- करे कोई भरे कोई
- विभिन्न सरकारी योजनाओं में सवा 14 हजार लोगों ने बैंकों से लिया था कर्ज
- अब उनका कर्ज वापसी न होने से बैंकों को इन्हें एनपीए में करना पड़ा
- दर्जभारी भरकम रकम बट्टे खाते में जाने से अब कर्ज देने से कतरा रहे बैंक
- इससे प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के लक्ष्य भी अधर में लटके
देहरादून। राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक में इस हकीकत का खुलासा हुआ कि विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में राज्य के करीब सवा 14 हजार जरूरतमंद लोगों ने 196 करोड़ रुपये का कर्ज ले लिया, लेकिन उसे वापस नहीं कर पा रहे हैं। कर्ज वापसी न होने से बैंकों को इन्हें एनपीए में दर्ज करना पड़ा है।अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने बैठक में बैंकों और विभागों को इस मामले में लोगों से इस कर्ज को जल्द वसूलने के लिये कहा है।
गौरतलब है कि सरकार ने प्रदेश के बेरोजगार युवकों और अन्य लोगों के लिये कई कल्याणकारी योजनायें चला रखी हैं। जिनमें प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, स्पेशल कंपोनेंट प्लान, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली योजना, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, डीआरआई स्कीम, मुद्रा योजना, डेयरी उद्यमिता विकास योजना, स्टैंड अप इंडिया और प्रधानमंत्री आवास योजना मुख्य हैं। जिनका उद्देश्य बेरोजगार युवाओं और जरूरतमंदों को आसानी से और सस्ते में बैंक से कर्ज दिलाकर उन्हें स्वरोजगार के लिये प्रेरित करना है। इन योजनाओं के संबंध में बैंकों के लिये लक्ष्य तय किये गये थे। जिसके लिये बैंकों ने बेरोजगारों और अन्य जरूरतमंद लोगों को कर्ज तो बांट दिये, लेकिन अब वे बैंक से लिये कर्ज की किस्त नहीं जमा कर पा रहे हैं। जिससे बैंकों को करीब 196 करोड़ रुपये एनपीए में डालने पड़े।इससे पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे कई बैंकों के समक्ष दिवालिया होने का संकट मंडराने लगा है।
इन योजनाओं के तहत बैंक आफ बड़ौदा, केनरा बैंक, एसबीआई, पीएनबी, उत्तराखंड ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, ओरियंटल बैंक आफ कामर्स, नैनीताल बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक आफ इंडिया और यूनियन बैंक ने कर्ज बांटे थे। इनमें सहकारी बैंक की हालत सबसे खराब है क्योंकि इसके द्वारा बांटे गये कर्ज की करीब 75 रकम एनपीए हो गई है।
इसका सबसे ज्यादा असर उन पात्र जरूरतमंदों और बेरोजगारों पर पड़ा है जिन्होंने इन योजनाओं के तहत कर्ज लेने के लिये बैंकों में आवेदन किया है। उधर इन योजनाओं के तहत दिये गये अधिकतर कर्ज के एनपीए हो जाने से बैंक अब उन्हें कर्ज देने से कतरा रहे हैं। इससे जहां बेरोजगार युवाओं में निराशा हैं वहीं प्रदेश सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लक्ष्य भी बीच में ही अटक गये हैं।