को आगे कर चुनावी शंखनाद करेगी। यह सस्पेंस विरोधी पार्टियों के नेताओं के मन में बना हुआ है। हालांकि संघ इस बाबत कब अपने पत्ते खोलेगा, यह कोई भी बताने को तैयार नहीं है। इस बाबत संघ का मानना है कि क्षेत्रीय नेताओं के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखने से उनकी छवि को नुकसान हुआ है। विरोधी बेवजह उन्हें निशाना बनाते हैं। संघ किसी भी नेता को अलग करने या नाराजगी के साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। अब इस पर योगी समेत अन्य राज्यों के भाजपा नेताओं को खरा उतरना है। महाराष्ट्र में शरद पवार परिवार को साथ लाने पर भी विचार हो रहा है।
संघ की दिल्ली में हुई बैठक में सरसंघचालक मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की मौजूदगी में ये निर्णय लिए गए हैं। सूत्रों का कहना है कि बैठक में पश्चिम बंगाल के चुनावों को लेकर गंभीर चिंतन और समीक्षा की गई। संघ नेताओं का मानना है कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ममता बनाम मोदी की रणनीति से नुकसान हुआ। इसमें चुनाव हारने से ज्यादा अहम यह है कि राजनीतिक विरोधियों को मोदी पर बार-बार हमला करने का मौका मिला। इससे उनकी इमेज को नुकसान होता है। इससे पहले भी बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के खिलाफ और फिर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी इस रणनीति से कोई फायदा नहीं हुआ।
इसके साथ ही प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस ने मोदी की इमेज मुसलमान विरोधी बनाने की रणनीति अपनाई। इससे मुसलमान वोटर एकजुट हो गए और 70% से ज्यादा मुसलमानों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट देकर चुनाव नतीजों को एकतरफा कर दिया। उत्तर प्रदेश में भी मुसलमान आबादी काफी है और करीब 75 सीटों पर वे चुनावी नतीजों पर असर डाल सकते हैं। यूपी में भी मोदी को चेहरा बनाने पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस फिर से मुसलमानों को एकजुट करने में कामयाब हो सकती हैं।
सूत्रों के अनुसार बैठक में कहा गया कि खासतौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश में योगी की इमेज मुसलमान विरोधी नहीं है और गोरखपुर के साथ जुड़े इलाकों में मुसलमानों और पिछड़ों में गोरखनाथ मंदिर पर भरोसा है। मुख्यमंत्री बनने से पहले तक योगी आदित्यनाथ मंदिर के महंत के तौर पर स्थानीय मुसलमानों के विवाद मंदिर में बैठकर सुलझाते और उनकी मदद भी करते रहे हैं। मकर सक्रांति पर मंदिर में लगने वाले खिचड़ी मेला में ज्यादातर दुकानें मुस्लिम व्यवसायियों की ही होती हैं।
सूत्रों के मुताबिक एक और अहम बात पर गंभीरता से विचार किया गया है कि इस बार यूपी विधानसभा चुनावों में भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारे। इससे उसकी मुस्लिम विरोधी छवि बनाने का मौका विरोधियों को नहीं मिलेगा। इस पर अंतिम फैसला पार्टी को करना है। पिछले चुनाव में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था।
संघ के एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि मोदी-योगी के बीच कोई विवाद नहीं है और यूपी भाजपा के ट्विटर अकाउंट या पोस्टर से मोदी की फोटो हटाने की वजह विधानसभा चुनाव योगी के चेहरे के साथ लड़ने का निर्णय ही है। दोनों नेताओं को साथ काम करने और इस छवि को मजबूत करने के लिए कहा गया है। इसलिए अब यूपी के पोस्टर पर योगी आदित्यनाथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा दिखाई देंगे। शायद इसीलिए सोमवार शाम प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश को देखते हुए योगी की फोटो जारी की गई है। हालांकि भाजपा आलाकमान को यह अंतिम निर्णय करना है कि क्या वह सामूहिक नेतृत्व के साथ चुनाव मैदान में उतरना चाहती है।