त्रिवेंद्र को समझने में बड़े ‘बाबुओं’ को लेने होंगे कई जन्म!

फाइल फोटो
  • सज्जन होने का मतलब ‘मूर्ख’ नहीं होता
  • सीएम की फिरकी बॉलिंग से खुलने लगे है बड़े ‘बाबुओं’ के दिमाग के दरवाजे 
  • सियासत और मीडिया के कथित ‘सुपर स्पेशलिस्टों’ अब झांक रहे हैं बगले
  • दो ‘श्रीमान’ किए बोल्ड, अब निशाने पर समाज कल्याण विभाग का ‘बल्लेबाज’

देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सज्जनता का लोहा विपक्षी भी मानते रहे हैं। चमक दमक से दूर आम जनता के बीच लोकप्रिय और अहंकार से कोसों दूर त्रिवेंद्र रावत कभी भी जल्दी या आवेश में कोई कदम न उठाने में विश्वास रखते हैं। पिछले तीन साल के मुख्यमंत्रित्व काल में जब उन्होंने बेहद ठंडे तथा शांत दिमाग से कई ऐसे अप्रत्याशित फैसले लिये हैं तो तमाम सियासदां और मीडिया स्पेशलिस्ट चौंकते रहे हैं। पहले दिन से ही सरकार की कार्यशैली और उनकी जीरो टॉलरेंस की बात को लेकर मीडिया खासतौर पर सोशल मीडिया में तमाम चर्चाएं होती रही हैं। लोग अपने-अपने अंदाज में इस पर टिप्पणी करते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से त्रिवेंद्र कुछ नए अंदाज में काम करते दिख रहे हैं। उन्होंने कुछ इस तरह की फिरकी बॉलिंग शुरू कर दी है कि बड़े ‘बाबुओं’ के दिमाग के दरवाजे खुलने लगे हैं और उन्हें समझ में आने लगा है कि त्रिवेंद्र को समझने के लिये उन्हें कई जन्म लेने पड़ेंगे। सियासत और मीडिया के जिन कथित ‘सुपर स्पेशलिस्टों’ का मानना था कि अफसरशाही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के काबू से बाहर है, वे अब बगलें झांकते फिर रहे हैं और अपने तमाम दावे फुस्स होते देख खिसयानी बिल्ली की तरह ‘खंभा’ नोचने में लगे हैं। पिछले कुछ दिनों में हुए फेरबदल में कई बड़े अफसरों से अहम विभाग वापस लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह साबित कर दिया है सज्जन होने का मतलब मूर्ख होना नहीं होता। त्रिवेंद्र सरकार का जीरो टॉलरेंस का सिलसिला कहां जाकर खत्म होगा, यह अब उन सभी बुद्धिजीवियों की समझ में नहीं आ रहा है जो यह गलतफहमी पाले बैठे थे कि उनके बिना त्रिवेंद्र सरकार नहीं चला पाएंगे।इसी क्रम में हम बात करते हैं समाज कल्याण विभाग के श्रीमान गीता राम नौटियाल की। वह तमाम गंभीर आरोपों घिरे हैं और जेल भी जा चुके हैं। इन श्रीमानजी ने ताकत की दम पर खुद को नियमों के विपरीत न केवल बहाल करा लिया, बल्कि मनचाही पोस्टिंग भी पा ली। त्रिवेंद्र रावत को पता चला तो जनाब को हाथी से उतारकर फिर गधे पर बैठा दिया। इस प्रकरण में दिलचस्प बात यह है कि उसी अफसर ने गीता राम को फिर निलंबित कर दिया, जिसने लाल फीता लगाकर बहाल किया था। इसी तरह राज्य सहकारी बैंक के प्रबंध निदेशक दीपक कुमार भी लंबे समय से आरोपों के घेरे में रहे हैं। अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए तमाम जांचें फाइलों में ही दफन कराने में सफल होते रहे हैं। इस बार जनाब को यह पता ही नहीं चला कि त्रिवेंद्र की फिरकी बॉलिंग में उनके ‘विकेट’ कहां उड़ गए।त्रिवेंद्र रावत ने पहले भी कहा था कि वह कहने में नहीं, करने में विश्वास करते हैं। जीरो टॉलरेंस को साबित करते उन्होंने फिलहाल दो धुरंधरों को बैक टू द पैवेलियन भेज दिया है। माना जा रहा है कि समाज कल्याण विभाग के एक अहम बल्लेबाज को आउट करने के लिए फील्ड सजा दी गई है। इस दौरान कुछ बड़े ‘बाबुओं’ की मनमानी ‘फील्डिंग’ पर भी मुख्यमंत्री की निगाहें लगी हैं। सूत्रों का कहना है कि अब उनके निशाने पर समाज कल्याण विभाग का वो अफसर है, जिसके दम पर गीता राम जैसे अफसर मनमानी करते रहे हैं। त्रिवेंद्र ने बिना किसी लाग लपेट के मुख्य सचिव को कह दिया है कि इस मामले की तत्काल जांच कराएं कि गीता राम की बहाली में किस अफसर ने ‘खेल’ किया। बताया जा रहा है कि इस काम में शासन के एक खास अफसर ने अहम रोल अदा किया था। बताया जा रहा है कि इसी अफसर ने नियमों के विपरीत एक कालेज को 80 लाख रुपये की छात्रवृत्ति सीधे अपने स्तर से ही जारी कर दी थी। फॉर्म में चल रहे त्रिवेंद्र रावत की ‘फिरकी’ से लग रहा है कि यह अफसर भी जल्द ही बैक टू द पैवेलियन होने वाला  है।

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