विश्वप्रसिद्ध “मैती” आंदोलन की जन्मस्थली ग्वालदम में शादी के मौके पर दुल्हन के मायके में दूल्हे और दुल्हन ने विवाह की याद में एक पौधा लगाया। गौरतलब है कि मैती आंदोलन की जन्मस्थली ग्वालदम में ढाई दशक पूर्व तत्कालीन राइंका ग्वालदम में जीव विज्ञान विषय के प्रवक्ता रहे और पद्मश्री से सम्मानित कल्याण सिंह रावत ने “मैती” आंदोलनन की नींव रखी थी। इसके तहत दुल्हन की बारात मायके आने के बाद तमाम रस्मोरिवाज के दौरान ही दूल्हा दुल्हन द्वारा अपने विवाह को यादगार बनाने के लिए एक पौधा लगाने की शुरुआत की गई थी। जो आज उत्तराखंड में ही नहीं, देशभर में देखने को मिल जाती हैं। ग्वालदम सहित आसपास के कई क्षेत्रों में तो मैती पौधा रोपने की एक परम्परा सी बन गई हैं। माना जाता है कि शादी जैसे पवित्र आयोजन के दौरान दूल्हा, दुल्हन के हाथों रोपे गए पौधे की देखभाल के लिए मायके में कई हाथ खड़े रहते हैं। जिससे इस पौधे के सुरक्षित रहने की संभावना शतप्रतिशत रहती हैं। मैती आंदोलन के तहत माना जाता है कि अगर क्षेत्र में वर्ष भर में एक सौ शादियां होती हैं तो उनमें रोपे गये पौधे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संजीवनी सिद्ध हो रहे हैं। गत सोमवार को ग्वालदम में आयोजित एक विवाह के दौरान दूल्हे नीरज और दुल्हन निकिता ने भी अपनी शादी को चिरस्मरणीय बनाने के लिए शादी के दौरान मंत्रोच्चारण के बीच एक पौधा लगाया। इस मौके पर कई बाराती और घराती मौजूद थे। ग्वालदम के ग्राम प्रधान हीरा बोरा, युवक मंगल दल अध्यक्ष प्रधुमन सिंह शाह आदि का कहना है कि क्षेत्र की हर शादी में दूल्हा दुल्हन के हाथों मैती पौधे का रोपण करवाकर प्रकृति को सजाने संवारने का प्रयास जारी रखा जाएगा।